आगरालीक्स …आज श्री राधाजन्म महोत्सव है, श्रीजी के गांव बरसाना में विश्व प्रसिद्ध लाड़िलीजी मंदिर में राधारानी का प्राकट्योत्सव धूमधाम से मनाया जा रहा है।
शुक्रवार को भाद्रपद शुक्ल अष्टमी के अवसर पर कीरतनंदिनी के जन्म से साथ ही ब्रजाचार्य नारायन भट्ट द्वारा प्रकट विग्रह को चांदी की चौकी और रजत पात्र में विराजमान कर सवामन दूध, सवामन दही, शहद ,बूरा 27 पेड़ों की पत्तियां, 27 जगह की ब्रजरज, 27 कुओं के जल, सप्त अनाज, सात मेवा, सात फल आदि से अभिषेक किया जाएगा। आचार्यगण वेद मंत्रों के साथ नवग्रह का आह्वान करेंगे। अंत में गंगाजल से स्नान के बाद राई नौन उतार कर दृष्टि दोष दूर किया जाएगा। तड़के करीब चार बजे से अभिषेक के बाद सुबह छह बजे स्वर्ण थाल से मंगला आरती होगी। श्रीजी के जन्म के बाद मंदिर की दीवार पर सांतिया अंकित किए जाएंगे। नंदगांव से बधाई आने के बाद संयुक्त समाज गायन होगा। श्रीकृष्ण जन्म महोत्सव के बाद भाद्रपद कृष्ण एकादशी से ही बरसाना में श्रीराधाजन्म महोत्सव का शुभारंभ हो जाता है। आयोजन राधाष्टमी के दिन संध्या को पूर्ण होते हैं। इस दौरान बरसाना और नंदगांव के गोस्वामी समाज द्वारा संयुक्त बधाई गायन की अनुपम छटा सप्तमी और अष्टमी को देखने और सुनने को मिलती है।भाद्रपद शुक्ल सप्तमी को वनखंडी सेठ के परिवार की चाव आने के बाद रात्रि को श्रीजी महल में भजन संध्या और जच्चा-बच्चा के पद गाए गए।
मूल नक्षत्र हुआ था जन्म
ऐसा कहा जाता है कि श्रीजी का जन्म मूल नक्षत्र में हुआ था। मंदिर रिसीवर के अनुसार विष्णु पुराण में वर्णित प्रक्रिया से लाड़ली जू का जन्म अभिषेक और मूल शांति पूजा होती है। मूल नक्षत्र में जन्म लेने के कारण श्रीजी के सहस्त्र नामों में से एक नाम मूलो भी है। मूल शांति के कारण सप्तमी की रात्री में वैमाता, नवग्रह, गणेश, वरुण, वेदी, गृह शांति हवन आदि भी किए जाते हैं। राधाष्टमी के दिन श्रीजी डोले में विराजमान होकर महल के नीचे छतरी में पधारती हैं। इस दौरान भक्तों को समीप से उनके दर्शन का सौभाग्य प्राप्त होता है। रिसीवर के अनुसार वर्ष में तीन बार राधाष्टमी, हरियाली तीज और धूलहोली पर ही डोले का छतरी में आगमन होता है। इन्हीं अवसरों पर आरती का सौभाग्य सेवायतों की बालिकाओं को प्राप्त होता है। ब्रज में बरसाना किशोरी जू के पिता वृषभान बाबा की राजधानी रही। द्वापर में बरसाना का नाम वृषभान के नाम पर वृषभानपुर पड़ा। कालांतर में यह बरसाना नाम से विख्यात हुआ। रावल और बरहाना (कोसीकलां के समीप बसे गांव) भी वृषभान की राजधानी रहे। ग्रन्थों में वर्णन है कि ‘अन्याराधितों नूनं भगवान हरिरीश्वरा’, अर्थात श्रीकृष्ण ने जिनकी आराधना और उपासना की है, वहीं श्री राधे हैं।
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