Agra News: Devotees became emotional after listening to Shri Ram Katha from Saint Shri Vijay Kaushal Ji…#agranews
आगरालीक्स…कलयुग में सिर्फ भगवान का नाम ही बेड़ा पार करेगा. श्रीराम कथा में संतश्री विजय कौशल जी ने सुनाई कैकई के हठ और वन गमन की कथा
धर्म की परीक्षा बहुत कठोर और क्रूर होती है। जिसके लिए राजा दशरथ को प्राण त्यागने पड़े और श्रीराम को 14 वर्ष में गुजारने पड़े। धर्म की रक्षा के लिए हमारे पुरखों में बलिदानियों की लम्बी श्रंखला है जिसमें शिवि, दधिचि, राजा हरिशचंद्र, गुरुगोविन्दसिंह गुरु तेगबहादुर जैसे महापुरुषों का त्याग, तपस्या और बलिदान जुड़ा है। मंगलमय परिवार द्वारा सीता धाम (कोठी मीना बाजार) में आयोजित श्रीराम कथा में आज संत श्री विजय कौशल जी महाराज ने श्रीराम के वन गमन, राजा हरिशचंद्र व भारत में धर्म की रक्षा के लिए त्याग और बलिदान करने वाले महापुरुषों का कथा का वर्णन किया।
श्रीराम के वनवास की कथा का वर्णन करते हुए कहा कि कैकयी को समस्त अयोध्या वासी उलाहना देने लगे। हठीली तेने का ठानी मन में…, कीर्तन के माध्यम से बताया कि कैकयी द्वारा बरदान के रूप में श्रीराम को वनवास की वात सुनकर राजा दशरथ पछाड़े खाकर रोने लगे। क्योंकि देव लोग में श्रीराम के राजतिलक को रोकने और उन्हें वन भेजने का षड़यंत्र चल रहा था। क्योंकि भगवान राज्य भोजने नहीं बल्कि दुखों को दूर करने के लिए प्रकट हुए हैं। समाज और परिवार में खुशहाली चाहते हैं तो रामायण के हर चरित्र का अनुसरण करें। जहां श्रीराम माता पिता के आदेश के पालन के लिए 14 वर्ष को कोई प्रश्न किए बिना वन चले गए। राजमहल में पली बड़ी सीता जी ने राजमहल के बजाय पति के साथ वन में रहने स्वीराकर किया। वहीं लक्ष्मण जी ने माता-पिता तुल्य सियाराम की सेवा के लिए 14 वन वनवास में रहे। माता कौशल्या ने पुत्र को एक बार भी माता-पिता की आज्ञा की अवेहलना के लिए नहीं रोका। रामायण के हर चरित्र में त्याग और बलिदान के दर्शन होंगे। कहा देश की संस्कृति माताओं के बलिदान से बची है। गुरु गोविन्द सिंह पुत्रों जोराबर और फतेहसिंह को दीवार में चिनवाने की कथा का वर्णन करते हुए कहा कि छोटे-छोटे बालकों ने इस्लाम स्वीरने के बजाय मौत को स्वीकार किया।
इस अवसर पर मुख्य रूप से डॉ. आरएस पारीक, सोमनाथ धाम के योगी जहाजनाथ, डॉ. रमेश धमीजा, मनोज पोली, विष्णु दयाल बंसल, विनोद गोपालदास, ओपी उपाध्याय, शकुन बंसल, मनोज डिम्पल, खेमचंद गोयल, वीरेन्द्र अग्रवाल, राजेश चतुर्वेदी, विजय अग्रवाल, अशोक हुंडी आदि उपस्थित थे।
कश्मीर ने त्रेता में भी रूलाया था और कलयुग में भी रुला रही है
संतश्री विजय कौशल जी महाराज ने कहा कि भूमि के भी संस्कार होते हैं। मंथरा कैकयी (कश्मीर) की थी। मंथरा कुसंग का प्रतीक थी। जिसके आंगन में ब्रह्म बालक बनकर, काल लक्ष्मण रूप में और भक्ति के स्वरूप में सीता जी आयी थी, वहां मंथरा के रूप में कुसंग भी विराजमान था। जिसके जीवन के द्वार पर कुसंग हो सब तो कोपभवन का रास्ता ही बताएगा, कनक भवन का नहीं। मंथरा एक नौकरानी थी, जिसने राजतिलक के उत्सव को महाउदासी में बदल दिया, सर्वसम्मति से राज्य को पलटवा दिया। राजा दशरथ को असमय मरने पर और श्रीराम को वन गमन के लिए मजबूर कर दिया। परन्तु उस कुसंग का कोई बाल बांका न कर पाया। संतश्री ने कहा कि भले ही आप सत्संग न करें परन्तु कुसंग की ओर न जाएं। आजकल बहुत से परिवरों के बच्चों को नौकर नौकरानियां ही बिगाड़ रहे हैं। बच्चों को खुद समय दें, उन्हें संस्कार दें।
श्रद्धा बालू की दीवार पर खड़ी होती हैं, सम्बाल कर रखें
संत स्री विजय कौशल जी महाराज ने राजा दशरथ का शीशा देखकर तैयार तैयार होते प्रसंग का वर्णन करते हुए कहा कि जब समाज में जय-जयकाल और मान सम्मान बढ़ने लगे तो खुद शीशा देखते रहने चाहिए। अन्यथा समाज शीशा दिखा देता है। विशेषकर राजगद्दी और व्यासपीठ पर बैठे लोगों को। जो समाज को तो बहुत शीशा दिखाते हैं परन्तु खुद नहीं देखते। शीशा देखने का अर्थ आत्मनिरीक्षण है। बालू की दीवार पर खड़ी श्रद्धा बहुत कमजोर होती है। जिसे खड़ा करने में बहुत परिश्रम करना होता है। परन्तु वर्षों की मेहनत एक दिन में ढह जाती है। इसलिए आत्म निरिक्षण कर खुद में सुधार करते रहिए।
कलयुग केलव नाम अधारा, सुमिरि समिरि नर उतरहि पारा…
आगरा। कलयुग का सहारा सिर्फ हरि नाम है। जिस तरह हर मौसम का भोजन और कपड़े अलग वैसे ही हर युग के भजन भी अलग प्रकार के होते हैं। कलयुग के भजन योग साधन का नहीं। कलयुग में केवल भगवान का नाम ही बेड़ा पार करेगा। कुसंग से बचने का सूत्र देते हुए कहा कि जो कार्य छुपकर करना पड़े, जिस कार्य को करने पर हृदय में संदेह हो समझ लो वह कार्य उचित नहीं। कहा ड्रियों पर संयम के कोड़े लगाते रहना आवश्यक है।