आगरालीक्स..शुभ कार्य करने हैं तो जल्दी निपटा लें, वरना एक माह का लगेगा ब्रेक। खरमास 15 दिसंबर से लगेगा, जो 14 जनवरी तक चलेगा। जानें विस्तार से।
सूर्य का बृहस्पति की धनुराशि में होगा गोचर

श्री गुरु ज्योतिष शोध संस्थान एवं गुरु रत्न भण्डार वाले ज्योतिषाचार्य पंडित हृदय रंजन शर्मा के मुताबिक सूर्य के बृहस्पति की धनुराशि में गोचर करने से खरमास शुरू होता है। यह स्थिति मकर संक्रान्ति तक रहती है।
शादी-विवाह मांगलिक कार्य हो जाते हैं निषेध
इस कारण मांगलिक कार्य नहीं होते है। जैसे ही सूर्य धनु राशि में प्रवेश करता है तभी से खरमास आरम्भ हो जाता है। इसी के साथ शादी विवाह एवं अन्य मांगलिक कार्य निषेध हो जाते हैं। इस माह में सूर्य धनु राशि का होता है। ऐसे में सूर्य का बल वर को प्राप्त नहीं होता।
खरमास लगने और समाप्ति का समय
इस वर्ष 15 दिसंबर 2024 की रात्रि 10:11 से 14 जनवरी 2025 की सुबह 08: 56 मिनट तक सूर्य के मकर राशि मे प्रवेश करने तक तक खरमास रहेगा। वर को सूर्य का बल और वधु को बृहस्पति का बल होने के साथ ही दोनों को चंद्रमा का बल होने से ही विवाह के योग बनते हैं। इस पर ही विवाह की तिथि निर्धारित होती है।
सभी प्रकार के मांगलिक कार्यों पर लगता है ब्रेक
खरमास शुरू हो जाने से विवाह संस्कारों पर एक माह के लिए रोक लग जाएगी। साथ ही अनेक शुभ संस्कार जैसे जनेऊ संस्कार, मुंडन संस्कार, गृह प्रवेश भी नहीं किया जाएगा। हमारे भारतीय पंचांग के अनुसार सभी शुभ कार्य रोक दिए जाएंगे। खरमास कई स्थानों पर मलमास के नाम से भी विख्यात है।
साल में दो बार मलमास आता है
हिन्दू धर्म ग्रंथों में इस पूरे महीने में किसी भी शुभ कार्य को करने की मनाही है। जब गुरु की राशि धनु में सूर्य आते हैं तब खरमास का योग बनता है। वर्ष में दो मलमास पहला धनुर्मास और दूसरा मीन मास आता है। यानी सूर्य जब-जब बृहस्पति की राशियों धनु और मीन में प्रवेश करता है तब खर या मलमास होता है क्योंकि सूर्य के कारण बृहस्पति निस्तेज हो जाते हैं।
उत्तर भारत में है इसे ज्यादा मान्यता
इसलिये सूर्य के गुरु की राशि में प्रवेश करने से विवाह संस्कार आदि कार्य निषेध माने जाते हैं। विवाह और शुभ कार्यों से जुड़ा यह नियम मुख्य रूप से उत्तर भारत में लागू होता है जबकि दक्षिण भारत में इस नियम का पालन कम किया जाता है। मद्रास, चेन्नई, बेंगलुरू में इस दोष से विवाह आदि कार्य मुक्त होते हैं
खरमास में व्रत का महत्व
जो व्यक्ति खरमास में पूरे माह व्रत का पालन करते हैं उन्हें पूरे माह भूमि पर ही सोना चाहिए. एक समय केवल सादा तथा सात्विक भोजन करना चाहिए. इस मास में व्रत रखते हुए भगवान पुरुषोत्तम अर्थात विष्णु जी का श्रद्धापूर्वक पूजन करना चाहिए तथा मंत्र जाप करना चाहिए. श्रीपुरुषोत्तम महात्म्य की कथा का पठन अथवा श्रवण करना चाहिए. श्री रामायण का पाठ या रुद्राभिषेक का पाठ करना चाहिए. साथ ही श्रीविष्णु स्तोत्र का पाठ करना शुभ होता है।मास के आरम्भ के दिन श्रद्धा भक्ति से व्रत तथा उपवास रखना चाहिए. इस दिन पूजा – पाठ का अत्यधिक महात्म्य माना गया है. इसमास मे प्रारंभ के दिन दानादि शुभ कर्म करने का फल अत्यधिक मिलता है. जो व्यक्ति इस दिन व्रत तथा पूजा आदि कर्म करता है वह सीधा गोलोक में पहुंचता है और भगवान कृष्ण के चरणों में स्थान पाता है।
खरमास की समाप्ति पर यह करना होता है
खरमास की समाप्ति पर स्नान, दान तथा जप आदि का अत्यधिक महत्व होता है. इस मास की समाप्ति पर व्रत का उद्यापन करके ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए और अपनी श्रद्धानुसार दानादि करना चाहिए। इसके अतिरिक्त एक महत्वपूर्ण बात यह है कि खरमास माहात्म्य की कथा का पाठ श्रद्धापूर्वक प्रात: एक सुनिश्चित समय पर करना चाहिए।
दान पुण्य का भी है महत्व
इस मास में रामायण, गीता तथा अन्य धार्मिक व पौराणिक ग्रंथों के दान आदि का भी महत्व माना गया है. वस्त्रदान, अन्नदान, गुड़ और घी से बनी वस्तुओं का दान करना अत्यधिक शुभ माना गया है