Tuesday , 11 March 2025
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संत होना प्रत्येक मनुष्य की संभावना है

osho
आगरालीक्स ….सत्य क्या है
? क्या उसकी प्राप्ति अंशतः संभव है? और यदि नहीं, तो मनुष्य उसकी प्राप्ति के लिए क्या कर सकता है? क्योंकि हरेक मनुष्य संत होना संभव नहीं है। 

हली बात तो यह, संत होना हरेक मनुष्य की संभावना है। संभावना को कोई वास्तविकता में परिणत न करे, यह दूसरी बात है। यह दूसरी बात है कि कोई बीज वृक्ष न बन पाए, लेकिन हर बीज वृक्ष होने के लिए अपने अंतस से निर्णीत है। यानि हर बीज की यह संभावना है, यह पोटेंशियलिटी है कि वह वृक्ष बन सकता है। न बने, यह बिलकुल दूसरी बात है। खाद न मिले और भूमि न मिले, और पानी न मिले और रोशनी न मिले, तो बीज मर जाए यह हो सकता है, लेकिन बीज की संभावना जरूर थी।

संत होना प्रत्येक मनुष्य की संभावना है। इसलिए पहले तो अपने मन से यह खयाल निकाल दें कि संतत्व कुछ लोगों का विशेष अधिकार है। संतत्व कुछ विशेष लोगों का अधिकार नहीं है। और जिन लोगों ने प्रचलित की है यह धारणा, वह केवल अपने अहंकार के परिपोषण के लिए है। क्योंकि इस बात से अहंकार को परिपोषण मिलता है कि अगर मैं कहूं कि संत होना बड़ा दुरूह है और बहुत थोड़े-से लोगों के लिए संभव है। और फिर मैं यह कहूं कि बहुत थोड़े-से लोग ही संत हो सकते हैं। यह कुछ लोगों की अहंता की तृप्ति का मार्ग भर है, अन्यथा संत होना सबकी संभावना है। क्योंकि सत्य को उपलब्ध करने के लिए सबके लिए सुविधा और गुंजाइश है।

मैंने कहा कि यह दूसरी बात है कि आप उपलब्ध न हो सकें। उसके लिए सिर्फ आप ही जिम्मेवार होंगे, आपकी संभावना नहीं जिम्मेवार होगी। हम सारे लोग यहां बैठे हैं। उठकर चलने की हम सबकी शक्ति है, लेकिन हम न चलें और बैठे रहें! शक्तियां तो उन्हें सक्रिय करने से ज्ञात होती हैं; जब तक सक्रिय न करें, ज्ञात नहीं होतीं।

अभी आप यहां बैठे हैं, हमको ज्ञात भी नहीं हो सकता कि आप चल सकते हैं। और आप भी अगर अपने भीतर खोजेंगे, तो चलने की शक्ति कहां मिलेगी आपको! एक बैठा हुआ आदमी अपने भीतर खोजे कि मेरे भीतर चलने की शक्ति कहां है? तो उसे कैसे पता चलेगी! उसे पता भी नहीं चलेगी, वह सोचेगा कि चलने की शक्ति कहां है! बैठा हुआ आदमी कितना ही अपने भीतर तलाशे, उसे कोई स्थान न मिलेगा, जिसको वह कह सके कि यह मेरी चलने की शक्ति है, जब तक कि वह चलकर न देखे। चलकर देखने से पता चलेगा कि चलने की शक्ति है या नहीं और संत बनने की प्रक्रिया से गुजरकर देखना होगा कि वह हमारी संभावना है या नहीं। जो उसे प्रयोग ही नहीं करेंगे, उन्हें जरूर वह संभावना ऐसी प्रतीत होगी कि कुछ लोगों की है।

यह गलत है। तो पहली तो यही बात समझें कि सत्य को पाने के लिए सबका अधिकार है; वह सबका जन्मसिद्ध अधिकार है। उसमें किसी के लिए कोई विशेष अधिकार नहीं है।

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