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Goverdhan Puja celebration in Agra

आगरालीक्स…. आगरा में आज गोवर्धन पूजा होगी, विशाल गोवर्धन पर्वत का सूक्ष्म रूप कॉलोनी और घरों में बनाया जाएगा, शाम को गिर्राज महाराज के जयकारे लगेंगे, शुभ मुहूर्त और गोवर्धन पूजा।
कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा यानी दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। इस बार गोवर्धन पूजा का पर्व 31 अक्टूबर, सोमवार को है। जानिए गोवर्धन पूजा की सरल विधि-
पूजन विधि
गोवर्धन पूजा का पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाया जाता है। सुबह घर के द्वार पर गोबर से प्रतीकात्मक गोवर्धन पर्वत बनाएं। इस पर्वत के बीच में पास में भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति रख दें। अब गोवर्धन पर्वत व भगवान श्रीकृष्ण को विभिन्न प्रकार के पकवानों व मिष्ठानों का भोग लगाएं। साथ ही देवराज इंद्र, वरुण, अग्नि और राजा बलि की भी पूजा करें।

शुभ मुहूर्त
सुबह 06:20 से 07:20 बजे तक
सुबह 09:20 से 10:30 बजे तक
दोपहर 01:30 से 2:00 बजे तक
दोपहर 02:50 से 04:10 बजे तक
शाम 04:10 से 05:30 बजे तक
यह है कथा
एक बार भगवान श्रीकृष्ण अपने सखाओं, गोप-ग्वालों के साथ गाएं चराते हुए गोवर्धन पर्वत की तराई में जा पहुंचे। वहां उन्होंने देखा कि नाच-गाकर खुशियां मनाई जा रही हैं। जब श्रीकृष्ण ने इसका कारण पूछा तो गोपियों ने कहा- आज मेघ व देवों के स्वामी इंद्र का पूजन होगा। पूजन से प्रसन्न होकर वे वर्षा करते हैं, जिससे अन्न पैदा होता है तथा ब्रजवासियों का भरण-पोषण होता है। तब श्रीकृष्ण बोले- इंद्र में क्या शक्ति है? उससे अधिक शक्तिशाली तो हमारा गोवर्धन पर्वत है। इसी के कारण वर्षा होती है। हमें इंद्र से भी बलवान गोवर्धन की ही पूजा करना चाहिए।
तब सभी श्रीकृष्ण की बात मानकर गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे। यह बात जाकर नारद ने देवराज इंद्र को बता दी। यह सुनकर इंद्र को बहुत क्रोध आया। इंद्र ने मेघों को आज्ञा दी कि वे गोकुल में जाकर मूसलधार बारिश करें। बारिश से भयभीत होकर सभी गोप-ग्वाले श्रीकृष्ण की शरण में गए और रक्षा की प्रार्थना करने लगे। गोप-गोपियों की पुकार सुनकर श्रीकृष्ण बोले- तुम सब गोवर्धन-पर्वत की शरण में चलो। वह सब की रक्षा करेंगे। सब गोप-ग्वाले पशुधन सहित गोवर्धन की तराई में आ गए। श्रीकृष्ण ने गोवर्धन को अपनी उंगली पर उठाकर छाते-सा तान दिया।
गोप-ग्वाले सात दिन तक उसी की छाया में रहकर अतिवृष्टि से बच गए। सुदर्शन चक्र के प्रभाव से ब्रजवासियों पर एक जल की एक बूंद भी नहीं पड़ी। यह चमत्कार देखकर ब्रह्माजी द्वारा श्रीकृष्णावतार की बात जान कर इंद्रदेव अपनी मूर्खता पर पश्चाताप करते हुए कृष्ण से क्षमा याचना करने लगे। श्रीकृष्ण ने सातवें दिन गोवर्धन को नीचे रखा और ब्रजवासियों से कहा कि- अब तुम प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा कर अन्नकूट का पर्व मनाया करो। तभी से यह पर्व गोवर्धन पूजा के रूप में प्रचलित है।

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