Agra News: Shri Banke Bihari Satsang Samiti’s 20th Ekadashi Udyapan
Agra News: Education is costlier due to commission, Changed the books of every class. Rates increased by 40 percent…#agranews
आगरालीक्स…आगरा में मिशनरी और कान्वेंट स्कूलों की कमीशनखोरी से शिक्षा महंगी. हर क्लास की किताबें बदलीं जिससे पुरानी न हो सकें इस्तेमाल. 40 प्रतिशत रेट बढ़े.
आगरा में शिक्षा न सिर्फ महंगी हुई है बल्कि इसमें कमीशनखोरी काफी हद तक बढ़ गई है. आगरा के मिशनरी और कॉन्वेंट स्कूलों की कमीशनखोरी ने अभिभावकों की जेब को फिर से काटना शुरू कर दिया है. इस बार भी अधिकतर मिशनरी और कान्वेंट स्कूलों ने एनसीईआरटी की जगह मनमाने प्रकाश की किताबें लगाई हैं. हर क्लास की किताबें फिर से बदल दी गई हैं, जिससे पुरानी इस्तेमाल ही न हो सकें. इसको लेकर अभिभावकों में भी निजी स्कूलों के खिलाफ आक्रोश है. नई शिक्षा नीति 2020 के तहत स्कूलों में नसीईआरटी की किताबें लगाना अनिवार्य हैं इस प्रकाशन की किताबों की कीमत सरकार ने निर्धारित की हैं लेकिन निजी स्कूलों की ओर से सिर्फ एक या दो किताबें ही एनसीईआरटी की लगाई जाती हैं. सरकार के सख्त निर्देशों के बाद भी स्कूल प्रबंधन निजी प्रकाशकों के साथ मिलकर कमीशनखोरी का खेल खेल रहे हैं.
खुली किताबें नहीं, पूरी किट खरीदने पर मजबूर पेरेंट्स
आगरा के मिशनरी और कॉन्वेंट स्कूलों में एडमिशंस चालू हो गए हैं और इसी महीने से नए सत्र को भी शुरू कर दिया जा रहा है, जिससे अभी से अभिभावकों को किताबेंु, कॉपियों के साथ ही स्टेशनरी के सामान की पूरी किट एक साथ खरीदने की लिस्ट थमाई जा रही है. किताब विक्रेताओं ने भी कोर्स के किट बनाकर तैयार कर लिए हैं. लॉयर्स कॉलोनी में रहने वाले राहुल गुप्ता का कहना है कि उनकी बेटी एक नामचीन कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ती है. स्कूल प्रबंधन की ओर से नए सत्र के कोर्स के लिए किताब विक्रेता के नाम की जानकारी दी गई है. जब वह किताबें खरीदने के लिए गईं तो उन्होंने स्टेशनरी न लेने की बात कही लेकिन किताब विक्रेता ने इस पर पूरे पूरा कोर्स ही देने से इनकार कर दिया. कहा कि दो माह बाद ही खुला कोर्स मिलेगा. ऐसे में उनके लिए कोर्स का पूरा बैग खरीदना मजबूरी बन गया. जबकि उनकी बेटी के पास पहले से बैग, स्टेशनरी और कई कॉपियां थीं. इसके बावजूद उन्हें नई कॉपियों और स्टेशनरी खरीदनी पड़ी.
दयालबाग की रहने वाली वर्षा सिंघल ने बताया कि उनकी बड़ी बेटी 3 स्टैंडर्ड में है जबकि बेटा 2 स्टैंडर्ड में है. दोनों एक ही स्कूल में पढ़ते हैं लेकिन इसे बावजदू बेटी की किताबें बेटे के काम में नहीं आ रही हैं. क्योंकि बेटे के 3 स्टैंडर्ड में आने पर पता चला कि पूरा सिलेबस ही चेंज कर दिया गया है. ऐसे में बेटी की किताबें रद्दी बन गई हैं जो कि काफी महंगी खरीदी गई थीं. अब उन्हें अपने बेटे के लिए भी नई किताबें खरीदनी मजबूरी है.
कक्षा 1 का 3 से 5 हजार का कोर्स
निजी स्कूलों और पुस्तक विक्रेताओं की कमीशनखोरी का आलम ये है कि कक्षा 1 में पढ़ने वाले बच्चों का पूरा कोर्स 3 से 5 हजार रुपये में मिल रहा है. पुस्तक विक्रेता भी किताबों पर लिखी एमआरपी पर एक रुपया भी कम नहीं कर रहे हैं. जिस एमआरपी की किताबें हैं वो उसी रेट पर मिल रही हैं. इसके अलावा जो बिल दिया जाता है वह टोटल मैनुअल होता है जिसमें किताबों और कॉपियों के आगे उनके रेट लिखे गए हैं और अंत में पूरा टोटल. पेरेंट्स को कॉपी व किताबों के साथ स्टेशनरी भी जबरन थोपी जा रही है.