
किस प्रकार का प्रेम संबंध की संभावना है, जो
की सेडोमेसोकिज्म (पर-आत्मपीड़क) ढांचे में
न उलझा हो?
ओशो— यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण प्रश्न है। धर्मों ने
इसे असंभव कर दिया है। स्त्री और पुरूष के
बीच कोई भी सुंदर संबंध—इसे नष्ट कर
दिया है। इसे नष्ट करने के पीछे कारण था।
यदि व्यक्ति का प्रेम जीवन परिपूर्ण है। तुम पुजा
स्थलों पर बहुत से लोगों को प्रार्थना करते हुए
नहीं पाओगे। वे प्रेम क्रीड़ा कर रहे
होंगे। कोई चिंता करता है उन मूर्खों की जो
धर्मस्थलों पर भाषण दे रहे है। यदि लोगों को प्रेम
जीवन पूर्णतया संतुष्ट और सुंदर हो वे
इसकी चिंता नहीं करेंगे कि परमात्मा है
या नहीं। धर्म ग्रंथ में पढ़ाई जाने वाली
शिक्षा सत्य है या नहीं। वे स्वयं से
पूरी तरह संतुष्ट होंगे। धर्मों ने तुम्हारे प्रेम
को विवाह बना कर नष्ट कर दिया है। विवाह अंत है।
प्रारंभ नहीं। प्रेम समाप्त हुआ। अब तुम एक पति
हो। तुम्हारी प्रेमिका तुम्हारी
पत्नी है। अब तुम एक दूसरे का दमन कर सकते
हो। यह एक राज निति हुई, यह तो प्रेम
नही हुआ। अब हर छोटी
सी बात विवाद का विषय बन जाती है।
और विवाह मनुष्य की प्रकृति के विरूद्ध है,
इसलिए देर-अबेर तुम इस स्त्री से ऊबने वाले हो।
और स्त्री तुमसे। और यह स्वाभाविक है। इसमें
कुछ भी गलत नहीं है।
इसीलिए मैं कहता हूं विवाह नहीं
होना चाहिए। क्योंकि विवाह पूरे विश्व को अनैतिक बनता है।
एक स्त्री के साथ सोता हुआ एक पुरूष, जो एक
दूसरे से प्रेम नहीं करते फिर भी प्रेम
क्रीड़ा करने का प्रयास कर रहे है। क्योंकि वे
विवाहित है—यह कुरूपता है। वीभत्स है।
इसे मैं वास्तविक वेश्या वृति कहता हूं। जब एक पुरूष वेश्या के
पास जाता है, कम से काम यह मामला सीधा तो
है। यह एक निश्चित वस्तु खरीद रहा है।
वह स्त्री को नहीं
खरीदता, वह एक वस्तु खरीद रहा
है। लेकिन उसने तो विवाह में पूरी
स्त्री ही खरीद
ली है। और उसके पूरे जीवन के लिए।
सभी पति और सभी पत्नियाँ बिना अपवाद के
पिंजरों में कैद है। इससे मुक्त होने के लिए छटपटा
रही है। यहां तक कि उन देशों में भी
जहां, जहां तलाक की अनुमति है। और वे अपने
भागीदार बदल सकते है। थोड़ों ही दिन
में उन्हें आश्चर्यजनक धक्का लगता है। दूसरा पुरूष अथवा
दूसरी स्त्री पहले वालों की
प्रतिलिपि निकलती है।
विवाह में स्थायित्व अप्राकृतिक है। एक संबंध में रहना
अप्राकृतिक है। मनुष्य प्रकृति से बहुत संबंधी
जीव है। और कोई भी
प्रतिभाशाली व्यक्ति बहु-संबंधी होगा।
कैसे हो सकता है। कि तुम इटालियन खाना ही
खाते चले जाओ। कभी-कभी तुम्हें
चाइनीज़ रेस्टोरेंट में भी जाना चाहोगे।
मैं चाहता हूं लोगे पुरी तरह विवाह और
विवाह के प्रमाण पत्रों से मुक्त हो जाए। उनके साथ रहने
का एक मात्र कारण होना चाहिए प्रेम, कानून
नहीं। प्रेम एक मात्र कानून होना चाहिए।
तब जो तुम पूछ रहे हो संभव हो सकता है। जिस क्षण
प्रेम विदा होता है। एक दूसरे को अलविदा कह दो। विवाह
के लिए कुछ नहीं है। प्रेम अस्तित्व का एक
उपहार था। वह पवन के झोंके की भांति आया, और
हवा की तरह चला गया। तुम एक दूसरे के
आभारी होगे। तुम विदा हो सकते हो। लेकिन तुम
उन सुंदर क्षणों को स्मरण करोगे जब तुम साथ थे। यदि
प्रेमी नही, तो तुम मित्र होकर रह
सकते हो। साधारणतया जब प्रेमी जुदा होते है वे
शत्रु हो जाते है। वास्तव में विदा होने से पहले
ही वे शत्रु हो जाते है—इसीलिए वे
जुदा हो रहे है।
अंतत: यदि दोनों व्यक्ति ध्यानी है, न कि
प्रेमी इस प्रयास में कि प्रेम की ऊर्जा एक
ध्यान मय स्थिति में परिवर्तित हो जाए—और यही
मेरी देशना है। एक पुरूष और एक स्त्री
के संबंध में। यह एक प्रगाढ़ ऊर्जा है। यह
जीवन है। यदि प्रेम क्रीड़ा करते समय,
तुम दोनों एक मौन अंतराल में प्रवेश कर सको। नितांत मौन स्थल में,
