आगरालीक्स…क्या अत्यंत आवश्यक है पितरों का श्राद्ध करना। कितनी पीढ़ियों का कर सकते हैं श्राद्ध, श्राद्ध पक्ष, समय उसके क्या हैं नियम।
श्री गुरु ज्योतिष शोध संस्थान, गुरु रत्न भंडार के स्वामी ज्योतिषाचार्य पंडित ह्रदय रंजन शर्मा बताते हैं कि श्राद्ध करना अत्यंत आवश्यक है, चाहे अपने सामर्थ्य अनुसार थोड़ा या ज्यादा जो आसानी से कर सके परंतु करें अवश्य। श्राद्ध केवल सुयोग्य ज्ञानी ब्राह्मण को घर बुलाकर प्रातः 11:30 बजे से दोपहर 1:30 बजे के बीच ही करना सर्वोत्तम माना जाता है
श्राद्ध के नियम
श्राद्ध माता पिता की तीन तीन पीढ़ियो का किया जा सकता है जैसे माता-पिता, दादा-दादी, परदादा, परदादी इस प्रकार नाना ,नानी, परनाना , परनानी का श्राद्ध किया जा सकता है श्राद्ध करने के अधिकारी-क्रमशः यदि कई भाई पुत्र हो तो बड़ा पुत्र या सबसे छोटा भाई पुत्र विशेष परिस्थितियों में बड़ी भाई की आज्ञा से छोटा भाई यदि संयुक्त परिवार हो तो ज्येष्ठ पुत्र के द्वारा एक ही जगह श्राद्ध संपन्न हो सकता है और यदि पुत्र अलग-अलग रहते हो तो उन्हें वार्षिक श्राद्ध अलग अलग ही करना चाहिए यही सर्वोत्तम है।
शास्त्रों में श्राद्ध करने का क्रम
यदि पुत्र ना हो तो शास्त्रों में श्राद्ध करने का क्रम इसी प्रकार से निर्धारित है पुत्र, पौत्र,प्रपौत्र ,धेवता, पत्नी,भाई, भतीजा, पिता माता, पुत्र वधू ,बहन ,भांजा सपिंड अपने से लेकर 7 पीढी तक का परिवार शोदक (आठवीं से लेकर 14 पीढ़ी के परिवार) श्रादृ दिवंगत पूर्वजों की मृत्यु तिथि के अनुसार सुयोग्य ब्राह्मण कोघर बुलाकर काले तिल गंगाजल सफेद फूलों से पूजा करा कर नाम गोत्र उच्चारण करवाकर संकल्प आदि करवाकरकरें इसके उपरांत ब्रह्माण को वस्त्र जनेऊ फल मिठाई दक्षिण सहित संतुष्टि करवा कर ही बिदा करें।
ब्राह्मणों का संतुष्ट होना जरूरी
ब्राह्मण की संतुष्टि तथा प्रसन्नता से हीपितर पूर्वज संन्तुष्टहोते हैं तथा वंशजों को आशीर्वाद देकर अपने लोकको बिदा होते हैं परंतु ब्राह्मण पूरे दिन में एक ही व्यक्ति के नाम का भोजन करें अन्यथा वह भी पाप का भागी बनेगा।
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श्राद्ध सायंकाल और रात्रि में निषेध
श्राद्ध सदा मध्याहन काल यानी 11:30 बजे से दोपहर 01:30 बजे के बीचही सर्वोत्तम माना जाता है प्रातः काल सॉय काल तथा रात्रि में श्राद्ध करना निषेध है श्राद्ध में तुलसी ,जौ,काले, तिल पुष्प, चावल ,उर्द की दाल का भोजन तथा गंगा जल व दूध की खीर या मेवा कादूध का प्रयोग मूली व पकवान का प्रयोग करना अति आवश्यक है।
तिथियों पर ध्यान दिया जाना चाहिए
श्राद्ध केवल मृत्यु तिथि वाले दिन ही करें यदि भूल वश तिथि निकल जाए तो अंतिम दिन यानी अमावस्या को श्राद्ध करना उत्तम रहेगा ,पूर्णिमा के दिन मृत्यु हुए दिवंगत का श्राद्ध पूर्णिमा तिथि को ही करें परंतु चतुर्दशी के दिन किसी की मृत्यु हुई हो तो श्राद्ध अमावस्या को ही करना शुभ होता है जिन व्यक्तियों की मृत्यु हथियार से यानी हत्या हुई हो विषजहरया जलकर मरने से दुर्घटना से या आत्महत्या द्वारा मृत्यु हुई होतो उनके लिए श्रादृ चतुर्दशी तिथि को ही करना चाहिए जिनकी मृत्यु तिथिन पता होया जो व्यक्ति घर छोड़ कर चले गए हो तो उनका श्राद्ध अमावस्या तिथि परही करना चाहिए जिनके पितर पूर्वज सन्यासी या बनवासी हो गए हो तो उन्हें द्वादशीके दिनहीश्रादृ करना सर्वोत्तम होता है