आगरालीक्स… संतान के संकट दूर करने, सुख-समृद्धि का फल देने वाली बहुला चतुर्थी कल 15 अगस्त को है। श्रीगणेश की प्रिय तिथि, व्रत का महत्व, लाभों की विस्तृत जानकारी।
व्रत करने से दूर होते हैं संतान के कष्ट
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मान्यता है की इस व्रत को करने से संतान के ऊपर आने वाला कष्ट शीघ्र ही समाप्त हो जाता है। तथा यह तिथि भगवान गणेश जी को अत्यंत प्रिय है। ज्योतिष में भी श्रीगणेश को चतुर्थी का स्वामी कहा गया है। इसे संतान की रक्षा का व्रत भी कहा जाता है। भाद्रपद चतुर्थी तिथि को पुत्रवती स्त्रियां अपने संतान की रक्षा के लिए उपवास रखती है। इस दिन चन्द्रमा के उदय होने तक बहुला चतुर्थी का व्रत करने का बहुत ही महत्त्व है। वस्तुतः इस व्रत में गौ तथा सिंह की मिट्टी की प्रतिमा बनाकर पूजा करने का विधान प्रचलित है। इस व्रत को गौ पूजा व्रत भी कहा जाता है।
व्रत पूजा करने से मिलते हैं लाभ
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श्री गुरु ज्योतिष शोध संस्थान गुरु रत्न भंडार वाले ज्योतिषाचार्य पंडित हृदयरंजन शर्मा बताते हैं कि भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को बहुला चौथ या बहुला चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। इस बार यह बहुत खास दिन सोमवार यानी की यह श्री गणेश जी के प्रिय दिन पड़ रही है क्योंकि यह दिन उनके पिता का प्रिय दिन है। अतः इस बार व्रत पूजा करने वाले लोगों को इससे मिलेंगे विशेष लाभ।
♦ चतुर्थी व्रत विधि
🌷 इस दिन प्रातः काल स्नानादि नित्य क्रिया से निवृत्त होकर शुद्ध वा नया परिधान ( कपड़ा) पहनना चाहिए। इस दिन पुरे दिन उपवास रखने के बाद संध्या के समय गणेश गौरी, योगेश्वर श्रीकृष्ण एवं सवत्सा गौ माता का विधिवत पूजन करना चाहिए । पूजा से पूर्व हाथ में गंध, अक्षत (चावल), पुष्प, दूर्वा, द्रव्य, पुंगीफल और जल लेकर गोत्र, वंशादि के नाम का का उच्चारण कर विधिपूर्वक संकल्प अवश्य ही लेना चाहिए, अन्यथा पूजा का पूर्ण फल नहीं मिलता है।
🌸 स्थान विशेष के अनुसार विधि विधान में अंतर हो जाता है अतः क्षेत्र विशेष में जिस विधि से पूजा प्रचलित है उसी विधि के अनुसार पूजा करनी चाहिए।
🏵 इस दिन पुखे (कुल्हड़) पर पपड़ी आदि रखकर भोग लगाकर पूजन के बाद ब्राह्मण भोजन कराकर उसी प्रसाद में से स्वयं भी भोजन करना चाहिए। बहुला चतुर्थी व्रत की कथा अवश्य ही पढ़ना या सुनना चाहिए। कथा सुनने के बाद ब्राह्मण को भोजन करानी चाहिए तथा उसके बाद स्वयं भोजन करनी चाहिए।
♦बहुला चतुर्थी व्रत के लाभ
☀ सकट चतुर्थी व्रत करने व्यक्ति को इच्छित सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।
☀ इस व्रत को करने से शारीरिक तथा मानसिक कष्टों से मुक्ति मिलती है।
☀ यह व्रत निःसंतान को संतान का सुख देता है।
☀ इस व्रत को करने से धन धन्य की वृद्धि होती है।
☀ व्रत करने से व्यावहारिक तथा मानसिक जीवन से सम्बन्धित सभी संकट दूर हो जाते हैं।
☀ व्रती स्त्री को पुत्र, धन, सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
