नईदिल्लीक्स… धऱती के सबसे पास होने के कारण चंद्रमा हम पृथ्वीवासियों के लिए हमेशा से ही कौतूहल का विषय रहा है। मनुष्य काफी समय से इसके बारे में अध्ययन कर रहा है। उसकी चंद्रमा पर घऱ बसाने की भी योजना है। अभी हमें जो चांद दिखाई देता है, वह उसका एक हिस्सा है। पृथ्वी से चांद का दूसरा हिस्सा देख पाना संभव नहीं है। खगोलशास्त्री मानते हैं कि चंद्रमा की दोनों सतहों में बहुत अंतर है। वैज्ञानिकों ने चंद्रमा की दोनों सतहों बहुत अंतर का कारण भी पता कर लिया है।
चंद्रमा के दोनों हिस्सों की संरचना में अंतर
दरअसल चंद्रमा के दोनों हिस्सों की रासायनिक संरचना में बहुत अंतर। नेच जियोसांइस जर्नल में प्रकाशित एक शोध के अनुसार इस अंतर का संबंध चट्टानों की संरचना की विशेषता से है, जिसे वैज्ञानिक क्रीप कहते हैं। इसमें के का अर्थ पोटेशियम, री का मतलब रेयर अर्थ एलिमेंट यानी पृथ्वी पर बहुत कम पाए जाने वाले तत्व से है, जैसे सीरियम, डिप्रोसियम, एरीबियम, यूरोपियस जैसे तत्व शामिल हैं।
चंद्रमा के धब्बे कहलाते हैं मारिया
चंद्रमा के दोनों हिस्सों में एक और अंतर है। पृथ्वी से दिखने वाले हिस्से हमें कुछ गहरे और हल्के रंग के धब्बे दिखाई देते हैं। इन्हें मारिया नाम दिया गया है, जिसका अर्थ सागर होता है। पहले लगा था कि वास्तव में ये यह गहरे धब्बे ज्वालामुखी के हिस्से हैं। बहुत से खगोलशास्त्रियों को लगा कि चंद्रमा की दूसरी सतह भी कुछ ऐसी ही होगी। 150 और 1960 में सोवियत संघ के अंतरिक्ष यानों ने चंद्रमा के दूसरे हिस्से की तस्वीरें भेजी तो वैज्ञानिकों को भारी हैरानी हुई कि दोनों हिस्सों में कितना अंतर है। पिछले हिस्से में मारिया यानि सागर जैसे कुछ नहीं है।