रस का द्वारा पहलू : रस का अर्थ है ,जिसका स्वाद लिया जा सके।तुम शब्द तो सुनते हो मगर उनका स्वाद कहां? जैसे ईश्वर शब्द तुमने सुना।कोई स्वाद आता है तुम्हें ! तुम्हें बिलकुल स्वाद नहीँ आता ।ईश्वर शब्द कान में भनभनाता है,एक कान में गूंजता है ,दूसरे से निकल जाता है।काई रस नहीँ बहता ।तुम मस्त नहीँ हो जाते ।तुम डोलने नहीं लगते।
यूं ही जैसे कोई ‘शराब’ शब्द को सुने ,तो क्या मस्त हो जायेगा ? पिये – तो मस्त होगा ।पिये -तो झूमेगा ।पिये -तो नाचेगा ।शराब उसके रग -रेशे में दौडे ,तो उसका रोआ-रोंआ जाहिर करेगा कि कुछ भीतर घट रहा है; कोई क्रांति हो रही है।
धर्म रस है ,उसका स्वाद लेना होता है।खोपडी में भर लेने से स्वाद नही आता ।स्वाद तो अनुभव से आता है।तुम लाख चर्चा सुनो मिठाई की,लेकिन कभी तुमने मीठा न चखा हो,तो चर्चा से क्या होगा ! मीठा शब्द याद हो जायेगा,लेकिन शब्द में कुछ अर्थ नहीं होगा।तुम्हारे लिए नहीं होगा अर्थ, अर्थ उनके लिये ही होगा जिन्होंने चखा है।
ओशो
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