Health Alert : Diagnosis & Treatment of IBS by Gastroenterologist DR Vineet Chauhan
आगरालीक्स…एक ऐसी बीमारी है जिसका कारण नहीं पता, जांचों में भी कुछ नहीं आता, लिहाजा आप डाॅक्टर बदलते रहते हैं, दिमाग से भी है इसका कनेक्शन, कहीं आप तो नहीं इसके शिकार जानिए जाने-माने गैस्ट्रोएंट्रोलाॅजिस्ट डाॅ. विनीत चौहान से…
अगर आपको लगातार पेट दर्द, पेट फूलने, कब्ज या गैस की शिकायत रहती है और बार-बार डाॅक्टर या दवाएं बदलने से भी आराम नहीं आ रहा तो आगरा गैस्ट्रो लिवर सेंटर जा सकते हैं। यह आईबीएस यानि इरीटेबल बाउल सिंड्रोम भी हो सकता है। आगरा में 40 साल से अधिक आयु वर्ग के लोग इसकी शिकायत लेकर आते थे लेकिन अब इससे कम आयु में भी लोग डाॅक्टरों के पास पहुंच रहे हैं। इसलिए हमने इस विषय के एक्सपर्ट डाॅ. विनीत चौहान से बात की और आईबीएस को ठीक से समझने की कोशिश की। आप भी पढ़ें कि आखिर आईबीएस किस बला का नाम है।
लोगों को इसकी समझ होना जरूरी
डाॅ. विनीत चौहान बताते हैं कि इरीटेबल बाउल सिंड्रोम या आईबीएस। इस बीमारी के बारे में बात करना जरूरी है क्योंकि इसकी समझ कई लोगों को नहीं है और इसके कारण तो कई बार डाॅक्टरों को भी असमंजस में डाल देते हैं। इसलिए इस पर आज भी रिसर्च जारी हैं। इसके बारे में बात की जानी चाहिए, क्योंकि यह बहुत ही ज्यादा लोगों को है। 40 साल से अधिक आयु वाले लगभग 15 से 20 फीसद लोग इसके शिकार हैं जबकि अब कम उम्र में भी होती है।
ये क्यों होता है, इसके लक्षण क्या हैं
आईबीएस एक बीमारी है जिसमें आंतों की परेशानी होती है। मरीज पेट फूल जाने, पेट में गैस बनना, खाने के बाद पेट में दर्द होना, पूरे दिन पेट में हल्का दर्द महसूस होना, कब्ज और दस्त की शिकायत रहना। इस बीमारी से पीडित कुछ लोगों को कब्ज तो कुछ को दस्त की शिकायत लगातार बनी रहती है। आगरा में आईबीएस से कब्जियत की शिकायत वाले ज्यादा हैं।
तीन से चार मुख्य कारण पर अभी रिसर्च जारी
ऐसे तो आईबीएस क्यों होता है इस पर आज भी रिसर्च चल रहा है लेकिन तीन या चार प्रमुख कारण हैं। हमारी आंतें पेट में छह से सात मीटर तक पाइप की तरह होती हैं। खाने को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाने के लिए आंतों में कुछ नसें वाइब्स देती हैं। यही वाइब्स जब हाइपर एक्टिव हो जाती हैं तो आंतों में दर्द होता है। इसे आईबीएस में विसरल हाइपर सेंसिटिविटी कहा जाता है। यही मुख्य कारण है लेकिन इसके अलावा और कारण हैं जैसे पेट में या शरीर में इनफेक्शन होने के बाद मरीज लगातार कहते रहते हैं कि डाॅक्टर साहब पेट में दर्द या गैस बनी रहती है। कोरोना के बाद भी कई लोग आईबीएस से पीडित हो गए हैं। कुछ लोगों को अलग अलग खाने से एलर्जी होती है उनमें भी आईबीएस जैसे लक्षण आ सकते हैं। आज कल तनाव की वजह से ये युवाओं में भी हो रहा है, जब आप दिमागी तौर पर तनाव ज्यादा महसूस करते हैं तो इसका असर पेट की नसों पर भी आता है।
जांचें हैं लेकिन डाॅक्टरों की समझ ज्यादा काम आती है
इसके लिए कुछ जांचें की जाती हैं जैसे अल्ट्रासाउंड, एंडोस्कोपी और कुछ ब्लड टेस्ट, लेकिन इन जांचों के बाद भी कुछ समझ आना मुश्किल है। डाॅक्टर इसे सुनकर ही पता लगा सकते हैं। इसीलिए कई बार मरीज को समझाना मुश्किल हो जाता है कि उन्हें आईबीएस है, क्योंकि मरीजों को रिपोर्ट में गड़बड़ दिखनी चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं है यह सिर्फ लक्षणों से समझ में आता है।
जड़ से खत्म नहीं पर नियंत्रित कर सकते हैं
शुगर और बीपी की तरह यह भी लाइफ लांग है। समझना जरूरी है कि कुछ लोगों में तो यह कुछ समय में ठीक हो सकता है जबकि अधिकांश लोगों में यह 10 से 15 साल तक भी लगातार हो सकता है। शुगर और बीपी की तरह ही इसे नियंत्रित किया जा सकता है। आईबीएस को जड़ से मिटाने की दवाएं आज तक नहीं बनी हैं लेकिन नियंत्रित करने की दवाएं हैं। अक्सर देखा गया है कि मरीज परेशान हो जाते हैं और वे लगातार डाॅक्टर बदलते हैं, लेकिन ऐसा करना भी ठीक नहीं है। क्योंकि तीन से चार दवाओं का काॅम्बिनेशन बार-बार अलग करना पड़ता है। इस अलग-अलग काॅम्बिनेशन में किसी को कोई दवा फायदा करती है तो किसी को कोई और दवा। खाने पीने का परहेज जरूरी है।