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Journey of Former CM Kalyan Singh, BJP First CM of UP

आगरालीक्स…अब यादों में कल्याण सिंह. पढ़िए पूर्व मुख्यमंत्री की जर्नी—कैसे 1991 में फायर ब्रांड नेता बनकर उभरे और बन गए उत्तर प्रदेश में भाजपा के पहले मुख्यमंत्री

1932 में अलीगढ़ के अतरौली में हुआ जन्म
कल्याण सिंह का जन्म 5 जनवरी 1932 को अलीगढ़ के अतरौली में हुआ था. यहां उनहोंने बीए तक पढ़ाई की और इसके बाद भारतीय जनसंघ से जुड़ गए. वर्ष 1952 के चुनाव में जनसंघ को 3 सीट मिलीं. इसमें श्यामा प्रसाद मुखर्जी कैबिनेट का हिस्सा बने. इसके ठीक पांच साल बाद 1957 के चुनाव में जनसंघ को 5 सीटें मिलीं. भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी इस बार पहली बार सांसद बने. पार्टी का धीरे—धीरे ग्राफ चढ़नेे लगा और 1962 के लोकसभा चुनाव में जनसंघ को 14 सीटें मिलीं. ये वो दौर था जिसमें जनसंघ अपना विस्तार कर रहा था, खासकर उत्तर प्रदेश में जनसंघ अपनी छवि बढ़ाता जा रहा था.

जनसंघ को मिला तेज तर्रार लड़का—नाम था कल्याण सिंह
उत्तर प्रदेश में जनसंघ को और अधिक मजबूती पाने के लिए पिछड़े वर्ग से मजबूत चेहरों की जरूरत थी. इसका जिम्मा जनसंघ के कद्दावर नेता रहे हरीशचंद्र श्रीवास्तव को दिया गया. जब हरीशचंद्र बाबू एक पिछड़े वर्ग के नेता की खोज में निकले तो कानों में ख़बर पड़ी कि साब, अलीगढ़ के अतरौली में एक लोध लड़का है. बड़ा तेज-तर्रार है और नाम है उसका कल्याण सिंह. बता दें कि UP के अलीगढ़, बुलंदशहर से लेकर गोरखपुर तक लोधी जाति की अच्छी-खासी आबादी थी. यादव और कुर्मी के बाद लोधी ही थे. कल्याण सिंह को तेज-तर्रार छवि के साथ-साथ लोधी होने का भी लाभ मिला. वे हरीशचंद्र बाबू की नज़र में आ गए. कल्याण सिंह को सक्रियता बढ़ाने के लिए कहा गया और 1962 में उन्हें अतरौली सीट से टिकट मिल गया. पहली बार वे विधानसभा चुनाव लड़ने जा रहे थे.

30 साल की उम्र में पहला चुनाव लड़ा
जनसंघ की तरफ से 30 साल के कल्याण सिंह मैदान में उतरे. लेकिन वो सोशलिस्ट पार्टी के बाबू सिंह के सामने हार गए. 5 साल बाद फिर चुनाव हुए और इस बार कल्याण सिंह जीतकर निकले. पिछली बार बाबू सिंह को जितने वोट मिले थे, उससे भी करीब 5 हज़ार वोट ज़्यादा कल्याण सिंह को मिले. करीब 26 हज़ार वोट. उन्होंने कांग्रेस के प्रत्याशी को हराया था. ये वो समय था जब कल्याण सिंह का अभ्युदय हुआ.

लगातार चार बार विधायक बने
कल्याण सिंह 1967 के बाद 69, 74 और 77 के चुनाव में भी अतरौली से जीते और लगातार 4 बार विधायक बने. पहली 3 बार जनसंघ के टिकट पर, चौथी बार जनता पार्टी के टिकट पर. 1980 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के अनवर खान ने उन्हें अतरौली से हरा दिया. इस बार कल्याण सिंह ने नई-नवेली भाजपा के टिकट पर 1985 के विधानसभा चुनाव में जोरदार वापसी करते हुए फिर जीत हासिल की. तब से लेकर 2004 के विधानसभा चुनाव तक कल्याण सिंह अतरौली से लगातार विधायक बनते रहे.

