क्ले को डिसटिल्ड वॉटर में घोलकर गाढ़ा लेप (पेस्ट) तैयार किया जाता है। इसमें बहुत ही माइल्ड सॉल्ट (1.2) एवं आवश्यकतानुसार पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए अवशेष मात्रा में उपयुक्त कार्बनिक रसायन मिलाया जाता है। इस पेस्ट को मार्बल सतह पर ब्रश की सहायता से लगाया जाता है और पॉलीथिन शीट से ढंक दिया जाता है और लगभग 48 घंटे के लिए छोड़ दिया जाता है। इस प्रक्रिया के दौरान मार्बल सतह पर जमा हानिकारक एसीडिक जमा पदार्थों को क्ले द्वारा अवशोषित/अधिशोषित हो जाते हैं। पूरी तरह सूख जाने पर यह क्ले स्वतः ही निकलने लगता है। बचे हुए क्ले को ब्रश द्वारा साफ कर दिया जाता है और अंत में डिसटिल्ड वॉटर द्वारा साफ कर दिया जाता है।
वरिष्ठ अधिवक्ता केसी जैन उपलब्ध करायी गयी सूचना में बताया गया कि ताज महल के निर्माण में मुख्य रूप से मार्बल का प्रयोग किया गया है। मार्बल सतह पर मड थेरेपी के सम्बन्ध में समय समय पर स्थल पर अध्ययन किया गया और उसी के आधार पर यह निष्कर्ष निकला कि मड थेरेपी एक सुरक्षित प्रक्रिया है क्योंकि इसमें कोई भी हानिकारक रसायनों का उपयोग नहीं किया जाता है।
अगली बार ताज महल की कब मड थेरेपी होगी उस सम्बन्ध में सूचना में बताया कि निकट भविष्य में प्रस्तावित करने का निर्णय उच्च अधिकारियों से आदेश/निर्देश के उपरांत लिया जाएगा।
मड थेरेपी पर हुये व्यय का विवरण भी सूचना में उपलब्ध कराया गया है जिसके अनुसार वर्ष 2007-08, 2008-09 के उपरांत वर्ष 2015-16, 2016-17, 2017-18, 2018-19, 2020-21, 2021-22 व 2022-23 में मड थेरेपी से ताजमहल की दीवारों की सफाई की गयी। इसके लिए अब तक 1.74 करोड़ से ज्यादा खर्चा भी हुआ है.
अधिवक्ता जैन द्वारा बताया गया कि एएसआई आगरा की विज्ञान शाखा के तत्कालीन अधीक्षण पुरातत्व रसायनज्ञ डॉ. एमके भटनागर द्वारा वर्ष 2017 में ताजमहल के सम्बन्ध में ससपेन्डड पर्टिकुलेट मेटर के प्रारम्भिक अध्ययन में यह लिखा था किः यह मिट्टी का पैक उपचार बार-बार करने के लिए संभावना नहीं है क्योंकि यह संभावना है कि मार्बल सतह की स्थिरता को थोड़ी सी प्रकार में प्रभावित कर सकता है और यहां तक कि राष्ट्र की पर्यटन गतिविधियों के कारण, निरंतर कार्यान्वयन की एक छोटी सी विधि का हिस्सा बनने के लिए स्कैफफोल्डिंग का स्थापन किया जा रहा है, जो एक समय सीमित हस्तांतरण का हिस्सा बन जाएगा।
वर्ष 2017 के किये गये अध्ययन के प्रकाश में अधिवक्ता जैन ने मांग की कि ताजमहल की दीवारों पर पुनः-पुनः मड थेरेपी किया जाना सुरक्षित नहीं होगा और ताजमहल के लिये वायु गुणवत्ता का सुधार आवश्यक है। आईआईटी कानपुर ने ताजमहल के प्रदूषणकारी तत्वों के अध्ययन में यह भी सिफारिश की है कि यमुना नदी में पानी रहना चाहिए ताकि 10-50 पीएम के कण ताजमहल की दीवारों को खराब न करें। इसके लिए यमुना में बैराज होना और यमुना की सफाई की मांग भी आवश्यक है।
जब भी ताजमहल की दीवारों, मीनारों या गुम्बद पर मड थेरेपी की जाती है तो उसके लिए स्केपहोल्डिंग लगानी होती है जो ताजमहल की दृष्यता को प्रभावित करती है और पर्यटक ताज के अप्रतिम सौंदर्य को भी नहीं देख पाते हैं।