Laser treatment for urine leak problem of women
आगरालीक्स… आगरा में डॉक्टरों ने बताया कि महिलाओं में यूरिन लीक की समस्या क्यों होती है। कहा कि महिलाओं में उम्र बढ़ने पर ब्लैडर की यूरिन इकठ्ठा करने की क्षमता और उसे कंट्रोल कर पाने वाली मांसपेशी की ताकत कम हो जाती है। डायबिटीज से ग्रस्त महिलाओं को भी बार-बार टाॅयलेट जाना पड़ता है। गर्भावस्था में महिलाओं के हार्मोन के बदलाव और गर्भाश्य में शिशु का वनज बढ़ने से यूरिन इंकाॅन्टिनेंसी की समस्या हो सकती है। महिलाओं की ऐसी तमाम परेशानियों पर यूरोपियन सोसायटी आॅफ एस्थेटिक गायनेकोलाॅजी की कार्यशाला में खुलकर चर्चा हुई।
फाॅग्सी और आईसीओजी के तत्वाधान में रेनबो हाॅस्पिटल में आयोजित ईएसएजी की कार्यशाला के दूसरे दिन डा. अलक्जेंडर बदर ने महिलाओं की ऐसी समस्याओं के लेजर विधि से इलाज पर जानकारी दी जिन्हें वह शर्म और झिझक के चलते किसी से कहती नहीं और गंभीर समस्या में फंस जाती हैं। इसके साथ ही लेजर विधि से इलाज पर लाइव वर्कशाॅप के जरिए जानकारी दी गई। उन्होंने कहा कि यूरोप की तुलना में एशियाई देशों में महिलाएं ऐसी समस्याओं को अधिक सहन कर रही हैं। रेनबो हाॅस्पिटल के निदेशक डा. नरेंद्र मल्होत्रा ने बताया कि फेमिलिफ्ट लेजर सिस्टम से इन समस्याओं का समाधान संभव है। इसमें कुछ प्रक्रियाएं बिना सर्जरी के तो कुछ सर्जरी के जरिए भी की जाती हैं। उन्होंने कहा कि मूत्र का बार-बार रिसना, योनि का सूखापन, खुजली का बार-बार होना, गर्भाशय का बाहर खिसकना, संभोग में दर्द या तकलीफ आदि इसके लक्षणों में आते हैं, लेकिन लोगों को इस सबके इलाज की जानकारी ही नहीं। महिलाएं इन्हें छिपाती रहती हैं, जबकि आज तकनीक ने इन समस्याओं के इलाज को आसान बना दिया है। जिसमें सर्जिकल और नाॅन सर्जिकल दोनों तरह की प्रक्रियाएं आती हैं। उन्होंने कहा कि भारत में इस तरह की यह पहली कार्यशाला है जिसका मकसद भारत में महिलाओं के स्वास्थ्य और जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनाना है। महिलाओं की यह ऐसी समस्याएं हैं जिनके बारे में वह डाॅक्टर तो दूर परिवार के भी किसी सदस्य को नहीं बतातीं और रोग गंभीर स्थिति में पहुंच जाता है। कार्यशाला में देश भर से आए डाॅक्टरों को प्रशिक्षित किया। प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले डाॅक्टरों को प्रमाण-पत्र प्रदान किए गए। फाॅग्सी की अध्यक्ष डा. जयदीप मल्होत्रा ने बताया कि भारत में अधिकांश महिलाएं मूत्र असंयमितता से जूझती रहती हैं और इनमें से लगभग 74 प्रतिशत तनाव का शिकार भी होती हैं। एसयूआई का प्रमुख कारण 40 साल से अधिक आयु, वजाइनल डिलीवरी, पोस्ट मीनोपाॅज की स्थिति, बीएमआई 25 से अधिक होना, डायबिटीज, अस्थमा व व्यसन हैं।
इस अवसर पर डा. अपूर्वा पालम रेड्डी, डा. भारती ढोरेपाटिल, डा. दिव्या सविरमन, डा. गरिमा साहने, डा. गायत्री बाला, डा. करिश्मा बालानी, डा. ललिता कोपुरवुरी, डा. लीला व्यास, डा. मधु बिंदु, डा. एन राजामाहेश्वरी, डा. निहारिका मल्होत्रा, डा. ऋषभ बोरा, डा. केशव मल्होत्रा, डा. प्रीति जिंदल, डा. रागिनी अग्रवाल, डा. राजीव अग्रवाल, डा. एस समुंदरी शंकरी, डा. संध्या मिश्रा, डा. शालिनी तिवारी, डा. सुमिना रेड्डी, डा. सुरक्षिता, डा. तनुजा, डा. उमा जैसवाल, डा. प्रीति आदि मौजूद थे।
इन रोगों का इलाज संभव
– मूत्र का बार-बार रिसना
– योनि का सूखापन
– बार-बार खुजली होना
– योनि द्वार का ढीलापन
– गर्भाशय का बाहर खिसकना, प्रारंभिक अवस्था में
– संभोग में दर्द या तकलीफ