आगरालीक्स…. नोटबंदी के बाद कैशलेस और चेक से भुगतान से डॉक्टर और मरीज के बीच का भरोसा टूट रहा है। हॉस्पिटल के बिल का भुगतान चेक से किया, लेकिन चेक बाउंस हो गया। इस कटु अनुभव को आगरा के एक डॉक्टर ने अपने फेसबुक पोस्ट पर साझा किया है।
आगरा के डॉ राकेश मोहनिया ने अपने फेसबुक वॉल पर 11 दिसंबर को एक पोस्ट की है। इसमें उन्होंने कहा है कि उनके हॉस्पिटल ईश्वरी देवी नर्सिंग होम में मरीज भर्ती हुआ। उसका बिल 6500 रुपये था, नोटबंदी के चलते नए नोटों की समस्या आ रही है। मरीज के तीमारदार द्वारा 6500 रुपये का चेक दिया गया। यह चेक उन्होंने एक दिसंबर को बैंक में लगा दिया, दो दिसंबर को बैंक की तरफ से चेक वापस कर दिया गया। इसमें चेक के स्वीकार न किए जाने का कारण लिखा है कि खाते में पैसे नहीं हैं।
भरोसा टूटने लगा
भले ही इस तरह के केस कम होंगे, लेकिन यह भरोसा मजबूत करने के बजाय तोडने का काम कर रहे हैं। इस तरह के उदाहरण सामने आने के बाद डॉक्टर भी पहले कैश जमा करा रहे हैं, क्रेडिट और डेबिट कार्ड से भुगतान के बाद ही इलाज शुरू कर रहे हैं, इससे सामान्य लोगों को समस्या आने लगी है।
चलने वाले रुपये हैं तो ही दिखाएं
शहर के कुछ क्लीनिक पर कंपाउंडर पहले ही मरीज से पूछ लेते हैं कि तुम्हारे पर चलने वाले नए नोट हैं या नहीं, जिनके पास रुपये नहीं होते हैं, उनसे मना कर दिया जाता है। इसके चलते लोग परेशान हो रहे हैं। उन्हें इलाज कराने के लिए डॉक्टर के चक्कर लगाने पड रहे हैं।
सरकारी इलाज का सहारा नहीं
इस स्थिति में सरकारी इलाज से लोगों को मदद मिल सकती है, लेकिन एसएन मेडिकल कॉलेज और जिला अस्पताल की लंबी लाइन के बाद नंबर आता है तो डॉक्टर चैंबर में नहीं होते हैं। जूनियर डॉक्टर इलाज करते हैं, जांच के लिए इधर उधर भटकना पडता है, एक सामान्य मरीज को अपना इलाज कराने के लिए दो से तीन चक्कर लगाने पडते हैं। इसके बाद जांच और दवाओं का खर्चा खुद करना पड रहा है। इसलिए मरीज सरकारी इलाज के बजाय निजी क्लीनिक पर ही इलाज करा रहे हैं।
(डॉ. राकेश मोहनिया के फेसबुक वॉल से ली गई चेक बाउंस की स्लिप)
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