भाजपा को मिला राम मंदिर मुद्दा
1984 में भारतीय जनता पार्टी को उत्तर प्रदेश से एक नया मुद्दा मिल गया. वो मुद्दा था अयोध्या में राम मंदिर का. 1986 में राजीव गांधी के राज में एक जिला जज ने ऑर्डर किया कि मस्जिद के गेट को खोल दिया जाए. हिंदुओं को वहां पूजा करने की इजाजत दे दी गई. इसके बाद मुस्लिम समुदाय ने बाबरी मस्जिद एक्शन कमिटी बना ली और कहा कि पूजा नहीं करने दी जाएगी. उधर, विश्व हिंदू परिषद ने तय किया कि विवादित जगह के पास ही मंदिर बनाने के लिए शिलाएं रखी जाएंगी. कुछ रख भी दी गईं. 1989 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने आदेश किया कि तीन जजों की स्पेशल बेंच विवादित भूमि से जुड़े मुकदमे सुनेगी. फरवरी 1990 में वीपी सिंह देश के प्रधानमंत्री बन गए. भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने देश में रथयात्रा निकाली ताकि राम मंदिर के लिए जनसमर्थन जुटाया जा सके पर अक्टूबर आते-आते चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बन गए. 30 अक्टूबर को यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के आदेश पर पुलिस ने गोलियां चलाईं जिसमें कई कारसेवक मारे गये जो वहां पर मंदिर बनाने पहुंचे थे. इसके बाद मंदिर का मुद्दा और गरमा गया.

1991 में यूपी में भाजपा के पहले सीएम बने
1991 में उत्तर प्रदेश की 11वीं विधानसभा के गठन के लिए चुनाव होने थे. तब तक देश में मंडल-कमंडल की सियासत शुरू हो गई थी. आधिकारिक तौर पर पिछड़े वर्ग की जातियों का कैटेगराइज़ेशन हुआ. पिछड़ों की सियासी ताकत पहचानी गई. अब तक बनिया और ब्राह्मण की पार्टी कही जाने वाली भाजपा ने कल्याण सिंह को पिछड़ों का चेहरा बनाया और वादा किया गुड गवर्नेंस का. कल्याण सिंह लोधी राजपूतों के मुखिया और फायर ब्रांड हिंदू नेता के तौर पर उभरे. चुनाव हुए और UP की 425 में से 221 सीट जीतकर भारतीय जनता पार्टी पूर्ण बहुमत से सत्ता में आई. कल्याण सिंह की बतौर मुख्यमंत्री ताजपोशी हुई.

1992 में कल्याण सिंह सरकार हो गई बर्खास्त
कारसेवा होने से पहले बतौर मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दिया था. इसमें कहा गया कि वे मस्जिद को कोई नुकसान नहीं होने देंगे. लेकिन नुकसान हुआ. सर्वविदित है कि 6 दिसंबर, 1992 को कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद ढहा दी. मस्जिद गिरने के तुरंत बाद कल्याण सिंह ने मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया. 7 दिसंबर, 1992 को केंद्र की नरसिंह राव सरकार ने उत्तर प्रदेश की सरकार को बर्खास्त कर दिया. सूबे में राष्ट्रपति शासन लग गया.

कल्याण सिंह का उस समय का बयान
“बाबरी का विध्वंस भगवान की मर्जी थी. मुझे इसका कोई मलाल नहीं है. ये सरकार राम मंदिर के नाम पर बनी थी और उसका मकसद पूरा हुआ. ऐसे में सरकार राम मंदिर के नाम पर कुर्बान. राम मंदिर के लिए एक क्या, सैकड़ों सत्ता को ठोकर मार सकता हूं. केंद्र कभी भी मुझे गिरफ्तार करवा सकता है, क्योंकि मैं ही हूं, जिसने अपनी पार्टी के बड़े उद्देश्य को पूरा किया है.”
कल्याण सिंह
8 दिसंबर 1992

