आगरालीक्स…शादियों में सड़क पर निकलने वाली बारातें बन रही हैं परेशानियों की वजह? आगरा के हिन्दुस्तान इंस्टिट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट एंड कंप्यूटर स्टडीज के निदेशक के विचार पढ़ें और अपनी राय दीजिए…
शादियां तो खुशी का अवसर होती हैं। इनसे भला किसी को डर भी लग सकता है क्या? जवाब है हां! दिल के मरीज एक बुजुर्ग उन धमाकों से डरते हैं जो बारात में आतिशबाजी के नाम पर उनके दरवाजे पर किए जा रहे हैं। दिन भर की भागदौड़ के बाद चैन की नींद चाहने वाला एक आम नागरिक उन डीजे वाले बाबू से डरता है जो रात 12 बजे सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की धज्जियां उड़ा रहे हैं। किसी दुकान, शोरूम या कंपनी में काम करने वाली एक कामकाजी मां उस जाम से डरती है जो खुशियों का नगाड़ा पीटती हुई उनकी स्कूटी से आगे चल रही है और इस मां को अपने बच्चों से मिलने से रोक रही है। शादी किसी का मिलन, किसी का शौक, किसी की खुशी, किसी के नाचने—गाने की वजह है तो किसी के लिए भय और चिंता का कारण भी है।
हिन्दू धर्म में विवाह एक मांगलिक कार्य है। इसमें सात फेरे होते हैं, हर फेरे के साथ एक वचन होता है। विवाह की विशेषता होती है आशीर्वाद। वैवाहिक जीवित कार्यक्रम के दौरान अग्नि को साक्षी मानकर भावी सुखमय दाम्पत्य जीवन की कामना के उद्देश्य से ब्राह्मणों, गुरूजनों, बंधु-बान्धवों, माता-पिता एवं अभ्यागतों के द्वारा वर-वधू को आशीष वचन (आशीर्वाद) दिए जाने की परम्परा अत्यन्त प्राचीन एवं प्रशंसनीय है। ऐसा ही एक आशीर्वाद है— युवयोः वैवाहिकजीवने सर्वदा शुभं भवतु। अर्थात आपके वैवाहिक जीवन में हमेशा शुभ हो। लेकिन क्या किसी ने सोचा है कि इतनी सब मान्यताओं, परंपराओं, वैदिक मंत्रोच्चार, अनुष्ठानों के बाद शादियां सफल क्यों नहीं हो रही हैं ? न्यायालयों में तलाक के इतने केस क्यों हो दाखिल हो रहे हैं? जो लोग एक विवाह के सभी धार्मिक, आध्यात्मिक और वैदिक महत्व को मानेंगे उन्हें यह मानने में भी कोई शंका नहीं होगी कि इतने पवित्र रिश्ते में दरार और उनके टूटने के कारणों में एक विवाह में आशीर्वाद के बदले जाने—अनजाने किसी की बदकामना लेना भी है। अब सवाल यह है कि इतने शुभ अवसर पर नव दंपति के लिए कोई बदकामना क्यों करेगा ? दरअसल यह बदकामना वर—वधु के लिए सीधे तौर पर तो नहीं होती लेकिन एक विवाह के दौरान जाम, प्रदूषण में फंसे अनगिनत लोगों, आतिशबाजी से परेशान बीमारों, बुजुर्गों, पढ़ाई न कर पाने वाले बच्चों, दिन भर भागदौड़ के बाद चैन की नींद भी न ले पाने वाले अभिभावकों के मन से जाने—अनजाने निकलती हैं।
दिन भर के थके—हारे लोग सो नहीं पाते
शादियों के इस सीजन में लोगों को चैन की नींद पाने के लिए आधी रात तक जागना पड़ रहा है। इसकी वजह घरों के आसपास बने पार्क और कम्यूनिटी सेंटरों में होने वाले शादी समारोहों में देर रात तक बजने वाले डीजे हैं। डीजे के शोर से बहुत न केवल बुजुर्गों को परेशानी हो रही है, बल्कि बच्चों के लिए पढ़ाई करना भी मुश्किल हो गया है। प्रतिबंध के बावजूद रात में बज रहे डीजे लोगों को सोने नहीं देते। नींद पूरी न हो पाने की वजह से उनका अगले दिन का शेड्यूल बिगड़ रहा है।
हार्ट और सांस के मरीज कैसे दुआएं दें
ऊंची आवाज वाले डीजे के कारण दिल के मरीजों समेत दूसरे रोगों के पीड़ितों को ज्यादा समस्या हो रही है। डीजे वाले बाबू सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की भी खुलेआम धज्जियां उड़ा रहे हैं। रात 10 बजे के बाद भी तेज आवाज में डीजे बजाने की शिकायतों के बावजूद पुलिस इन्हें बंद नहीं करवा पा रही है। वहीं विवाह कार्यक्रमों और बारातों में होने वाली आतिशबाजी के चलते ह्दय रोगी घबराए हुए हैं। बमों के तेज धमाके उनके मरम्मत वाले दिलों को दहला रहे हैं वहीं दमा—अस्थमा के मरीजों की सांसें आतिशबाजी के प्रदूषण से घुट रही हैं।
