आगरालीक्स…याद है वो बचपन वाली राखी. मोटी और बड़ी सी फोम वाली. ऊपर शुभ—लाभ या मैरे भैया…कुछ ऐसे मनाया जाता था रक्षाबंधन. आप भी शेयर करें अपने विचार (Raksha Bandhan 2024)
परिवर्तन संसार का नियम है और परिवर्तन होना भी जरूरी है. आज आधुनिक दौर है जहां हर हाथ में मोबाइल है. दूर देश में बैठकर भी वीडियो कॉल और फोन करके हालचाल लिया जा सकता है. रक्षाबंधन का पर्व भी आधुनिक हो गया है. अब आनलाइन बैठकर भी बहनें अपने भाई को राखी भेज सकती हैं तो वहीं भाई भी अपनी बहनों के लिए खूबसूरत गिफ्ट्स आनलाइन ही सेंड कर सकते हैं. आजकल तो राखियों में भी एक से एक बेहतरीन डिजाइन आ गई हैं. पतली सी और सुंदर सी दिखने वाली राखी भाई अपनी कलाई पर बांधते हैं. यही पसंद की जा रही हैं. (Raksha Bandhan Special)
लेकिन मोबाइल के इस युग से पहले रक्षाबंधन अपने अलग ही अंदाज में मनाया जाता था. याद है बचपन वाली वो राखी…एक मोटी सी फोम वाली राखी जिस पर ऊपर या तो मेरे भैया लिखा होता था या फिर शुभ—लाभ. दो रुपये से लेकर पांच रुपये तक की ये मोटी सी और बड़ी सी राखियां पास की ही दुकानों पर मिला करती थीं. ये वो दौर था जब राखी बंधवाने का इतना शौक था कि जब तक कलाई से कोहनी तक राखियां न होती थीं तो चैन नहीं पड़ता था. छोटे—छोटे भाई भी अपनी छोटी—छोटी बहनों को वही ट्रैक्टर छाप पांच रुपये का कागज का नोट देते थे जिसे पाकर बहनें इतनी खुश हो जाया करती थीं जैसे उन्हें कुबेर का खजाना मिल गया हो. (Rakhi Designs in Agra)
दही—सेवइयां और दाल—चावल के साथ खीर पूड़ी
रक्षाबंधन वाले दिन खाना भी स्पेशल होता था. सुबह जहां दही सेवइयां और दाल चावल बनाए जाते थे तो वहीं शाम के समय खीर पूड़ी का दौर चलता था. उस समय बाजारीकरण की हवा कोसों दूर थी. (Designer Rakhis in Agra)
चीजें बदलीं तो संस्कार भी बदल गए
वर्तमान समय में राखी का पर्व भी बदल गया है. अब घरों में खीर पूड़ी की जगह बाजार में जाकर पिज्जा बर्गर और मोमोस फेवरेट हो गए हैं. राखियां भी कोरियर होने लगी हैं तो बहनों के लिए आनलाइन गिफ्ट आता है. दस का नोट सौ गुना बढ़ाकर आनलाइन पेमेंट किया जाने लगा है. चेहरे पर मुस्कुराहट अब मिलने से ज्यादा कैशबैक से छाने लगी है.