Thursday , 27 March 2025
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मन तो दर्पण है, हर एक के पास अलग मन है।

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 आगरालीक्स….
एडमंड बर्क बहुत बड़ा इतिहासज्ञ हुआ। वह विश्व का इतिहास लिख रहा था। उसने
इतिहास लिखने में कोई बीस बाईस वर्ष खर्च किये थे। और बाईसवें वर्ष यह
घटना घटी कि उसके घर के पीछे हत्या हो गयी। वह भागा हुआ पहुंचा शोरगुल
सुना, लाश पड़ी थी, अभी आदमी ठंडा भी नहीं हुआ था, अभी खून गर्म था,
हत्यारा पकड़ लिया गया था, उसके हाथ में रंगीन छुरा था खून से लहूलुहान,
उसके शरीर पर भी खून के दाग थे, राह पर खून की धार बह रही थी और सैकडों
लोगों की भीड़ इकट्ठी थी। बर्क पूछने लगा लोगों से कि क्या हुआ? एक ने एक
बात कही, दूसरे ने दूसरी बात कही, तीसरे ने तीसरी बात कही। जितने मुंह
उतनी बातें। और वे सभी चश्मदीद गवाह थे। उन सबने अपनी आख के सामने यह
घटना देखी थी।

बर्क बड़ी मुश्किल में पड़ गया। बर्क बड़ी चिंता में पड़ गया। वह घर के भीतर
गया और उसने बाईस साल मेहनत करके जो इतिहास लिखा था उसमें आग लगा दी।
उसने कहा, मेरे घर के पीछे हत्या हो, आख से देखनेवाले लोगों का समूह हो
और एक आदमी दूसरे से राजी न हो कि हुआ क्या, कैसे हुआ, हर एक की अपनी कथा
हो—और मैं इतिहास लिखने बैठा हूं सारी दुनिया का! प्रथम से, शुरुआत से!
क्या मेरे इतिहास का अर्थ? हम वही देख लेते हैं जो हम देखना चाहते हैं।
उसमें कोई हत्यारे का मित्र था। उसे बात कुछ और दिखायी पड़ी। उसमें कोई
जिसकी हत्या की गयी थी उसका मित्र था, उसे कुछ बात और दिखायी पड़ी। जो
तटस्थ था, उसे कुछ बात और दिखायी पड़ी। सब प्रत्यक्ष गवाह थे। मगर क्या
गवाही दे रहे थे!

उपनिषद् के हिसाब से, समस्त जाग्रत पुरुषों के हिसाब से प्रत्यक्ष तो
सिर्फ एक चीज है, वह तुम्हारी आत्मा है। बाकी सब परोक्ष है। क्यों?
क्योंकि मन खबर देगा न; मन तो बीच में आ जाएगा, मन पर है। मन कहेगा, ऐसा
हुआ। मन व्याख्या करेगा।

बुद्ध ने एक रात समझाया लोगों को कि तुम जितने लोग यहां हो उतनी ही बातें
सुन रहे हो। बोलनेवाला तो मैं एक हूं लेकिन चूंकि सुननेवाले अनेक हैं,
इसलिए बातें अनेक हो जाती हैं। जैसे एक ही आदमी खड़ा हो और बहुत दर्पण लगे
हों, तो बहुत तस्वीरें बनेंगी। फिर दर्पण दर्पण अपने ढंग से तस्वीर
बनाएगा।

तुमने कभी वे दर्पण देखे होंगे किसी सर्कस में, किसी म्‍यूजियम में, कोई
दर्पण तुम्हें लंबा कर देता है, कोई दर्पण मोटा कर देता है, कोई छोटा कर
देता है, कोई तिरछा कर देता है। किसी में तुम अष्टावक्र मालूम पड़ते हो।
किसी में आदमी कम, ऊंट ज्यादा मालूम पड़ते हो। किसी में एकदम बिजली का
खंभा हो जाते हो। और किसी में इतने मोटे, इतने ठिगने कि तुम्हें भरोसा ही
न आएगा कि यह क्या हुआ? और सभी दर्पण हैं। और सभी एक ही कक्ष में सजे
हैं। सब अलग अलग बता रहे हैं।

मन तो दर्पण है, और हर एक के पास अलग मन है।

लगन मुहूरत सब झूठ

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