आगरालीक्स…हम वैध बैनामा धारक हैं, अवैध कब्जा धारक नहीं…जोंस मिल भूमि प्रकरण पर बोले व्यापारी. कहा—खाटू श्याम मंदिर हमारी आस्था…इसके खिलाफ साजिश बर्दाश्त नहीं होगी..
जिला प्रशासन की कार्यवाही पर उठाए सवाल
जॉन्स मिल प्रकरण में जिला प्रशासन की एकपक्षीय उत्पीड़नात्मक कार्यवाही और हठधर्मिता से आहत क्षेत्रीय व्यापारियों और निवासियों ने जॉन्स मिल संघर्ष समिति के बैनर तले जीवनी मंडी स्थित खाटू श्याम मंदिर में शनिवार शाम पत्रकार वार्ता आयोजित कर कहा कि हम बैनामा धारक हैं, कब्जा धारक नहीं. प्रशासन हमें कब्जा धारक कहना बंद करे. हमारी भूमि को सरकारी भूमि बताने वाले विभाग यह बताएं कि उन्होंने आज तक कब-कब इस क्षेत्र की ठीया बंदी की है? जब पूर्व में हुई जांचों में प्रशासन के आला अधिकारी यह पुष्टि कर चुके हैं कि हम ही इसके मालिक हैं, तब फिर उन जांच रिपोर्टों को वर्तमान प्रशासन क्यों नजरअंदाज कर रहा है? जब पहले इन जगहों को गैर सरकारी जगह माना गया है तो फिर अब ये सरकारी कैसे हो गईं? उन्होंने जिला प्रशासन से 23 खसरों की 128 बीघा भूमि के सरकारी स्वामित्व होने के दस्तावेज सौंपने की मांग की.

कमेटी बनाकर नए सिरे से निष्पक्ष जांच कराई जाए
आगरा व्यापार मंडल के अध्यक्ष टीएन अग्रवाल ने कहा कि क्योंकि यह मामला पूर्व में उच्च न्यायालयों में विचाराधीन है, इसलिए हाईकोर्ट के पूर्व जजों व रिवेन्यू टीम की कमेटी बनाकर नए सिरे से निष्पक्ष जांज कराई जाए. जिला बार एसोसिएशन के अध्यक्ष व वरिष्ठ अधिवक्ता पं. बृजेन्द्र रावत ने कहा कि 1940 में ही इस जमीन का मुम्बई हाईकोर्ट ने मालिकाना हक तय कर दिया है उसी आधार पर बैनामें हुए हैं। आगरा शहर में यह जमीन नॉन जेडए में आती है. यह भूमि जमीदारी एव्यूलेशन एक्ट में नहीं आती है. इसलिए प्रशासन को अधिकार ही नहीं उक्त भूमि की जांच का.
बैनामे शून्य कैसे?
जॉन्स मिल संघर्ष समिति के पदाधिकारियों ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के अनुसार जिलाधिकारी को बैनामे शून्य करने का अधिकार नहीं है. यह प्रक्रिया अनुचित और अवैध है. जिलाधिकारी बताएं कि किस नियम और किस कानून के तहत वे वैध बैनामों को शून्य घोषित कर रहे हैं?
न्यायालय पर भरोसा करे प्रशासन
यदि कोर्ट ने प्रशासन को मामले में पक्षकार नहीं बनाया तो इस गलती को सुधारने का अधिकार भी कोर्ट को है,। न कि प्रशासन को.। प्रशासन को कोर्ट के फैसले पर कोई आपत्ति है तो कानूनी प्रक्रिया पूरी करते हुए नोटिस दें और न्यायलय पर भरोसा रखें.
सम्बंधिक बाबू उपलब्ध नहीं करा रहे अभिलेख
प्रशासन ने 30 जनवरी तक राजस्व सम्बंधी अभिलेखों के साथ अपना पक्ष रखने की बात कही है। लेकिन सम्बंधित बाबू अभिलेखों की प्रतिलिपि उपलब्ध कराने के बजाय, यह कह रहे हैं कि मामले की जांच चल रही है, इसलिए सभी कागजाद कप्तान साहब के कार्यालय में पहुंचा दिए गए हैं. ऐसे में हम प्रमामिक तथ्यों के साथ अपनी बात कैसे रखें. सब कुछ एक तरफा चल रहा है. हमें अपनी बात कहने का भी मौका नहीं मिल रहा.
अपना पक्ष रखने का बात कहना प्रशासन की बेईमानी
जिला प्रशासन ने समचार पत्रों के माध्यम से हमें अपना पक्ष रखने के लिए कहा है, लेकिन अधिकारी हमारी बात सुनने को ही तैयार नहीं तो हम अपना पक्ष कैसे रखें. केवल कागज रखना ही अपना पक्ष है तो वह तो रजिस्ट्रार ऑफिस से भी लिए जा सकते थे.
1955 में हाईकोर्ट खारिज कर चुकी है गजट
1949 के गजट में आंशिक संशोधन करते हुए होईकोर्ट ने हाईकोर्ट की अनुमति को जमीन बेचने के लिए आवश्यक कर दिया था. लेकिन 1955 में हाईकोर्ट ने इस गजट को ही खारिज कर दिया. इसमें से सभी रिसीवरों के नाम हटा दिए गए.