☀ संतान के ऊपर आने वाले कष्ट दूर हो जाते है।
☀ सकट चौथ के दिन क्या नही करना चाहिए
☀ इस दिन गाय के दूध से बनी हुई कोई भी खाद्य सामग्री नहीं खानी चाहिए।
☀ गाय के साथ साथ उसके बछड़े का भी पूजन करना चाहिए।
☀ भगवान श्रीकृष्ण और गाय की वंदना करना चाहिए।
☀ श्री कृष्ण के सिंह रूप में वंदन करना चाहिए।
♦ प्रचलित कथा
🔥 बहुला चतुर्थी व्रत से संबंधित एक बड़ी ही रोचक कथा प्रचलित है। जब भगवान विष्णु का कृष्ण रूप में अवतार हुआ तब इनकी लीला में शामिल होने के लिए देवी-देवताओं ने भी गोप-गोपियों का रूप लेकर अवतार लिया। कामधेनु नाम की गाय के मन में भी कृष्ण की सेवा का विचार आया और अपने अंश से बहुला नाम की गाय बनकर नंद बाबा की गौशाला में आ गई।
🔥 भगवान श्रीकृष्ण का बहुला गाय से बड़ा स्नेह था। एक बार श्रीकृष्ण के मन में बहुला की परीक्षा लेने का विचार आया। जब बहुला वन में चर रही थी तब भगवान सिंह रूप में प्रकट हो गए। मौत बनकर सामने खड़े सिंह को देखकर बहुला भयभीत हो गई। लेकिन हिम्मत करके सिंह से बोली, ‘हे वनराज मेरा बछड़ा भूखा है। बछड़े को दूध पिलाकर मैं आपका आहार बनने वापस आ जाऊंगी।’
🔥सिंह ने कहा कि सामने आए आहार को कैसे जाने दूं, तुम वापस नहीं आई तो मैं भूखा ही रह जाऊंगा। बहुला ने सत्य और धर्म की शपथ लेकर कहा कि मैं अवश्य वापस आऊंगी। बहुला की शपथ से प्रभावित होकर सिंह बने श्रीकृष्ण ने बहुला को जाने दिया। बहुला अपने बछड़े को दूध पिलाकर वापस वन में आ गई।
🔥बहुला की सत्यनिष्ठा देखकर श्रीकृष्ण अत्यंत प्रसन्न हुए और अपने वास्तविक स्वरूप में आकर कहा कि ‘हे बहुला, तुम परीक्षा में सफल हुई। अब से भाद्रपद चतुर्थी के दिन गौ-माता के रूप में तुम्हारी पूजा होगी। तुम्हारी पूजा करने वाले को धन और संतान का सुख मिलेगा।
श्रीगणेश अवतरण कथा
🌻 शिवपुराण अनुसार भगवान गणेश जी के जन्म लेने की कथा का वर्णन प्राप्त होता है जिसके अनुसार देवी पार्वती जब स्नान करने से पूर्व अपनी मैल से एक बालक का निर्माण करती हैं और उसे अपना द्वारपाल बनाती हैं वह उनसे कहती हैं ‘हे पुत्र तुम द्वार पर पहरा दो मैं भीतर जाकर स्नान कर रही हूँ अत: जब तक मैं स्नान न कर लूं, तब तक तुम किसी भी पुरुष को भीतर नहीं आने देना।
🌻 जब भगवान शिवजी आए तो गणेशजी ने उन्हें द्वार पर रोक लिया और उन्हें भितर न जाने दिया इससे शिवजी बहुत क्रोधित हुए और बालक गणेश का सिर धड़ से अलग कर देते हैं, इससे भगवती दुखी व क्रुद्ध हो उठीं अत: उनके दुख को दूर करने के लिए शिवजी के निर्देश अनुसार उनके गण उत्तर दिशा में सबसे पहले मिले जीव (हाथी) का सिर काटकर ले आते हैं और शिव भगवान ने गज के उस मस्तक को बालक के धड़ पर रखकर उसे पुनर्जीवित कर देते हैं.
पार्वती जी हर्षातिरेक हो कर पुत्र गणेश को हृदय से लगा लेती हैं तथा उन्हें सभी देवताओं में अग्रणी होने का आशीर्वाद देती हैं ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने उस बालक को सर्वाध्यक्ष घोषित करके अग्रपूज्य होने का वरदान देते हैं. चतुर्थी को व्रत करने वाले के सभी विघ्न दूर हो जाते हैं सिद्धियां प्राप्त होती हैं।