आगरालीक्स… आगरा के वरिष्ठ फिजीशियन डॉ. अतुल कुलश्रेष्ठ, इनसे सीखें, केस चाहे घटें या बढ़ें-आज भी फॉलो करते हैं कोरोना का पूरा प्रोटोकॉल, कोई छह फीट की दूरी से देख रहा मरीज, कोई क्लीनिक पर धुलवाता है साबुन से हाथ, क्योंकि आप थक सकते हैं कोरोना नहीं
आगरा। शारीरिक दूरी, मास्क, सेनेटाइजर, क्या आप ये सब भूल गए हैं ? क्यों कि कुछ लोग नहीं भूले हैं। भले ही नए कोरोना संक्रमण के मामले सामने आएं या न आए। कोरोना से बचाव के नियमों का शिद्दत से पालन करने वालों से सीखने की जरूरत है। यही वो एकमार्त तरीका भी है जो हमें इस अदृश्य दुश्मन के खिलाफ जीत दिला सकता है।

कोरोना की दूसरी लहर ने कहर बरपाया था। एक बार फिर कोरोना के मामलों का बढ़ना-घटना जारी है। जुलाई में जहां बहुत कम ही नए केस सामने आए थे, वहीं अगस्त में एक ही दिन में अधिकतम 80 केस तक मिल चुके हैं। यह संख्या फिर घटी है और पिछले 24 घंटों में एक भी नया केस नहीं मिला है। जब भी केस बढ़ते हैं लोग नियमों को लेकर जानकारी जुटाने लगते हैं। आइसोलेशन, क्वारंटाइन का भी पता करते हैं। इस बीच हम आपको कुछ ऐसे लोगों से मिलवाते हैं जिन्होंने नियमों को मानना कभी नहीं छोड़ा और हमें इनसे सीखना चाहिए। दयालबाग में फिजीशियन डॉ. अतुल कुलश्रेष्ठ के क्लीनिक पर जाकर देखा तो वहां आज भी सभी नियम माने जा रहे हैं। डॉक्टर साहब छह फीट की दूरी से मरीजों को देख रहे हैं और शील्ड का उपयोग भी करते हैं। मरीजों से बात करने के लिए माइक लगा हुआ है। पचकुईयां में वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. जेएन टंडन बच्चों के डॉक्टर बैठते हैं। बच्चों को दिखाने आने वाले परिजनों को बिना मास्क एंट्री नहीं है। मुंह पर कोई कपड़ा या रूमाल नहीं चलेगा। नियमानुसार मास्क ही होना चाहिए। इसकी वजह है कि कपड़े या रूमाल को बार-बार पहनने से हम पता नहीं कर सकते कि पहले किस साइड से पहना था। यहां सभी के क्लीनिक के बाहर साबुन से हाथ भी धुलवाए जाते हैं। सिकंदरा स्थित एक बडे़े हॉस्पिटल में एक नामी चिकित्सक भी शील्ड के दूसरी ओर से मरीजों को परामर्श दे रहे हैं। मरीजों से बात करने के लिए वे भी माइक का इस्तेमाल करते हैं। शहर में तमाम आम नागरिक भी हैं जो पहले की तरह ही आज भी अधिकांश नियमों को मान रहे हैं। वे भीड़-भाड़ वाली जगहों पर जाने से परहेज कर रहे हैं। नियमित मास्क पहन रहे हैं, जेब में सेनेटाइजर भी मिलेगा और बार-बार साबुन से हाथ धोना नहीं भूले हैं। ऐसे लोग बेहद कम संख्या में लेकिन आपको भी अपने आस-पास आसानी से मिल जाएंगे। ऐसे में सवाल है कि अगर ये कर सकते हैं तो आप क्यों नहीं, क्योंकि आखिर में कोरोना के खिलाफ जीत इसी से मिलनी है।