मगध के राजा धनानंद अत्याचार खत्म करने के लिए चंद्र गुप्त मौर्य का साथ देते हैं। महामात्य राक्षसाचार्य चाणक्य का विरोध करते हैं, धनानंद उनको अपमानित करता हैं। अपमान से क्रोधित चाणक्य मगध में सत्ता परिवर्तन और चंद्रगुप्त मौर्य को चक्रवर्ती सम्राट बनाने का संकल्प लेते हैं। उनके मार्गदर्शन में चंद्रगुप्त वनवासियों की सहायता से काशी और कोशल राज्य पर आधिपत्य करके पर्वतराज से संधि करते हैं। पर्वतराज की मदद से मगध पर आक्रमण कर रानी सुमोहा की मदद से धनानंद को मारते हैं। अंत में पर्वतराज की हत्या करके राक्षसाचार्य को फिर से चंद्रगुप्त मौर्य का महामात्य बनाते हैं।
इस कथानक के बीच में हर एक संवाद बांधने वाला था। खासतौर पर रानी सुमोहा की हत्या से व्यथित चंद्रगुप्त को समझाने के लिए चाणक्य (मनोज जोशी) कहते हैं कि ‘स्त्री राजा के उपभोग की वस्तु नहीं, राजस्त्री एक खेत है, जहां राजनीति का संवर्धन होता है,’, ‘राजा दिव्य होता है, दिव्यता ही उसका उत्तरदायित्व है।’ चाणक्य की बुद्धिमत्ता की चर्चाएं सुनने वाले लोग नाटक का मंचन देख चाणक्य के कायल हो गए। हर संवाद पर तालियां बज रही थी।
डा. आरएस पारीक, वीरेंद्र याज्ञनिक, पवन गर्ग, कार्यक्रम अध्यक्ष आलोक सिंह, जीपी अग्रवाल, समिति के अध्यक्ष राधाबल्लभ अग्रवाल, महामंत्री भगवान दास बंसल, मार्गदर्शक शांतिस्वरूप गोयल ने दीप प्रज्ज्वलित कर सांस्कृतिक संध्या का शुभारंभ किया। अनिल अग्रवाल, संजय गोयल, राजेश अग्रवाल, दिनेश बंसल आदि ने अतिथियों का स्वागत किया।
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नाटक का निर्माण चारू जोशी, लिखा मिहिर भूता ने है। निर्देशन मनोज जोशी का रहा। चाणक्य मनोज जोशी बने थे। वहीं चंद्रगुप्त की भूमिका में राजीव भारद्वाज, महामात्य राक्षसाचार्य शैलेश दातार, राजा पोरस की भूमिका संजय भाटिया ने निभाई। रानी सुमोहा- कामना पाठक, राजा धनानंद- शोनील सिंदे बने।
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