आगरालीक्स… वसंत पंचमी (सरस्वती जयंती) 16 फरवरी को मनाई जाएगी। रेवती नक्षत्र शुभ योग के कारण शुभ संयोग रहेगा। पूरे दिन पंचमी मान्य रहेगी। यह विवाह का अनबूझा (स्वयंसिद्ध) मुहूर्त भी है। आगरालीक्स में जानिये वसंत पंचमी की विस्तृत जानकारी।
श्री गुरु ज्योतिष शोध संस्थान अलीगढ़ के अध्यक्ष एवं ज्योतिषाचार्य पं. हृदय रंजन शर्मा के अनुसार यह दिन वसंत ऋतु के आरंभ का दिन होता है। इस दिन देवी सरस्वती और ग्रंथों का पूजन किया जाता है। बालक-बालिका इस दिन विद्या का आरंभ करते हैं। संगीतकार अपने वाद्ययंत्रों का पूजन करते हैं। स्कूल और गुरुकलों में सरस्वती और वेद पूजन किया जाता है। सभी शुभ कार्य किए जाते हैं।
शिक्षा ही मनुष्य को सबसे अलग करती है
मान्यता है कि मनुष्य की रचना करने के बाद ब्रह्माजी ने अनुभव किया कि केवल इससे ही सृष्टि को गति नहीं दी जा सकती है। विष्णु से अनुमति लेकर उन्होंने एक चतुर्भुजी स्त्री की रचना, जिसके एक हाथ में वीणा और दूसरे हाथ वर मुद्रा में था। अन्य दोनों हाथों में पुस्तक और माला थी। शब्द के माधुर्य होने और रस से युक्त होने के कारण इनका नाम सरस्वती पड़ा।
सृष्टि को मिली वाणी
सरस्वती ने जब अपनी वीणा को झंकृत किया तो समस्त सृष्टि में नाद की पहली अनुगूंज हुई। बह्माजी की मूक सृष्टि में ध्वनि का संचाल होने लगा। हवा, सागर, पशु-पक्षियों और अन्य जीवों को वाणी मिल गई। इससे ब्रह्माजी बहुत प्रसन्न हुए उन्होंने सरस्वती को वाणी की देवी के नाम से संबोधित करते हुए वागेश्वरी का नाम दिया।
मां सरस्वती की पूजन विधि
ज्ञान और वाणी के बिना संसार की कल्पना करना असंभव है। माता सरस्वती इनकी देवी हैं। अतः मनुष्य ही नहीं देवता और असुर भी माता की भक्ति भाव से पूजा करते हैं। सरस्वती पूजा करते समय माता की प्रतिमा अथवा तस्वीर को सामने रखना चाहिए। इसके बाद कलश स्थापित कर गणेशजी तथा नवग्रह की विधिवत पूजा करनी चाहिए। इसके बाद माता सरस्वती को आचमन और स्नान कराएँ। इसके बाद माता पर फूल चढ़ाएं और माता की पूजा कर श्रंगार की वस्तुएं अर्पित करें। चरणों में गुलाल अर्पित करें। माता को श्वेत वस्त्र पहनाएं। माता को पीले रंग का फल चढ़ाएं। माता को मालपुए अथवा खीर का भोग लगाया जाता है। हवन के बाद सरस्वती की माता की आरती करें और हवन की भभूत लगाएं।
श्रीकृष्ण ने की सरस्वती की प्रथम पूजा
इन दिन सरस्वती की पूजा करने के पीछे पौराणिक कथा है कि इनकी पूजा सबसे पहले श्रीकृष्ण और ब्रह्माजी ने की।
शक्ति के रूप में भी मां सरस्वती
पुराणों और अन्य ग्रंथों में भी सरस्वती की महिमा का वर्णन किया गया है। इन धर्मग्रंथों मे देवी सरस्वती को सतरूपा, शारदा, वीणावादिनी, वाग्देवी, भारती, प्रज्ञापारमिता, वागीश्वरी, हंसवाहिनी आदि नामों से संबोधित किया गया है। दुर्गा सप्तशती में मां आदिशक्ति के महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती रूपों का वर्णन और महातम्य बताया गया है।
कुंभकर्ण की नींदा का कारण बनीं सरस्वती
कहते हैं देवी से वर प्राप्त करने के लिए कुंभकर्ण ने दस हजार वर्षों तक गोवर्ण में घोर तपस्या की, जब ब्रह्मा वर देने को तैयार हुए तो देवों ने निवेदन किया कि आप इसको वर तो दे रहे हैं लेकिन यह आसुरी प्रवृत्ति का है और अपने ज्ञान और शक्ति का कभी भी दुरुपयोग कर सकता है, तब ब्रह्मा ने सरस्वती का स्मरण किया। सरस्वती राक्षस की जीभ पर सवार हुईं। सरस्वती के प्रभाव से कुंभकर्ण ने ब्रह्मा से निंद्रा का वरदान मांगा और जब जागा तो भगवान श्रीराम उसकी मुक्ति का कारण बने।