आगरालीक्स…(17 July 2021 Agra News) रविवार को भढ़ली नवमी पर अबूझ मुहूर्त. आगरा में एक हजार से अधिक शादियां. जानिए क्या हैं अबूझ मुहूर्त. 4 माह बाद इस दिन से होंगे शुभ कार्य
भढली नवमी और अबूझ मुहूर्त
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी यानी कि देवशयनी एकादशी। इस दिन से भगवान श्रीहरि योग निद्रा में चले जाते हैं। इसलिए शादी-विवाह अन्य शुभ कार्यों का आयोजन बंद कर दिया जाता है। इसके बाद जब चातुर्मास बीतने पर कार्तिक शुक्ल एकादशी को भगवान श्रीविष्णु निद्रा से जागते हैं। इस तिथि को प्रबोधिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन से शुभ कार्य फिर से शुरू हो जाते हैं। लेकिन बता दें कि देवशयनी एकादशी से दो दिन पूर्व यानी कि आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की नवमी को भी शुभ कार्य बिना किसी विचार के किये जा सकते हैं। यह दिन अत्यंत ही शुभ होता है। इसे भढली, भडल्या नवमी या अबूझ विवाह मुहूर्त भी कहते हैं
अबूझ विवाह मुहूर्त तिथि
भढली नवमी को उत्तर भारत में विवाह के लिए अबूझ विवाह मुहूर्त माना जाता है। सनातन धर्म में विवाह के लिए कुछ अबूझ मुहूर्त बताए गए हैं। भढली नवमी उन्हीं में से एक होती है। इस वर्ष भढली नवमी 18 जौलाई रविवार यानी कि कल पड़ रही है। यह इस वर्ष का अंतिम अबूझ विवाह मुहूर्त भी है। इसके ठीक दो दिन बाद 20 जुलाई 2021को देवशयनी एकादशी है
अबूझ मुहूर्त क्या है
अबूझ विवाह तिथि का अर्थ है कि जिन लोगों के विवाह के लिए कोई मुहूर्त नहीं निकलता उनका विवाह इस दिन किया जाए तो उनके वैवाहिक जीवन में किसी प्रकार का व्यवधान नहीं आता है। कहने का अर्थ है कि बिना किसी चिंता के इन विशेष तिथियों पर मांगलिक कार्य संपन्न किए जाते हैं। यह तिथियां ऐसी होती हैं कि इन पर बिना पंडित की सलाह लिए शुभ काम किए जाते हैं। साथ ही इनमें पंचांग देखने की भी जरूरत नहीं होती है। बिना ज्योतिषी को दिखाए ही मांगलिक कार्य किए जाते हैं। ये दिन स्वयं में सिद्ध होते हैं और अत्यंत शुभ माने जाते हैं
अबूझ विवाह मुहूर्त
सनातनी कैलेंडर के अनुसार, एक वर्ष में बसंत पंचमी, फुलेरदोज (फाल्गुन पक्ष की शुक्ल पक्ष की द्वितीया), अक्षय तृतीया,रामनवमी, जानकी नवमी, पीपल पूर्णिमा (वैशाख मास की पूर्णिमा), गंगा दशमी (ज्येष्ठ मास की शुक्ल दशमी) भडल्या नवमी (आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की नवमी) अबूझ विवाह मुहूर्त होता है। इस दिन किसी भी विचार की जरूरत नहीं होती है
14 नवंबर तक नहीं होंगे शुभ कार्य
भढली नवमी के दो दिन बाद देवशयनी एकादशी से चातुर्मास लग जाता है। इसका अर्थ होता है कि भढली नवमी के बाद 4 माह तक विवाह या अन्य शुभ-मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस अवधि में सभी देवी-देवता निद्रा में चले जाते हैं। इसके बाद सीधे प्रबोधिनी एकादशी पर विष्णुजी के जागने पर चातुर्मास समाप्त होता है। इसके बाद ही सभी तरह के शुभ कार्य शुरू किए जाते हैं। इस बार प्रबोधिनी एकादशी 14 नवंबर को है। यानी कि 20 जुलाई से 14 नवंबर तक सभी शुभ कार्य वर्जित है। ऐसे में जो लोग इस तिथि से पहले विवाह करना चाहते हैं वह अबूझ विवाह मुहूर्त में विवाह कर सकते हैं। अन्यथा विवाह के लिए चार माह के लिए इंतजार करना पड़ेगा
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