आगरालीक्स (18th October 2021 Agra News)… कार्तिक मास 21 अक्टूबर से. कलियुग में कार्तिक मास धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष को देने वाला है. जानिए व्रत और तुलसी पूजा के नियम.
21 से शुरू होगा कार्तिक मास
कार्तिक मास 21 अक्टूबर से 19 नवंबर तक रहेगा। ज्योतिषाचार्य पंडित हृदयरंजन शर्मा ने बताया कि मासानां कार्तिक: श्रेष्ठो देवानां मधुसूदन:। तीर्थं नारायणाख्यं हि त्रितयं दुर्लभं कलौ।। (स्कन्दपु. वै. खं. का. मा. १।१४) अर्थात –भगवान विष्णु और विष्णुतीर्थ के समान ही कार्तिकमास को श्रेष्ठ और दुर्लभ कहा गया है।

चारों पुरुषार्थों को देने वाला है कार्तिक व्रत
सामान्य रूप से सूर्य के तुलाराशि पर आते ही कार्तिकमास आरम्भ हो जाता है। कलियुग में कार्तिक मास चारों पुरुषार्थों– धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष को देने वाला है। रोग विनाशक, सद्बुद्धि देने वाला, लक्ष्मी का साधक और दु:खों से मुक्ति प्रदान करने वाला माना गया है। ऐसा माना जाता है कि कार्तिक स्नान-व्रत करने वाले मनुष्य के शरीर में सारे तीर्थ निवास करते हैं। उसे देखकर यमदूत उसी प्रकार पलायन कर जाते हैं, जैसे सिंह से पीड़ित हाथी भाग खड़े होते हैं। कार्तिक मास के स्नान-व्रत की महिमा को स्वयं भगवान नारायण ने ब्रह्मा को, ब्रह्मा ने नारद को और नारद ने राजा पृथु को बतलाया था।
कार्तिकमास में किए जाने वाले प्रमुख कार्य
हरि जागरणं प्रात:स्नानं तुलसिसेवनम्।
उद्यापनं दीपदानं व्रतान्येतानि कार्तिके।।
कार्तिकमास श्रीराधादामोदर की विशेष उपासना का मास है। कार्तिकमास में ब्राह्ममुहुर्त में स्नान और प्रतिदिन अपनी सामर्थ्यानुसार अन्नदान करना चाहिए। कार्तिकमास में पूरे महीने दीपदान किया जाता है व संध्याकाल में आकाशदीप जलाया जाता है। आकाशदीप देते समय इस मन्त्र का उच्चारण करना चाहिए— दामोदराय विश्वाय विश्वरूपधराय च। नमस्कृत्वा प्रदास्यामि व्योमदीपं हरिप्रियम्।।
तुलसी पूजा जरूरी
कार्तिकमास का एक प्रमुख कार्य तुलसी पूजन-आराधना व सायंकाल में तुलसी के चौबारे में दीप जलाना है। तुलसी विवाह के दिन श्रद्धानुसार राधा दामोदर के प्रतीक रूप में तीस, पांच या कम-से-कम एक ब्राह्मण-ब्राह्मणी को भोजन कराया जाता है और वस्त्रादि दान में देते हैं। कार्तिकमास में भूमि पर शयन किया जाता है इससे सात्विकता में वृद्धि होती है और भगवान के चरणों में सोने से जीव भयमुक्त हो जाता है।
दान का विशेष महत्व
कार्तिक व्रती के लिए ब्रह्मचर्य का पालन आवश्यक है। कार्तिक व्रती को द्विदल (दालों) का व तामसी पदार्थों का त्याग करना चाहिए। विष्णु संकीर्तन, गीता, श्रीमद्भागवत व रामायण के पाठ आदि से इस मास में विशेष फल मिलता है। इनके अलावा कार्तिकमास में दान का विशेष महत्व बतलाया गया है।
कार्तिक स्नान व व्रत के कुछ विशिष्ट नियम
कार्तिक स्नान-व्रती के लिए कुछ विशिष्ट नियमों का निर्देश किया गया है। इनके अनुसार बिना नमक का भोजन और साठी के चावल खाने चाहिए, भूमि पर शयन करना चाहिए। कार्तिक के चारों रविवार तथा दो एकादशियों को व्रत रखना व नवमी को आंवले के वृक्ष की पूजा करके ब्राह्मण भोजन कराने चाहिए। एक लोकगीत में इसका बहुत सुन्दर वर्णन है।
राधा दामोदर बलि जइये।
राधा बूझैं बात कृष्ण सौं कैसे कार्तिक नहिये,
नोनु तैल को नैमु लयो ऐ अलोनेई भोजन करिये,
नोनु तैल को नैमु लयो ऐ,
घीउ सुरहनि की खइये।
मूंग मनोहर को नैमु लयो ऐ,
साठी के चामर खइये।
खाट पिढ़ी को नैमु लयो ऐ,
धरती पर आसन करिये।
चारि ऐतवार व्दै एकादशी, इतने व्रतन कूँ रहिये।
कातिक मास उज्यारी सी नौमी, आमले तरु जइये,
जोड़ी जोड़ा नीति जिमइये, इच्छा भोजन पइये।।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में महत्व
प्रात:काल जल्दी उठना, सूर्योदय से पहले स्नान, संयमित व सात्विक भोजन, मन सात्विक विचारों से ओत-प्रोत रहना, दया-करुणा आदि सभी मनुष्य के उत्तम स्वास्थ्य के लिए आवश्यक हैं। इसीलिए कार्तिकमास को रोगविनाशक कहा गया है। तुलसीवृक्षों को लगाना और उनका पालन करना, पीपल, आंवला का पूजन से पर्यावरण शुद्ध होता है। गोपूजा, गंगा-यमुना में स्नान और पूजन, गोवर्धन पूजा आदि से मनुष्य प्रकृतिप्रिय बनता है, वह भी उत्तम स्वास्थ्य के लिए बहुत आवश्यक है।