रोहित वेमुला का आखिरी पत्र उस के मानवीय पहलू का ही पता नहीं देता, उसका गद्य भी कितना सुगढ़ था। ‘नोट’ के कुछ अंश, अनुवाद में:
“मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं रही। मुझे अपने आप से शिकायत रही है। मेरी आत्मा और मेरे होने में, मैं फासला देखता हूँ। और मैं अतिक्रूर हो चला। मैं तो हमेशा लेखक बनना चाहता था। विज्ञान का लेखक, कार्ल सेगन की तरह। और अंततः मैं सिर्फ यह एक पत्र लिख पा रहा हूँ। … मैंने विज्ञान, तारों और प्रकृति से प्रेम किया; फिर मैंने लोगों को चाहा, यह जाने बगैर कि लोग जाने कब से प्रकृति से दूर हो चुके हैं। हमारी अनुभूतियाँ नकली हो गई हैं। हमारे प्रेम में बनावट है। हमारे विश्वासों में दुराग्रह है। … इस घड़ी मैं आहत नहीं हूँ। दुखी भी नहीं। बस अपने आपसे बेखबर हूँ। यह कारुणिक है। और इसीलिए मैं यह कदम उठा रहा हूँ। … औपचारिक बातें तो लिखना भूल गया। मेरी आत्महत्या के लिए कोई अन्य जिम्मेदार नहीं है। किसी ने मुझे उकसाया नहीं है, न अपने कृत्य से न शब्दों से। यह मेरा निर्णय है, मैं ही इसके लिए जिम्मेदार हूँ। मेरे चले जाने के बाद मेरे दोस्तों और दुश्मनों को इस मामले में परेशान न किया जाय।”
एनडीटीवी की खबर बताती है कि हैदराबाद विश्वविद्यालय ने रोहित समेत सभी को प्राथमिक जांच में निर्दोष करार दे दिया था। लेकिन बाद में जब केंद्रीय मंत्री बंडारू दत्तात्रेय ने शिक्षा मंत्री स्मृति ईरानी को चिट्ठी लिखी, तब विश्वविद्यालय ने अपना फैसला पलट दिया।
पता नहीं क्या सच है, पर राजनीति (जो इस मामले में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के नेताओं से झगड़े और मंत्री के कथित दखल तक साफ दिखाई देती है) की भूमिका की गहन पहचान और जाँच हर सूरत में होनी चाहिए।
संपादक
योगेंद्र दुबे
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