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Celiac disease increases, Know about diagnosis & Treatment by Dr Sameer Taneja Gastroenterologist

आगरालीक्स…आगरा में बच्चा अंडरग्रोथ है, बार-बार डाॅक्टर बदलते हैं, एंटीबायोटिक खिलाए जा रहे हैं, जांचों से भी रोग पता नहीं चलता ? ‘सीलिएक’ नाम सुनकर माथा ठनक जाएगा, डाॅ. समीर तनेजा ने कहा जानकारी का अभाव बड़ी बाधा.

शुभम (काल्पनिक नाम) आठ साल का है। माता-पिता के साथ आगरा में ही रहता है। दिन में कई बार शौच जाने की जरूरत पड़ती थी। खाने के कुछ देर बाद ही पेट में दबाव महसूस होने लगता था। बार-बार दस्त हो जाते थे। कुछ खाने का मन नहीं करता था। जबरन खाने की कोशिश करने पर उल्टी कर देता था। माता-पिता से लगातार कहता रहता था कि पेट में दर्द है। शुभम के माता-पिता ने कई डाॅक्टरों को दिखाया, एंटीबायोटिक्स खिलाईं जिससे कोई फायदा नहीं हुआ। कुछ ब्लड टेस्ट कराए जिनमें हीमोग्लोबिन की कमी के अलावा कोई बड़ा कारण सामने नहीं आया। शुभम के माता-पिता सबसे ज्यादा इस बात से परेशान थे कि उनके बच्चे का वजन और कद-काठी नहीं बढ़ रहे हैं। जगह-जगह हाथ-पैर मारकर थक चुके माता-पिता को किसी ने सलाह दी कि एक बार किसी अच्छे गैस्ट्रोएंट्रोलाॅजिस्ट को भी दिखा लें। इस सलाह पर माता-पिता शुभम को आगरा गैस्ट्रो लिवर सेंटर लेकर पहुंचे और वरिष्ठ गैस्ट्रोएंट्रोलाॅजिस्ट डाॅ. समीर तनेजा से मिले। दो से तीन साल तक भटकने के बाद शुभम अब ठीक है और माता-पिता भी राहत में हैं। बच्चे का वजन और कद-काठी दोनों बढ़ना शुरू हो गई हैं। दवाएं अभी भी चल रही हैं जो कुछ दिनों बाद बंद हो जाएंगी। अच्छे से खाता है और पेट दर्द की शिकायत भी नहीं करता। दरअसल शुभम सीलिएक रोग का शिकार था, जिसका पता डाॅ. समीर तनेजा ने लक्षणों, जांचों और अपने अनुभव के आधार पर लगाया। न सिर्फ शुभम बल्कि काफी संख्या में बच्चे सीलिएक रोग के शिकार हैं। जागरूकता की कमी इसके इलाज में बड़ी बाधा है। अगर समय से इस बीमारी का पता लगा लें तो थोड़े से परहेज से ही बच्चे की ग्रोथ अच्छी होती है और सामान्य जीवन जीता है।

क्या है और क्यों होती है सीलिएक बीमारी

अब आप सोच रहे होंगे कि ये सीलिएक बीमारी आखिर है क्या और क्यों होती है। डाॅ. समीर तनेजा बताते हैं कि ग्लूटेन नामक प्रोटीन के कारण सीलिएक बीमारी होती है जो रोगी को पेट की समस्याओं से परेशान रखती है। सीलिएक से पीड़ित लोगों को गेंहू और जौ में माजूद ग्लेटेन नामक प्रोटीन से एलर्जी होती है।

10-12 वर्ष की आयु तक पता लगना जरूरी

विशेषज्ञ कहते हैं कि इस बीमारी का पता अगर 10 से 12 वर्ष की आयु तक लगा लिया जाए तो बेहतर है। इससे जल्दी इलाज शुरू हो जाता है और बच्चे का समग्र विकास होता है। हालांकि जागरूकता की कमी इसमें बड़ी बाधा है। माता-पिता को आभास नहीं होता और वे एक से दूसरे डाॅक्टर पर जाते रहते हैं। एंटीबायोटिक्स खिलाते रहते हैं। जांचों में भी बीमारी सामने न आने से इलाज सही दिशा नहीं पकड़ता।

