आगरालीक्स…..किसान मजबूर हैं कमजोर मत बनाइए, मित्रो हजारों लोगों की मौजूदगी में पेड पर चढकर यह कहना कि अब मौत ही मेरी जिंदगी है, गजेंद्र का यह कहना सामान्य नहीं है। यह सोशल सुसाइड है जो एक समाज को ही खत्म कर देता है। उन गांवों की तरफ नजर घुमाइए जहां सडकें नहीं है बिजली और पानी का बंदोबस्त भी नहीं। तपती दोपहरी में किसान दिन रात एक कर, कर्ज लेकर तो अपनी पत्नी के गहने गिरवी रखकर गेहूं की बालियों में सपनों की दुनिया देखता है। अब वह बर्बाद हो चुका है। मीडिया में खबरें आती हैं कि आज 30 किसानों की मौत तो आज 35 किसान मर गए। किसी ने सुसाइड की तो कोई सदमे में चला गया। मगर ऐसी खबर नहीं आती जिससे उम्मीद जग सके कि हताश होने की जरूरत नहीं है अभी उम्मीद बची है। वह चाहता है कि उसके कंधे पर हाथ रखकर कोई कहे कि फसल में जो नुकसान हुआ है उसका पैसा सरकार देगी। या गांव के साहूकार लोग कहें कि फसल बर्बाद हो गई तो कोई बात नहीं ब्याज माफ और कर्जा अगले साल दे देना, इस पफसल से जो भी आमदनी हो अपनी बेटी की शादी करो और घर चलाओ। रिश्तेदार कहें कि पैसे की जरूरत हो तो संकोच नहीं करना बता देना। जबकि हो इसका उल्टा रहा है। सरकार के नुमाइंदे आते हैं और कहतें हैं कि तुम्हारी पफसल तो कम बर्बाद हुई है या खेत तो तुम्हारे नाम नहीं है, मुआवजा नहीं मिल सकता। जिससे कर्ज लिया है वह कहता है कि खलियान से फसल नहीं उठाना इसे हम ले जाएंगे। रिश्तेदारों ने तो पहले ही मुंह पफेर लिया है वे कह रहें हैं कि पैसे की बात मत करना। अब आप बताओ किसान आत्महत्या नहीं करे तो क्या करे। इसे ही सोशल सुसाइड कहते हैं जो घातक होती है और एक समाज को ही खत्म कर देती है, क्या हम संवेदनशील हो चुके हैं। इन किसानों को जिनकी मेहनत से हमें खाने के लिए अन्न मिलता है, उनकी मदद नहीं की जा सकती है।
संपादक
योगेंद्र दुबे,
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