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Agra News : Causes, Symptoms, Diagnosis, Treatment Know everything about Hepatitis ‘A’, ‘B’, ‘C’ and ‘E’ from renowned gastroenterologist Dr Sameer Taneja

आगरालीक्स… डॉ. समीर तनेजा ने हैपेटाइटिस ‘ए’, ‘बी’, ‘सी’ और ‘ई’ पर जो बताया वो आपकी आंखें खोल देगा, इस खबर को पढ़ेंगे तो सबसे पहले लिवर का टेस्ट कराएंगे फिर वैक्सीन लगवाएंगे…

आगरा में आशंका है लोग हैपेटा​इटिस को छिपा रहे हों या हैपेटाइटिस उनसे छुपकर शरीर में कहीं शांत बैठा हो। मगर आगरा गैस्ट्रो लिवर सेंटर के वरिष्ठ गैस्ट्रोएंटरोलॉजिस्ट डॉ. समीर तनेजा ने जो बताया उसके बाद आप डरना छोड़ देंगे और सबसे पहले यह पता लगाने के लिए जांच कराएंगे कि कहीं यह आपके भीतर तो छिपा नहीं बैठा, नहीं है तो अच्छी बात है लेकिन है तो बहुत ही आसानी से इलाज करा सकते हैं।

आगरालीक्स से खास बातचीत में डॉ. समीर तनेजा ने कहा कि लिवर हमारे शरीर का सबसे अहम अंग है। उन कामों की फेहरिस्त बहुत लंबी है जो यह अकेला ही करता है। मसलन जो हम खाते हैं उसे प्रोसेज करना, जमा करना, दूसरे अंगों तक पहुंचाना, हजम करना, प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करना वगैरह—वगैरह। मगर कई बार इसमें खराबी आ जाती है। यहां हम उम्र के साथ आने वाली कमियों की बात नहीं कर रहे हैं। आम तौर पर शराब का सेवन, फैट आदि लिवर में कमी आने की वजह बन सकते हैं जिसे हम इनफ्लेमेशन कहते हैं। इसके अलावा कई तरह के वायरस जैसे हैपेटाइटिस बी और सी समस्या को बड़ बना देते हैं। जब भी हम इन वायरस का नाम सुनते हैं मन में एक डर सा बैठ जाता है। सोचने लगते हैं कि यह कहां से आया होगा, उन्हें ही क्यों हुआ होगा आदि। लेकिन यह भारत में करोड़ों लोगों को है। वहीं ऐसे लोग जो संक्रमित तो हैं लेकिन अभी उन्हें बीमारी नहीं हुई है उनकी संख्या तो और भी ज्यादा है। कई बार समाज भी आपको गलत समझने लगता है इसलिए आज इस पर बात जरूरी है। हैपेटाइटिस ए, बी, सी और ई यह चार तरह के वायरस लिवर में आ सकते हैं। ए और ई भोजन और पानी के माध्यम से पहुंचते हैं। हैपेटाइटिस ए ज्यादातर बच्चों में होता है। भारत में लगभग सभी बच्चों को होता है, लेकिन इससे खतरा नहीं है। एक बार हो जाए तो जीवन भर के लिए आपकी प्रतिरक्षा बन जाती है। वहीं हैपेटाइटिस ई पानी भोजन और बारिश के मौसम में हो सकता है। दो साइलेंट वायरस हैं हैपेटाइटिस बी और सी। यह शरीर में छिपे रहते हैं और लिवर खराब कर सकते हैं। वहीं हैपेटाइटिस बी और सी ऐसे वायरस हैं जो पता न लगने पर भारी पड़ सकते हैं। बी एक से दूसरे इंसान में जाता है। सबसे आम है इसका मां से बच्चे में प्रवेश करना। दूसरा कारण है किसी को संक्रमित ब्लड चढ़ जाए।

हैपेटाइटिस बी को एचआईवी से जोड़ना पूरा सच नहीं है
डॉ. समीर ने बताया कि समस्या तब आती है जब हैपेटाइटिस बी को एचआईवी से जोड़कर देखा जाता है। हां यह वायरस सैक्सुअली टांसमिटेड हो सकता है लेकिन ऐसा बहुत कम मामलों में होता है। अधिकांश मामलों में यह मां से बच्चे में आता है। शरीर में शांत रहता है। ऐसे में अगर 30 साल का होने पर अचानक किसी में इसकी पुष्टि हो जाती है तो वह व्यक्ति चिंता में पड़ जाता है। खुद से सवाल करता है कि मैंने ऐसा क्या किया। इसके बाद समाज भी उसे गलत समझने लगता है। वहीं 10 प्रतिशत ही लोग ऐसे हैं जिन्हें वायरस से बीमारी होती है। केवल एक प्रतिशत लोगों की मत्यु होती है। इसलिए इससे डरने की जगह इस पर बात करने और इलाज कराने की जरूरत है।

