Agra News: Recruitment of security personnel and security supervisor in
A family in Agra angry over Rahul Gandhi’s tweet, demanding an apology
आगरालीक्स…राहुल गांधी ने किया ऐसा ट्वीट कि आगरा की एक फैमिली हुई नाराज. माफी मांगने की मांग. जानिए कैसे ट्वीट से जुडा है फैमिली का गहरा नाता…
राहुल ने ये किया ट्वीट
नये कृषि बिलों के विरोध में इस समय हजारों किसान दिल्ली में आंदोलन कर रहे हैं. वे कृषि कानूनों को रद करने की मांग सरकार से कर रहे हैं. ऐसे में विपक्ष और कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी अपने शब्दवाणों से किसानों के समर्थन में आकर सरकार पर निशाना लगातार साध रहे हैं. लेकिन रविवार को उन्होंने एक ऐसा ट्वीट किया कि जो आगरा की एक फैमिली को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा. उन्होंने राहुल गांधी को माफी मांगने और मखौल न उडाकर उन्हें दिल से सीखने को भी कहा. मामला ये है कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने स्व. द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी की सुप्रसिद्ध कविता वीर तुम बढ़े चलो ट्वीट की, जो विवाद का कारण बन गई है. दरअसल, राहुल गांधी ने कविता वीर तुम बढ़े चलो के साथ कुछ शब्द अपनी तुकबंदी के मिलाकर ट्वीट कर दिया है. लेकिन राहुल की ये तुकबंदी महाकवि के परिजनों को रास नहीं आ रही है.
ये था राहुल का ट्वीट
फैमिली ने जताई आपत्ति
महाकवि स्व. द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी के पुत्र व आगरा कॉलेज के पूर्व प्राचार्य डॉ. विनोद कुमार माहेश्वरी ने राहुल द्वारा कविता को तोड़-मरोडकर ट्वीट करने पर आपत्ति जताई. उन्होंने सोशल मीडिया पर पोस्ट किया कि सुविख्यात साहित्यकार स्व. द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी की कालजयी रचना वीर तुम बढ़े चलो को पढ़कर और प्रेरणा पाकर देश के कोने-कोने में बढ़े हुए बच्चों की व हम उम्र लोगों की पूरी पीढ़ी प्रोढ़ावस्था को प्राप्त कर चुकी है. समय के शिलालेख पर अमिट ऐसी रचना को पैरोडी के रूप में आपके द्वारा प्रस्तुत किए जाने से मुझे और मेरे परिवार को पी़ड़ा हुई है. आप स्वयं विचार करें कि क्या यह कविता और कवि की आत्मा के साथ न्याय है. राहुल गांधी जी आपने उसी कविता का मजाक बनाया है, जो घोर निंदनीय है, इस पर माफी मांगनी चाहिए.
पौत्र ने भी की निंदा
वहीं स्व. द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी के पौत्र डा. प्रांजल माहेश्वरी ने अपनी फेसबुक वाल और ट्विटर पर इसका विरोध किया. उन्होंने लिखा कि यह कविता मेरे दादा स्व. द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी ने लिखी है. मिस्टर राहुल गांधी जी, आपको इसे दिल से सीखने की जरूरत है क्योंकि जो कविता आपने लिखी हैं, वह सही पंक्तियां नहीं हैं. सही पंक्ति है सामने पहाड़ हो, सिंह की दहाड़ हो, तुम निडर हटो नहीं, तुम निडर डटो वहीं.