Agra news: Paush month from 27th December, worshiping Bhagwat and offering Arghya to Sun has special significance
आगरालीक्स… पौष मास 27 दिसम्बर से शुरू हो रहा है। इस माह भागवत् पूजन और सूर्य को अर्घ्य देने का है विशेष महत्व।
इसी माह होती है धनु संक्रांति
ज्योतिषाचार्य पंडित हृदय रंजन
श्री गुरु ज्योतिष शोध संस्थान गुरु रत्न भंडार वाले ज्योतिषाचार्य पंडित हृदय रंजन के मुताबिक पौष मास 27 दिसंबर से 25 दिसंबर तक है। सनातन हिंदू धर्मग्रन्थों में प्रत्येक महीने के महत्व को भली प्रकार से दर्शाया गया है। हमारी हिंदू संस्कृति में बारहों मास व्रत-पर्व- त्यौहारों से युक्त हैं। पौष मास धनु- संक्रान्ति होती है। अत: इस मास में भगवत्पूजन का विशेष महत्त्व है।
सूर्य साक्षात परब्रह्म का ही स्वरूप
ऐसी मान्यता है कि पौष मास में भगवान भास्कर 11 हजार रश्मियों के साथ तपकर सर्दी से राहत देते हैं। इनका वर्ण रक्त के समान है। शास्त्रों में ऐश्वर्य, धर्म, यश, श्री, ज्ञान और वैराग्य को ही भग कहा गया है और इनसे युक्त को ही भगवान माना गया है। यही कारण है कि पौष मास का भग नामक सूर्य साक्षात परब्रह्म का ही स्वरूप माना गया है। पौष मास में सूर्य को अर्ध्य देने तथा उसके निमित्त व्रत करने का भी विशेष महत्व धर्मशास्त्रों में उल्लेखित है।
इस मास में घर मास भी रहता है
इस माह में ज़ब सूर्य भगवान धनु राशि में आते है तब से मकर संक्रांति तक एक महीने के समय को खर मास के नाम से जाना जाता हैं जिसमें कोई शुभ काम नहीं होता है. खर मास लगने के जब 15 दिन हो जाते हैं तब किसी भी एक दिन तेल के पकौड़े बनाकर चील-कबूतरों को खिला देते हैं. कुछ पकौड़े डकौत को भी दे देने चाहिए।
पौष नाम क्यों पड़ा
विक्रम संवत में पौष का महीना दसवां महीना होता है। भारतीय महीनों के नाम नक्षत्रों पर आधारित हैं। दरअसल जिस महीने की पूर्णिमा को चंद्रमा जिस नक्षत्र में होता है उस महीने का नाम उसी नक्षत्र के आधार पर रखा जाता है। पौष मास की पूर्णिमा को चंद्रमा पुष्य नक्षत्र में रहता है इसलिए इस मास को पौष का मास कहा जाता है।
सफला एकादशी- पौष कृष्ण एकादशी सफला एकादशी कहलाती है इस दिन उपवासपूर्वक भगवान का पूजन करना चाहिये । इस व्रत को करने से सभी कार्य सफल हो जाते हैं।
सुरूपा द्वादशी- पौषमास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को सुरूपा द्वादशी का व्रत होता है। यदि इसमें पुष्यनक्षत्र का योग हो तो विशेष फलदायी होता है। इस व्रत का गुजरात प्रान्त में विशेष रूप से प्रचलन है। सौन्दर्य, सुख, सन्तान और सौभाग्य प्राप्ति के लिये इसका अनुष्ठान किया जाता है।
आरोग्यव्रत- विष्णुधर्मोत्तरपुराण में वर्णन मिलता है कि पौष शुक्ल द्वितीया को आरोग्यप्राप्ति के लिये ‘आरोग्यव्रत’ किया जाता है। इस दिन गोशृङ्गोदक (गायों की सींगों को धोकर लिये हुए जल से स्नान करके सफेद वस्त्र धारणकर सूर्यास्त के बाद बालेन्दु (द्वितीया तिथि के चन्द्रमा) का गन्ध आदि से पूजन करे। जब तक चन्द्रमा अस्त न हों तब तक गुड़, दही, परमान्न (खीर) और लवण (नमक) से ब्राह्मणों को संतुष्टकर केवल गोरस (छाँछ) पीकर जमीन पर शयन करे।
ब्रह्म गौरी पूनम व्रत- इस व्रत को पौष माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया को किया जाता है. इस तिथि पर जगजननी गौरी का षोडशोपचार से पूजन किया जाता है. इस व्रत को मुख्य रुप से स्त्रियों द्वारा ही किया जाता है. इस गौरी पूजन व व्रत से पति व पुत्र दोनों विरंजीवी होते हैं और व्रत करने वाली के लिए परम धाम भी सुगम हो जाता है।
मार्तण्डसप्तमी- पौष शुक्ल सप्तमी को ‘मार्तण्डसप्तमी’ कहते हैं। इस दिन भगवान सूर्य की प्रसन्नता के उद्देश्य से हवन करके गोदान करने से वर्षपर्यन्त सूर्यदेव की कृपा प्राप्त होती है।
पुत्रदा एकादशी- पौष शुक्ल एकादशी ‘पुत्रदा’ नाम से प्रसिद्ध है। इस दिन उपवास से सुलक्षण पुत्र की प्राप्ति होती है । भद्रावती नगरी के राजा वसुकेतु ने इस व्रत के अनुष्ठान से सर्वगुणसम्पन्न पुत्र प्राप्त किया था।पौष शुक्ल त्रयोदशी- को भगवान के पूजन तथा घृतदान का विशेष महत्त्व है।