जाम में बर्बाद हो जाते हैं दो से तीन घंटे
छोटे शहरों में शादी—विवाह के लिए बारात निकालनी हो तो किसी अनुमति की जरूरत भी नहीं है। आगरा जैसे शहर में हाईवे से लेकर यमुना किनारा, एमजी रोड जैसे मुख्य मार्ग तक हलकान हैं। फतेहाबाद रोड पर एक के बाद एक बारातें निकल रही हैं। यातायात व्यवस्था को बनाए रखने के लिए अतिरिक्त पुलिस बल लगाया जाता है, लेकिन इतने रूट डायवर्जन किए जाते हैं कि आम आदमी असमंजस में पड़ जाता है। जहां गाड़ी मोड़ना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है क्योंकि अगले ही चौराहे पर एक और डायवर्जन उनका इंतजार कर रहा होता है। शहर के अंदरूनी इलाकों जैसे बेलनगंज, मोती गंज, दरेसी रावत पाड़ा, सुभाष बाजार, शाहगंज, जैसे संकरे मार्गों पर भी बारातें निकलने से लोगों के पास इन बारातों के पीछे चलने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। नेहरू नगर, कमला नगर, खंदारी, दयालबाग जैसे पॉश माने जाने वाले इलाकों में भी एक के पीछे एक बारात चलती है, जिससे शाम को ऑफिस से घर जाने वाले लोग घंटों जाम में फंसे रहते हैं। कई रास्ते बदलते हैं लेकिन इन दिनों किसी रास्ते से निकल पाना भी संभव नहीं हो पाता। यह लोग कैसे नव दंपति के लिए शुभ कामनाएं करें?
मैरिज होम न होटल, सड़क पर जहां मन चाहा वहीं तंबू गाड़ा
छोटे शहरों में कोई विवाह स्थलों के लिए भी मानो नियम या कानून हैं ही नहीं । विवाह के सीजन में आप जहां नजर उठाएंगे आपको सडकों पर शादी वाले टेंट खड़े मिल जाएंगे। आखिर इन्हें परमीशन कौन देता है? कैसे इतनी हिम्मत होती है कि सार्वजनिक मार्ग को घेर लिया जाता है? कई जगह एक साइड की सड़क रोक दी जाती है। कॉलोनियों में तो पूरी सड़क पर ही तंबू लग जाता है। बहुत से लोगों को मीलों घूमकर अपने घरों की ओर जाना पड़ता है।
धार्मिक एवं राजनीतिक जुलूस
धार्मिक एवं राजनीतिक जुलूस हमारे समाज में उत्सव और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। ये जुलूस एकता, जागरूकता और सांस्कृतिक धरोहर को प्रकट करते हैं। हालांकि, इन जुलूसों के आयोजन से उत्पन्न होने वाले प्रदूषण के पहलू को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। धार्मिक जुलूसों का उद्देश्य आस्था और परंपराओं को जन-जन तक पहुंचाना होता है। लेकिन इनके दौरान कई गतिविधियां पर्यावरण को प्रभावित करती हैं।
ध्वनि प्रदूषण
बड़े-बड़े लाउडस्पीकरों का उपयोग, डीजे संगीत, और पटाखों की आवाज से ध्वनि प्रदूषण फैलता है। इससे बुजुर्गों, बच्चों और बीमार व्यक्तियों को परेशानी होती है।
वायु प्रदूषण
पटाखों का इस्तेमाल और वाहनों से निकलने वाला धुआं वायु की गुणवत्ता खराब करता है। राजनीतिक जुलूस लोकतांत्रिक प्रणाली का एक हिस्सा हैं। लेकिन इन जुलूसों के दौरान भी पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
ट्रैफिक जाम और वायु प्रदूषण
जुलूस के कारण यातायात अवरुद्ध होता है, जिससे वाहनों से निकलने वाला धुआं वायु को दूषित करता है।
ध्वनि प्रदूषण: भाषणों, नारों, और माइक का अंधाधुंध उपयोग शहरी इलाकों में ध्वनि प्रदूषण बढ़ाता है।
समाधान और उपाय
पर्यावरण-अनुकूल गतिविधियां
धार्मिक आयोजनों में मिट्टी की मूर्तियों और प्राकृतिक सामग्री का उपयोग किया जाए।
कचरा प्रबंधन: जुलूस के दौरान बने कचरे को सही तरीके से इकट्ठा और निपटाया जाए।
ध्वनि सीमित करना: लाउडस्पीकर और पटाखों का सीमित और नियंत्रित उपयोग किया जाए।
जागरूकता अभियान: लोगों को पर्यावरण संरक्षण के महत्व के बारे में शिक्षित किया जाए।
जरा सोचिए
आज के समय में विवाह जैसा पावन सम्बन्ध अपना मूल्य खोता जा रहा है। विवाह-विच्छेद की समस्याएं दिन ब दिन बढ़ती जा रही हैं। लेकिन क्या हमने यह सोचा है कि इतने लोगों के आशिर्वाद व दुआओं के साथ संपन्न किसी भी सम्बन्ध का यह अंजाम क्यों हो रहा है? यह सोचनीय है!!!
