There are many auspicious coincidences on Shri Hanuman Janmotsav on
मेढकों का भी अब कोई अपना मौसम नहीं रहा
आगरालीक्स…. मेढकों का भी एक खास मौसम हुआ करता था. गर्मीं शुरू होते ही ये नज़र आते थे और बरसात आते-आते हर तरफ तादात में उछलने, कूदने और टर्राने लगते थे. पर इधर जब से ओज़ोन की परत में छेद हुआ है, तब से सब्जियों और फलों की तरह मेढकों का भी अब कोई अपना मौसम नहीं रहा. ये अब कहीं भी कभी भी नज़र आ जाते हैं.
इनका सबसे ज्यादे प्रादुर्भाव चुनावी मौसमों में होता है. वह भी एक या दो नहीं सैकड़ों-हजारों की तादाद में. किसिम किसिम के मेढक. हर रंग और हर आकर के मेंढक. जिनके दर्शन को अंखिया पिछले पांच सालों से तरस रहीं थी, वे भी अचानक ही प्रगट हो जाते हैं. और सिर्फ प्रगट ही नहीं होते, घर-घर हाँथ जोड़ कर बन कर दस्तक भी देने लगते हैं. और “मुझको वोट दे दो…आल्ला के नाम पर दे दो…राम के नाम पर दे दो…जाति के नाम पर दे दो…कुनबे के नाम पर दे दो” टर्राने लगते हैं. उनकी नकली मासूमियत और फिर से झांसा देने के लिए पांसा फेंकने के नए अंदाज़ से प्रेरित होकर नए-नए चुटकुलेबाजों, हास्य कवियों और व्यंगकारों की एक नयी ज़मात खडी हो जाती है. और वे भी कागज़ कलम लेकर मेढकों की तरह उछलने, कूदने और टर्राने लगते हैं.
इन दिनों प्री-पोल सर्वेक्षणों और राजनीतिक ज्योतिषियों का टर्राना भी काफी तेज़ हो जाता है. जितने चैनल उतने तरह के आंकड़ें, भविष्यवाणियां और टर्राहटें. कान पक जाता है. लेकिन उनकी टर्राहट बंद नहीं होती. वैसे चैनलों के ये सर्वेक्षण या चुनाव नतीजों को लेकर इन ज्योतिषियों द्वारा की गयी भविष्यवाणियां यदा कदा ही सच साबित होती हैं. बस अंधे के हाँथ लगी बटेर की तरह. और सच होंगी भी कैसे? ए सी कमरे में बैठ कर या कुछ हज़ार लोगों से बात-चीत करके या फिर ग्रहों-नक्षत्रों की चालें देखकर अगर जनता के मिजाज़ को ठीक-ठीक पढ़ा जा सकता था तो दुनिया भर की तमाम सत्ता विरोधी मुहिमों को शासकों ने गर्भ में ही मार दिया होता. फिर तो न कभी सीरिया में तख्ता पलटता, न कभी गद्दाफी की सत्ता जाती. और न ही किसी देश में कभी राजशाही का अंत होता.
बोर्ड की परीक्षाओं के नज़दीक आते ही शुरू हो जाता है प्रतियोगी परीक्षाओं का गला काटू दौर. अपनी कमीज़ को दूसरों की कमीज़ से अधिक सफ़ेद बनाने के चक्कर में बच्चे तो बच्चे पैरेंट्स भी तनावग्रस्त हो जाते हैं. फिर क्या है? मौका और दस्तूर देख कर जगह-जगह काउंसलिंग करने वाले मेढकों की जमात भी उग जाती है. गली के हर नुक्कड़ पर एक नया काऊंसलर प्रगट हो जाता है. जिसको देखो वही काउंसलर बन कर पैरेंट्स व बच्चों को परीक्षा में सफलता पाने, एकाग्रता व स्मरण शक्ति बढ़ाने और तनाव को कम करने के गुर सिखाने लगता है. इन मौसमी काउंसलरों का आलम यह है कि एक काउंसलर खुद को खरा और दूसरे को हमेशा फर्जी बतलाता है. और अगर इस लिहाज़ से हिसाब लगाया जाये तो पता ही नहीं चलता कि कौन असली है और कौन नकली?
मौके पर चौका लगाने के लिहाज़ से ज़ल्दी ही मुनाफे का बाज़ार भी बीच में कूद पड़ता है. और दुकानों में याददाश्त बढ़ाने और नींद न आने की दवाइयां धड़ल्ले से बिकनी शुरू हो जाती हैं. जैसे कि ‘मर्दाना कमजोरी का शर्तिया इलाज’ वाली दवाइयां बेची जाती हैं. अब इन काऊंसलारों के टिप्स वाकई कितने किताबी या कितने व्यावहारिक हैं या इन दवाइयों का असर कितना लाभदायक या हानिकारक होता है, यह तो शोध का विषय है. पर यह एक वैज्ञानिक सच है कि भूत-भूत कह कर बच्चों को डराने से उनके दिमाग में भूत का डर ज़िंदगी भर के लिए घर कर लेता है. और पढ़ाई और कम्पटीशन को नाक का सवाल बना कर बच्चों को भयभीत करने से वे न सिर्फ वाकई तनावग्रस्त हो जाते हैं, बल्कि छोटी-मोटी असफलतों से हताश हो कर आत्महत्या भी कर लेते हैं. पर मेंढकों का क्या है? उनको तो बस टर्राने से मतलब है.
@अरविन्द कुमार
tkarvind@yahoo.com