कैसे करता है इफेक्ट
वायरस लिवर के अंदर जाता है। धीरे—धीरे मल्टीप्लाई होता है। फिर धीरे—धीरे लिवर के सेल्स को डैमेज करता है। मगर हर एक को नहीं केवल 10 प्रतिशत लोगों को। इसके बढ़ने पर सिरोसिस हो जाता है। किसी किसी में सिरोसिस के बाद कैंसर भी हो जाता है। पर ये सारी चीजें हम बचा सकते हैंं ठीक कर सकते हैं। अगर किसी के परिवार में हैपेटाइ​टिस है तो वो सारे परिवार वाले अपना टेस्ट कराएं। जो पॉजिटिव हैं वो इलाज कराएं। जिनको इनफेक्शन नहीं है वे वैक्सीन लगवा लें।

इलाज क्या है
हैपेटाइटिस बी के इलाज को तीन भागों में बांटते हैं। पहला कि वायरस कितना है। दूसरा कि उससे नुकसान कितना हुआ है। तीसरा कि लिवर कितना खराब है। अगर लिवर खराब हो गया है तो दवा देंगे। नहीं है केवल वायरस है बीमारी नहीं है तो इससे कोई परेशानी नहीं है। 90 प्रतिशत लोगों में यह शांत रहता है लेकिन 10 प्रतिशत लोगों में यह सक्रिय हो सकता है।

सामाजिक समस्याएं भी हैं
हैपेटाइटिस के सामाजिक साइड इफैक्ट एक बड़ा कारण हैं जो इसके इलाज और जांच में बाधा बनते हैं। हैपेटाइटिस बी से संक्रमित व्यक्ति को समाज गलत मानने लगता है। इसकी वजह से शादियां तक टूट जाती हैं, सगाई टूट जाती है, नौकरी नहीं मिलती, समाज के डर से लोग बीमारी छिपाते हैं। वे जांच नहीं कराते हैं। इलाज नहीं कराते हैं। यही वजह है कि हम अब तक इसे खत्म नहीं कर पाए हैं। जागरूकता से बात बन सकती है।

आसानी से ठीक हो सकते हैं
हैपेटाइटिस बी आसानी से ठीक हो सकती है। अगर पता लगा कि केवल वायरस है बीमारी नहीं है तो चिंता ही नहीं। किसी भी दिन वायरस को दवाई से दबा देंगे। अगर बीमारी है तो उसका इलाज होगा। अगर कैंसर या सिरोसिस हो जाए तो लिवर टांसप्लांट हो जाता है।

आप कैसे मदद करस सकते हैं
हैपेटाइटिस बी से संक्रमित व्यक्तियों को यह पता लगाना चाहिए कि इसका इलाज क्या है, अगर इलाज है तो कहां उपलब्घ है, सरकार इसके इलाज में क्या मदद कर सकती है, नजदीकी प्राइवेट अस्पताल कौन सा है जहां आसानी से इसका इलाज मिल सकता है, आखिर में सबसे जरूरी बात कि एक दूसरे बात करें, बीमारी को छिपाएं नहीं।

बच्चों को तो हम एकदम सुरक्षित कर सकते हैं
बच्चे को तो इस बीमारी से 100 फीसद बचा सकते हैं। उसका तरीका ये है कि जिसकी मां को वायरस है उसे भी टीका लगाना है और नहीं है तो भी टीका लगाना है। अगर हम यह सावधानियां बरतें तो भारत में धीरे—धीरे इसके सोर्सेज खत्म होने लगेंगे और हर नए बच्चे को हम पहले ही टीका लगा चुके होंगे। इस तरह आने वाले 25 से 50 सालों में भारत हैपेटाइटिस बी से मुक्त भी हो सकता है।

हैपेटाइटिस सी संक्रमित ब्लड से होता है
डॉ. समीर ने बताया कि हैपेटाइटिस सी की बात करें तो यह भी हैपेटाइटिस बी की तरह ही है। किसी संक्रमित व्यक्ति का ब्लड टांसमिटेड हो जाने से होता है। संक्रमित सुई इसका एक बड़ा कारण बन जाती है। हालांकि इसका इलाज बहुत आसान है। तीन महीने तक दवा चलती है। 98 फीसद मरीज ठीक हो जाते हैं। केवल दो प्रतिशत को ही खतरा रहता है।

यह जांचें जरूर करा लें
आपको करना ये है कि आप जब कभी भी अस्पताल जाएं, कोई हैल्थ चैकअप करा रहे हों, कहीं ब्लड डोनेशन हो रहा हो, तभी हैपेटाइटिस बी और सी का टेस्ट करा लें। लिवर की जांच एसजीपीटी जरूर कराएं, अल्टासाउंड जरूर कराएं। अगर सब ठीक है तो चिंता मुक्त रहेंगे, अगर कोई संक्रमण पाया जाता है तो इलाज है।

तीन टीके लगते हैं
खुद को सुरक्षित करने के लिए वैक्सीन लगवा सकते हैं। हैपेटाइटिस बी की वैक्सीन है लेकिन सी की नहीं है। किसी भी समय अगर तीन टीके पहला शुरू में, फिर एक माह बाद और छह माह बाद लगवा लें तो जीवन भर प्रतिरक्षित रहेंगे। पोलिया की तरह बच्चों को हैपेटाइटिस बी का टीका लगवा सकते हैं।

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