परंतु जरा सोचिए विवाह स्थल पर जब तेज आवाज में डीजे बजता है या मेहमानों की गाड़ियों से सड़क जाम होती है तो उस सड़क पर चलने वाला हर व्यक्ति या विवाह स्थल के पास रहने वाले बच्चे, शिशु, बुजुर्ग या विद्यार्थी के ऊपर क्या गुजरती होगी। यह परेशान व्यक्ति नव विवाहित जोड़े को दुआएं देंगे या बद्दुआएं यह आप खुद ही सोच सकते हैं। अब इतनी बद्दुआएं लेकर कोई सम्बन्ध कैसे फल-फूल सकता है?
अपने प्रिय जोड़े की खुशी में शामिल होने के साथ समाज के अन्य लोगों का भी ध्यान रखें
- डीजे कम आवाज में तथा निर्धारित समय तक ही बजाएं।
- रिश्तेदारों के साथ कार शेयर करें जिससे प्रदूषण कम हो तथा पार्किंग कि समस्या भी कम हो।
- भोजन की बर्बादी न हो इसका ध्यान रखें।
- मंडप में लगे केले के पत्तों से प्रेरणा लें तथा दूल्हा-दुल्हन अपने अपने ससुराल में वृक्षारोपण करें और अपने संबंध को दिन प्रति दिन बढ़ते देखें।
विवाह की पवित्रता खो रही है
विवाह की पवित्रता कहीं खो गई है आज कल यह एक खेल बन चुका है बस दिखावा। दुख की बात यह कि माँ बाप भी लोगों को अपनी विलासिता दिखाने के चक्कर में अपने संस्कार भूल गए हैं। हम बच्चों को क्यों दोष दें? शादी सनातन धर्म में एक संस्कार है जो हमको सिखाता है कि हमको इस रिश्ते को प्यार से और समर्पण से निभाना है। उसके लिए अगर झुकना पड़े तो भी हमको रिश्ते की पवित्रता को बनाए रखने के लिए त्याग करना होगा। यह संस्कार हमारे हुआ करते थे अब तो माँ बेटी को कहती है अगर तेरा पति तुझको एक सुनाए तो तुम दो सुनाओ और सुनना मत घर आ जाना। करोड़ों की शादी १५ दिन भी नहीं चलती है। पढ़ाई इंसान को सभ्य बनाती है एगोइस्ट नहीं आप सुगढ़ ग्रहणी बन कर भी काम कर सकती हैं। आज कल बहुत सारी औरतें कर भी रही हैं।
मेरा कहना है की अगर हम सनातन की मर्यादाओं को नहीं जानेंगे और नहीं अपनायेंगे तो हम इसी चक्रव्यूह में फँसे रहेंगे! हमारा ये कर्तव्य है कि हम अपने शुभ अवसर को हर्ष उल्लास से मनाये लेकिन हमारा उल्लास किसी के लिए परेशानी और असुविधा का कारण नहीं बनना चाहिये। प्रशासन से भी अनुरोध हैं कि इस तरह के अवसरों पर समुचित बंदोबस्त करें ताकि आम जनता की सुरक्षा और सुविधा प्रभावित ना हो।
डॉ. नवीन गुप्ता
निदेशक, हिन्दुस्तान इंस्टिट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट एंड कंप्यूटर स्टडीज
(लेखक के निजी विचार)