Saturday , 19 April 2025
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Agra News: Supreme Court strict on increasing number of accidents. Strict instructions- Safety is more important than driver fatigue…#agranews

आगरालीक्स….एक्सीडेंट की बढ़ती घटनाओं पर सुप्रीम कोर्ट सख्त. सख्त निर्देश—ड्राइवर की थकावट नहीं, सुरक्षा जरूरी. सुप्रीम कोर्ट का 8 घंटे कार्य समय पर सख्त रुख. दो सप्ताह में सरकार से जवाब मांगा

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को एक महत्वपूर्ण आदेश जारी करते हुए सड़क दुर्घटना पीड़ितों को तुरंत सहायता पहुँचाने हेतु त्वरित प्रतिक्रिया प्रोटोकॉल विकसित करने के लिए प्रभावी कदम उठाने का निर्देश दिया। यह निर्देश अधिवक्ता केसी जैन के द्वारा प्रस्तुुत याचिका पर दिया गया। जिसमें उन्होंने स्वयं विषय न्यायालय के समक्ष रखा। न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुयान की पीठ ने यह टिप्पणी करते हुए कहा कि सड़क दुर्घटनाओं के मामलों में स्वास्थ्य सेवाओं और बचाव कार्यों में देरी एक गंभीर सार्वजनिक चिंता का विषय है। न्यायालय ने कहा कि “आवेदक द्वारा एक अत्यंत महत्वपूर्ण मुद्दा उठाया गया है। हमारे देश में सड़क दुर्घटनाएं बढ़ रही हैं। इसके कारण भिन्न हो सकते हैं। कई बार ऐसा होता है कि पीड़ितों को तुरंत स्वास्थ्य सेवा नहीं मिल पाती है।“

न्यायालय ने यह भी कहा कि कई मामलों में पीड़ित घायल नहीं होते लेकिन वाहन के अंदर फंसे रह जाते हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि एक व्यापक राज्य स्तरीय प्रतिक्रिया तंत्र की आवश्यकता है। आवेदक ने छह प्रमुख बिंदुओं पर आधारित प्रोटोकॉल का सुझाव दिया था जिसके सम्बन्ध में न्यायालय ने शीघ्र कार्रवाई की आवश्यकता को दोहराया और कहा कि “हम मानते हैं कि राज्य सरकारों और केंद्रशासित प्रदेशों को त्वरित प्रतिक्रिया प्रोटोकॉल तैयार करने चाहिए, क्योंकि हर राज्य में स्थानीय स्तर पर स्थिति भिन्न हो सकती है।”

इसके दृष्टिगत न्यायालय ने सभी राज्य सरकारों और केंद्रशासित प्रदेशों को निर्देश दिया कि वे अगले 6 महीनों के भीतर त्वरित प्रतिक्रिया प्रोटोकॉल विकसित करें और उन्हें लागू करने की दिशा में कदम उठाएं, ताकि दुर्घटना पीड़ितों तक तुरंत सहायता पहुँचाई जा सके। सभी सरकारों को समय सीमा के भीतर अपनी प्रतिक्रिया प्रस्तुत करने के लिए आदेश दिया।

चालकों के कार्य समय पर निर्देश
सड़क सुरक्षा को और बेहतर बनाने के उद्देश्य से न्यायालय ने परिवहन वाहन चालकों की कार्य स्थितियों पर भी ध्यान केंद्रित किया।
न्यायालय ने मोटर वाहन अधिनियम की धारा 91 और मोटर ट्रांसपोर्ट वर्कर्स अधिनियम, 1961 का हवाला देते हुए कहा कि इनमें चालकों के प्रतिदिन अधिकतम 8 घंटे और प्रति सप्ताह अधिकतम 48 घंटे कार्य करने की सीमा निर्धारित है, लेकिन इसका पालन नहीं किया जा रहा है और “मुद्दा इन प्रावधानों के क्रियान्वयन का है।” न्यायालय ने यह भी कहा कि नियमों का उल्लंघन अक्सर थकावट से संबंधित दुर्घटनाओं का कारण बनता है।
इसे संबोधित करते हुए न्यायालय ने भारत सरकार के सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय को निर्देश दिया कि वह सभी राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों के संबंधित विभागों के साथ बैठक आयोजित करें ताकि वाहन चालकों के कार्य समय को प्रभावी ढंग से लागू करने के तरीके तैयार किए जा सकें। मंत्रालय को यह भी निर्देश दिया गया है कि वह सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से कार्य समय प्रावधानों के क्रियान्वयन की रिपोर्ट एकत्र करे। “जब तक दंडात्मक प्रावधानों का प्रयोग नहीं किया जाएगा, तब तक चालकों के कार्य समय से संबंधित प्रावधान प्रभावी नहीं हो पाएंगे,” न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा।
सभी राज्य सरकारों को अगस्त के अंत तक अनुपालन रिपोर्ट मंत्रालय को सौंपने का निर्देश दिया गया है। इसके बाद सड़क परिवहन मंत्रालय एक समग्र रिपोर्ट तैयार कर सुप्रीम कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत करेगा।

राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा बोर्ड हो सक्रिय
अधिवक्ता जैन के द्वारा मोटर वाहन अधिनियम की धारा-215बी के अन्तर्गत राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा बोर्ड को कार्यरत करने के सम्बन्ध में प्रस्तुत याचिका की भी सुनवाई हुई जिसमें न्यायालय ने इस बोर्ड के कार्यों को अत्यन्त महत्वपूर्ण बताया और इसके अध्यक्ष व सदस्यों की नियुक्ति किये जाने के सम्बन्ध में आवश्यक कार्यवाही केन्द्र सरकार द्वारा किये जाने और उसका जवाब भी दो सप्ताह में प्रस्तुत करने का आदेश दिया।

अधिवक्ता केसी जैन ने कहा कि “जब तक सड़क पर घायल व्यक्ति को समय पर सहायता नहीं मिलती और थके हुए ड्राइवरों से गाड़ी चलवाने की मजबूरी बनी रहती है, तब तक हम हर दिन अपने किसी अपने को खोने का जोखिम उठा रहे हैं। यह लड़ाई सिर्फ कानून की नहीं, हर उस आम आदमी की है जिसकी जान सड़क पर किसी की लापरवाही की भेंट चढ़ जाती है। मुझे विश्वास है कि अब बदलाव आएगा दृ क्योंकि अब अदालत ने इंसानियत की आवाज को सुना है।”

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