आमजन के मध्य फैला रहे भ्रांति
संघर्ष समिति ने कहा कि जिला प्रशासन को शायद न्यायालय पर भरोसा नहीं है इसीलिए वो नोटिस आदि की विधिक कार्रवाई के बिना केवल अखबारों के माध्यम से सूचित कर रहे है. उनके इस अनुचित रवैये से आमजन के मध्य भ्रांति फैल रही है. उन्होंने कहा कि हमने अब तक प्रशासन के हर वैध सर्वे और वैध तरीके से की गई हर जांच में पूर्ण सहयोग किया है. प्रशासन संभ्रांत नागरिकों और सारे कर अदा करने वाले व्यापारियों को हथकड़ी डालने की तैयारी कर रहा है। इसके विरुद्ध जन आक्रोश बढ़ रहा है.
मूल अधिकारों का हनन ग़लत
संघर्ष समिति ने कहा कि जिलाधिकारी ने बिजली-पानी और मरम्मत आदि के कामों पर रोक लगा दी है, जबकि बिजली- पानी आम आदमी का मूल अधिकार है. मूल अधिकारों का हनन कानूनी अपराध है. यह हक छीनना कानूनन उल्लंघन है.
जवाब देने से कतरा रहा प्रशासन
संघर्ष समिति ने बताया कि उन्होंने सूचना के अधिकार के तहत प्रशासन से पूछा था कि शहरी आबादी के अंदर किसी भी भूमि को खरीदते समय किन-किन सरकारी अभिलेखों को देखा जाना चाहिए और यह अभिलेख विगत कितने वर्षों तक के देखे जाने चाहिए पर इस आरटीआई का जवाब प्रशासन ने अभी तक नहीं दिया है. इन सवालों के जवाब प्रशासन देने से कतरा रहा है. इससे उसकी मंशा संदिग्ध मालूम पड़ती है.
जांच पूरी कैसे?
संघर्ष समिति के पदाधिकारियों ने कहा कि प्रशासन द्वारा की गई जांच के अभिलेख अधूरे हैं. एक ओर नगर निगम से पूरे प्रपत्र जिलाधिकारी को नहीं मिले हैं, वहीं राजस्व विभाग लखनऊ से भी टीम बैरंग लौट कर आई है. फिर अधूरे अभिलेखों के आधार पर जांच को पूर्ण कैसे मान लिया गया है?
शिकायतकर्ताओं की मंशा भी देखे प्रशासन..
संघर्ष समिति ने जॉन्स मिल प्रकरण में शिकायत करने वाले लोगों की मंशा पर भी सवाल उठाए. उन्होंने कहा कि यह लोग राजनीति से जुड़े हैं और इस जांच से राजनीतिक लाभ लेना चाहते हैं. साथ ही, यह अवैध वसूली व चौथ से जुड़े लोग हैं. इनका काम शिकायत करके पैसा वसूलना रहा है. संघर्ष समिति ने जिलाधिकारी से शिकायतकर्ताओं की जांच करने की अपील की.
सड़कों पर उतर कर करेंगे आंदोलन
क्षेत्रीय निवासियों की ओर से दीपक सिंह तोमर ने कहा कि हमारे बाप-दादा और पुरखे जॉन्स मिल में मजदूरी का काम करते थे. हम यहां अनेक दशकों से रह रहे हैं. अगर प्रशासन ने हमारे आशियाने उजाड़े तो हम सड़कों पर उतरकर आंदोलन करेंगे. गौरतलब है कि जॉन्स मिल लाइन से गरीब नगर तक जुड़ी बस्तियों में 35 हजार से अधिक लोग निवास कर रहे हैं.
प्रेस वार्ता में उपस्थित खाटू श्याम के भक्तों ने भी आक्रोश व्यक्त करते हुए कहा कि खाटू श्याम मंदिर लाखों हिंदुओं की आस्था का केंद्र है. प्रशासन इसको तोड़ने की साजिश न रचे अन्यथा ठीक नहीं होगा.
प्रमुख संगठन आये साथ..
जॉन्स मिल संघर्ष समिति से जुड़े व्यापारियों की इस लड़ाई में नेशनल चेंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज, आगरा व्यापार मंडल और बार एसोसिएशन ने भी अपना समर्थन व्यक्त किया है. उनकी ओर से व्यापारी नेता टीएन अग्रवाल, नेशनल चेंबर के अध्यक्ष राजीव अग्रवाल, बार एसोसिएशन के अध्यक्ष बृजेश रावत एडवोकेट, खाटू श्याम मंदिर के अध्यक्ष अनिल मित्तल, जॉन्स मिल संघर्ष समिति के संरक्षक ब्रजमोहन अग्रवाल, दयानंद नागरानी, मुकेश जैन, अतुल बंसल, प्रमोद अग्रवाल, अनिल जैन, विशाल बंसल, हर्ष गुप्ता, पंकज बंसल, मनोज अग्रवाल, मनीष, उमाशंकर माहेश्वरी, अशोक (फरह), सुनील अग्रवाल, नित्यानंद शर्मा, संजय खंडेलवाल, प्रमोद गोयल आदि प्रेस वार्ता में मौजूद रहे.