आगरालीक्स… गुप्त नवरात्र 12 फरवरी से 21 फरवरी तक हैं। गुप्त नवरात्र में साधक अपनी आध्यात्मिक और मानसिक शक्तियों में वृद्धि करने के लिए आराधना करते हैं। इसमें संयम, नियम, भजन, पूजन, योग साधना आदि की जाती है। आगरालीक्स में जानते हैं विस्तृत जानकारी।
श्री गुरु ज्योतिष शोध संस्थान अलीगढ़ के ज्योतिषाचार्य पं. हृदय रंजन शर्मा के अनुसार माघ मास की नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि कहते हैं क्योंकि इसमें गुप्त रूप से शिव और शक्ति की उपासना की जाती है, जबकि चैत्र और शारदीय नवरात्र में सार्वजनिक रूप से माता की भक्ति करने का विधान है। आषाढ. मास की गुप्त नवरात्रि में, जहां वामाचार उपासना की जाती है। वहीं माघ मास की गुप्त नवरात्रि में वामाचार पद्धति को अधिक मान्यता नहीं दी गई है। लेकिन माघ मास के शुक्ल पक्ष का विशेष महत्व है। गुप्त नवरात्र में साध गुप्त साधनाएं करने गुप्त स्थान श्मशान आदि पर जाते हैं।
ऋषि विश्वामित्र बने थे अद्भुत शक्तियों के स्वामी
गुप्त नवरात्र में दस महाविद्याओँ की साधना कर ऋषि विश्वामित्र अद्भुत शक्तियों के स्वामी बन गए, उनकी सिद्धियों की प्रबलता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने एक नई सृष्टि की रचना तक कर डाली थी। इसी तरह लंकापति रावण के पुत्र मेघनाद ने अतुलनीय शक्तियां प्रापत करने के लिए गुप्त नवरात्रों में साधना की थी। शुक्राचार्य ने मेघनाद को परामर्श दिया था कि गुप्त नवरात्र में अपनी कुलदेवी निकुलम्बाला की साधना कर वह अजेय बन सकता है।
दुर्व्यसनी भी साधना से बन सकता है सन्मार्ग
ऋषि श्रृंगी ने बताया था कि गुप्त नवरात्र की प्रमुख देवी स्वरूप का नाम सर्वेश्वर्यकारिणी देवी है। यदि इन गुप्त नवरात्र में कोई भी भक्त माता दुर्गा की पूजा साधना करता है तो मां उसके जीवन को सफल बना देती हैं। दुर्व्यसनों से ग्रस्त व्यक्ति भी साधना कर सन्मार्ग पर आ सकता है। इस समय की जाने वाली साधना को गुप्त बनाए रखना बेहद आवश्यक है। अपना मंत्र और देवी का स्वरूप गुप्त बनाए रखना जरूरी होता है। नवरात्र का मौसम बदलाव का भी होता है। इनसे बचाव भी जरूरी है। नवरात्र में देवी उपासना से खान, पान रहन-सहन , संयम अनुशासन तन-मन को ऊर्जा देते हैं, जिससे इंसान निरोगी बनता है।
गुप्त नवरात्र में तांत्रिक सिद्धियां भी
गुप्त नवरात्र विशेषकर तांत्रिक क्रियाएँ, शक्ति साधना, महाकाल आदि से जुड़े लोगों के लिए विशेष महत्व रखती है। इसके दौरान देवी भगवती के साधक बेहद कड़े नियम के साथ व्रत और साधना करते है। तंत्र साधना के लिए मां काली, तारा देवी, त्रिपुरा सुंदरी, भुवनेश्वरी, माता छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, मां धूमावती, माता बगलामुखी, मातंगी औऱ कमला देवी की पूजा करते हैं।
गुप्त नवरात्र पूजा विधि
घट स्थापना, अखंड ज्योति प्रज्जवल्ति करा, जवारे स्थापित करना आदि एक- दो दिन पूर्व शुरू कर देते हैं। यदि यह संभव नहीं है तो घट स्थापना से देवी पूजा शुरू कर सकते हैं। नवरात्रों में अन्य नवरात्र की तरह ही पूजा करनी चाहिए। नौ दिन व्रत का संकल्प लेते हुए सुबह शाम माता दुर्गा की पूजा अर्चना करनी चाहिए। अष्टमी अथवा नवमी को कन्या पूजन कर व्रत का उद्यापन करना चाहिए।