
सरदार विचित्तर सिंह तो पूरी घटना बड़ी हैरानी से देखते रहे और उस नौकर की अक्ल पर क़ुर्बान हो उठे। खाना इत्यादि पूरा होने के बाद मुल्ला ने पूछा, सरदार जी, पान खाएंगे?
सरदार विचित्तर सिंह बोले—नहीं छोड़िए, अब काफी देर हो गई है, मुझे अब जाना होगा। मुल्ला ने कहा, कोई देर नहीं होगी,देखिए, यह बल्ले खां ने जूते पहन लिए, अब वह दरवाजे से बाहर हो गया, अब वह सड़क पार कर रहा है। अब वह दुकान से पान बंधवा रहा है। उसने फिर लौट कर सड़क पार कर ली, अब वह घर के भीतर आ गया है और उसने जूते उतार लिए हे और ये रहा आपका पान।
इसके साथ ही बल्ले खां पान लेकिर कमरे में हाजिर हो गया। सरदार विचित्तर सिंह को तो अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ। ऐसा होशियार नौकर उन्होंने जिंदगी में नहीं देखा था। सरदार विचित्तर सिंह ने तय कर लिया कि वह मुल्ला को दिखाकर रहेंगे कि उनका नौकर पिचत्तर सिंह भी कोई कम नहीं है। सरदार जी ने विदा लेते हुए मुल्ला से आग्रह किया कि वे अगले सप्ताह दावत पर उसके घर आएं। मुल्ला ने निमंत्रण स्वीकार कर लिया।
मुल्ला जिस दिन आने वाला था उस दिन सुबह से सरदार विचित्तर सिंह ने अपने नौकर को ठीक वही का वहीं करने की पूरी सूचना दे दी जो बल्ले खां ने किया था—किस तरह सरदार चावल का दाना मुल्ला की नजर बचा कर मूँछों में फंसा लेंगे। किस तरह तू कहेगा, हुजूर, ‘’शाख पर फल लेंगे है’’ और वे किस अंदाज से मूंछ से उस दाने को एक झटके से नीचे गिराएंगे।
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