1996 में फिर सीएम बने कल्याण सिंह
1993 के चुनाव में सपा-बसपा ने मिलकर सरकार बना ली लेकिन गेस्ट हाउस कांड होने के बाद सपा और बसपा अलग हो गए और 1996 में फिर से चुनाव हुए. चुनावी नतीजा आया तो बीजेपी 173 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी, लेकिन सरकार नहीं बनी. राष्ट्रपति शासन. और जब हटा तो बीजेपी के सहयोग से मायावती मुख्यमंत्री बन गई थीं. समझौता हुआ था कि छह महीने बसपा और छह महीने भाजपा का मुख्यमंत्री. मायावती के छह महीने पूरे हुए तो कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बने. तारीख थी 21 सितंबर, 1997. लेकिन एक महीना भी नहीं बीता कि मायावती ने समर्थन वापस ले लिया. राज्यपाल रोमेश भंडारी ने कल्याण सिंह को दो दिन के अंदर बहुमत साबित करने को कहा. 21 अक्टूबर को कल्याण सिंह ने बहुमत साबित कर दिया. हालांकि इसके बदले उन्हें 90 से ज्यादा मंत्री बनाने पड़े जोकि अब तक सबसे बड़ा मंत्रिमंडल माना जाता है.

1998 में राज्यपाल ने किया बर्खास्त
जिस कल्याण सिंह को राज्यपाल रोमेश भंडारी ने मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई थी, उन्हीं रोमेश भंडारी ने 21 फरवरी, 1998 को कल्याण सिंह को मुख्यमंत्री पद से बर्खास्त कर दिया. कल्याण सिंह की ही सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे जगदंबिका पाल को रात के साढ़े 10 बजे मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी. फैसले के विरोध में बीजेपी के बड़े नेता अटल बिहारी वाजपेयी समेत कई लोग धरने पर बैठ गए. रात को ही हाई कोर्ट में अपील की गई. 22 फरवरी के दिन जगदंबिका पाल मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे थे. इसी बीच हाई कोर्ट ने राज्यपाल के आदेश को खारिज कर दिया. कहा कि कल्याण सिंह ही मुख्यमंत्री हैं. अब कल्याण सिंह सचिवालय पहुंचे तो जगदंबिका पाल पहले से ही मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे थे. किसी तरह से हाई कोर्ट के आदेश का हवाला देकर उन्हें हटाया गया और फिर कल्याण अपनी जगह पर वापस आए. 26 फरवरी को फिर से बहुमत साबित करने को कहा गया. कल्याण सिंह ने बहुमत साबित कर दिया. जगदंबिका पाल कुछ घंटों के मुख्यमंत्री बनकर रह गए.

1998—99 से पॉलिटिकल करियर का पतन हुआ शुरू
कल्याण सिंह के पॉलिटिकल करियर का पतन शुरू हुआ 1998-99 से. अटल बिहारी वाजपेयी से टकराव होने पर दो साल बाद ही 1999 में भाजपा ने उन्हें मुख्यमंत्री के पद से हटा दिया. इसके बाद उन्होंने भाजपा छोड दी और अपनी अगल पार्टी बना ली. हालांकि 2004 में दोबारा भाजपा ज्वाइन की, बुलंदशहर से एमपी चुने गए. इसके बाद 2009 में दोबारा भाजपा छोड दी और एटा से निर्दलीय चुनाव लडा. 2014 में दोबारा भाजपा ज्वाइन की और 2014 में राजस्थान के राज्यपाल बनाए गए। पांच साल तक राजस्थान के राज्यपाल रहे.

30 सितंबर 2020 को बाबरी मस्जिद विध्वंस में किया बरी
यूपी के मुख्यमंत्री बनने के बाद कल्याण सिंह ने 1991 में अयोध्या पहुंचकर राम मंदिर निर्माण का ऐलान किया था। इसके बाद छह दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद ढहाई गई। 30 सितंबर 2020 को सीबीआई की विशेष अदालत ने कहा कि बाबरी मस्जिद विध्वंस की घटना पूर्व नियोजित नहीं थी, यह आकस्मिक घटना थी। इस मामले में पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह, पूर्व उप मुख्यमंत्री लाल क्रष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती सहित सभी आरोपियों को बरी कर दिया।

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