ई सेलिब्रिटीज भी हैं शिका

हाल ही में मिस यूनिवर्स बनीं हरनाज संधू, टेनिस के विश्वविख्यात खिलाड़ी नोवाक जोकोविच समेत कई सेलिब्रिटीज भी इस बीमारी से पीड़ित हैं, लेकिन समय से बीमारी का पता कर लेने और उसके बाद डाॅक्टरों की देखरेख और खाने में परहेज की मदद से वे एकदम सामान्य जिंदगी जी रहे हैं। यह इस बात का भी उदाहरण है कि यह इलाज और परहेज आपको किसी भी तरह की शारीरिक या मानसिक दुर्बलता का शिकार नहीं होने देता।

डाइजेस्टिव ट्रैक्ट को करती है क्षतिग्रस्त

सीलिएक जानलेवा नहीं है, लेकिन समय रहते इलाज नहीं होने पर यह दूसरे जटिल रोगों में तब्दील हो सकती है। ग्लूटेन हमारी डाइजेस्टिव ट्रैक्ट की आंतरिक झिल्ली को क्षतिग्रस्त करता है, जिससे पोषक तत्व अवशोषित नहीं हो पाते और पेट संबंधी बीमारियां होने लगती हैं।

क्षण और जांच

दस्त, पेट फूलना, भूख ज्यादा या कम लगना, शरीर का विकास रूक जाना, खून की कमी, कार्यक्षमता में कमी और बच्चे की ग्रोथ रूक जाना, पेट दर्द रहना इस बीमारी के मुख्य लक्षण हैं। रोग लंबे समय तक रहने पर आंतों के कैंसर और लिम्फोमा का खतरा हो जाता है। एक साधारण ब्लड टेस्ट से इस रोग का पता लग जाता है और पुष्टि के लिए एंडोस्कोपी की जाती है।

ग्लूटेन से करें बचाव

डाॅ. समीर ने बताया कि ग्लूटेन के मामले में सजगता ही इस बीमारी से बचाव है। ग्लूटेन की एलर्जी मुख्य रूप से आंतों को प्रभावित करती है। आहार में ग्लूटेन के स्त्रोतों को हटाकर उनकी जगह ग्लूटेन मुक्त पौष्टिक आहार शामिल किए जा सकते हैं। आजकल ग्लूटेन रहित कई तरह के आटे भी बाजार में उपलब्ध हैं। गेंहू के आटे की जगह बेसन, चावल, मक्का, ज्वार, बाजरा, सोयाबीन, साबुदाना, राजगिरी, कुट्टू व सिंगाड़े के आटे से बनी रोटी, सभी प्रकार की फलियां, फल सब्जियां आदि उत्पाद भोजन में शामिल किए जा सकते हैं। बहुत मन होने पर मीठे में खीर, गाजर या मूंग का हलवा, शहद, गुड़, घर में बनी मावे की मिठाई, रबड़ी, बेसन के लड्डू खाए जा सकते हैं।

इन खाद्य पदार्थों से भी रखें दूरी

खाने में गेंहू, जौ से बनी चीजों जैसे मैदा, आटा, सूजी और कस्टर्ड आदि से परहेज रखें। बाजार में मिलने वाले बिस्किट, पेटीज, नूडल्स, पास्ता, ब्रेड, गेंहू के फ्लेक्टस, सूप पाउडर, चाॅकलेट आदि से भी परहेज रखें।

गैस्ट्रोएंट्रोलाॅजिस्ट, डायटीशियन के संपर्क में रहें

हालांकि कुछ भी खाने-पीने और दवाओं के लिए आपको गैस्ट्रोएंट्रोलाॅजिस्ट के साथ ही डायटीशियन के नियमित संपर्क में रहना है। मनमर्जी से खाना आपको मुसीबत में डाल सकता है।

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