तुम्हारे मन में कोई विचार नहीं उठता। मानोंसमय
रूक गया हो। तब तुम पहली बार जानोंगे कि प्रेम
क्या है। इस भांति का प्रेम संपूर्ण जीवन चल सकता
है। क्योंकि यह कोई जैविक आकर्षण नहीं है
जो देर-अबेर समाप्त हो जाए। अब तुम्हारे सामने एक नया
आयाम खुल रहा है।
तुम्हारी स्त्री तुम्हारा मंदिर हो गई
है। तुम्हारा पुरूष तुम्हारा मंदिर हो गया है। अब
तुम्हारा प्रेम ध्यान हुआ। और यह ध्यान विकसित होता
जाएगा। और जि यह विकसित होगा तुम और-और आनंदित
होने लगोगे। और अधिक संतुष्ट और अधिक सशक्त। कोई संबंध
नहीं, साथ रहने का कोई बंधन
नहीं। लेकिन आनंद का परित्याग कौन कर सकता
है। कौन माँगेगा तलाक जब इतना आनंद हो? लोग तलाक
इसीलिए मांग रहे है क्योंकि कोई आनंद
नहीं है। मात्र संताप है और चौबीसों
घंटे एक दुःख स्वप्न।
यहां और विश्व भर में लोग सीख रहे कि प्रेम
ही एक स्थान है जहां से छलांग ली
जा सकती है। इसके आगे और भी
बहुत कुछ है, जो तभी संभव है तब दो व्यक्ति
अंतरंगता में एक लंबे समय तक रह सकते है। एक नये
व्यक्ति के साथ तुम पुन: प्रारंभ से शुरू करते हो। और नए
व्यक्ति की आवश्यकता नहीं है।
क्योंकि अब यह व्यक्ति का जैविक अथवा शारीरिक तल
न रहा, बल्कि तुम एक अध्यात्मिक मिलन में हो। कामवासना को
आध्यात्मिक में परिवर्तित करना ही मेरा मूल प्रयास
है। और यदि दोनों व्यक्ति प्रेमी ओर
ध्यानी है, तब वे इसकी परवाह
नहीं करेंगे कि कभी-कभी
वह चाइनीज़ रेस्टोरेंट में चला जाए और दूसरा
कंटीनैंटल रेस्टोरेंट में। इसमे कोई समस्या
नहीं है। तुम इस स्त्री से प्रेम
है। यदि कभी वह किसी और के साथ
आनंदित होती है, इसमें गलत क्या है?
तुम्हें खुश होना चाहिए कि यह प्रसन्न है, क्योंकि तुम
उससे प्रेम करते हो, केवल ध्यानी ही
ईर्ष्या से मुक्त हो सकता है।
एक प्रेमी बनो—यह एक शुभ प्रारंभ है लेकिन
अंत नहीं, अधिक और अधिक ध्यान मय होने में
शक्ति लगाओ। और शीध्रता करो, क्योंकि संभावना है
कि तुम्हारा प्रेम तुम्हारे हनीमून पर
ही समाप्त हो जाए। इसलिए ध्यान और प्रेम
हाथ में हाथ लिए चलने चाहिए। यदि हम ऐसे जगत का
निर्माण कर सकें जहां प्रेमी ध्यानी
भी हो। तब प्रताड़ना, दोषारोपण, ईष्र्या, हर संभव
मार्ग से एक दूसरे को चोट पहुंचाने की एक
लंबी शृंखला समाप्त हो जाएगी।
और जब मैं कहता हूं प्रेम हमारी स्वतंत्रता
होनी चाहिए। वे सारे जगत में मेरी निंदा
करते है। एक ‘सेक्स गुरू’ की भांति। निश्चित
ही में प्रेम की स्वतंत्रता का
पक्षपाती हूं। और एक भांति वे ठीक
भी है। मैं नहीं चाहता कि प्रेम बाजार
में मिलने वाली एक वस्तु हो। यह मात्र उन दो लोगों
के बीच मुक्त रूप से उपलब्ध होनी
चाहिए। जो राज़ी है। इतना ही
पर्याप्त है। और यह करार इसी क्षण के लिए
है। भविष्य के लिए कोई वादा नहीं है। इतना
ही पर्याप्त है। और तुम्हारी
गर्दन की ज़ंजीरें बन जायेगी।
वे तुम्हारी हत्या कर देंगी। भविष्य के
कोई वादे नही, इसी क्षण का आनंद लो।
और यदि अगले क्षण भी तुम साथ रहे तो तुम इसका
और भी आनंद लो। और यदि अगले क्षण तुम साथ
रह सके तुम और भी आनंद ले पाओगे।
तुम संबद्ध हो सकते हो। इसे एक संबंध मत बनाओ। यदि
तुम्हारी संबद्धता संपूर्ण जीवन चले,
अच्छा है। यदि न चले, वह और भी अच्छा है।
संभवत: यह उचित साथी न था शुभ हुआ कि तुम
विदा हुए। दूसरा साथ खोजों। कोई न कोई कहीं न
कहीं होगा जो तुम्हारी
प्रतीक्षा कर रहा है। लेकिन यह समाज
तुम्हें उसे खोजने की अनुमति नहीं देता
है। जो तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा
है। जो तुम्हारे अनुरूप है।
वे मुझे अनैतिक कहेंगे…..मेरे लिए यही नैतिकता है। जिसे वे प्रचलन में लाने का प्रयास कर रहे है वह अनैतिक है।
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