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Meet Your Doctor : Agra’s Gastroenterologist Dr. Dinesh Garg first priority is patient in last 18 years
आगरालीक्स…आगरा के गेस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट डॉ दिनेश गर्ग क्यों चैन से सो नहीं पाते, क्या कमिटमेंट है जो 18 साल तक कोई आंधी-तूफान मरीज के पास पहुंचने से उन्हें नहीं रोक सका, मोबाइल से दूरी क्यों, कैसे करते हैं स्मार्ट वर्क, चैस से दोस्ती की वजह क्या है, जानिए बहुत कुछ
काले कालं समायरे, अर्थात जिस समय जो काम उचित हो उस समय वही काम करना चाहिए। आगरा में वरिष्ठ पेट, आंत एवं लिवर रोग विशेषज्ञ डाॅ. दिनेश गर्ग मानते हैं कि विकास की राह में समय की बर्बादी सबसे बड़ी शत्रु है। युवा उनसे सीख सकते हैं कि टाइम मैनेजमेंट एक साइंस है। इससे आप सफल हो सकते हैं, प्रसिद्धि पा सकते हैं और धन भी इसी से आता है।
डाॅ. दिनेश गर्ग बताते हैं कि जिन लोगों के पास काम अधिक है और समय कम वे समय निर्धारण का अभ्यास करें। वे खुद भी इसीलिए स्मार्ट वर्क करते हैं। काम पर फोन न उठाने से लेकर घर वापस आकर चैस खेलना सभी इसका हिस्सा है। उनका मानना है कि हर मरीज के साथ पूरा न्याय होना चाहिए। जब आप काम कर रहे होते हैं तब बस आप काम कर रहे होते हैं। इसीलिए वे अपने हर एक मरीज को पूरा समय देते हैं, उसकी बात को पूरे ध्यान से सुनते हैं। उसके बाद ही इलाज की प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हैं। इस बीच मोबाइल फोन से तब तक दूरी बनी रहती है जब तक सभी मरीजों को न देख लिया जाए या फिर कोई बहुत काॅल न हो। हालांकि कई बार प्रोसीजर में होने की वजह से भी वे फोन नहीं उठा पाते। ऐसे सभी फोन काॅल्स और मोबाइल पर भेजे गए संदेशों के रिप्लाई वे शाम को घर वापस आने के बाद करते हैं। आम तौर पर वे समय से सोते हैं लेकिन कई बार जब उनका कोई मरीज अधिक तकलीफ में हो या अधिक गंभीर स्थिति में हो तो ठीक से नींद नहीं आती। कई बार आकस्मिक परिस्थितियों में उठकर अस्पताल जाना पड़ता है तो कई बार देर रात अस्पताल से आने वाली फोन काॅल्स के रिप्लाई या टेलीफोनिक कंसल्ट करने पड़ते हैं। स्वस्थ रहने के लिए सुबह योग करते हैं, दिन में थकान को दूर रखने के लिए स्मार्ट वर्क करते हैं। शाम को काम से लौटने के बाद वे कुछ वक्त अपने परिवार में सभी के साथ बिताते हैं और वर्कलोड को कम करने के लिए शौकिया तौर पर शतरंज खेलना पसंद करते हैं। मरीजों के साथ अन्याय न हो इसी चिंता में आगरा में 18 साल की अब तक की प्रेक्टिस में किसी भी वर्किंग डे में वे कार्य से अनुपस्थित नहीं रहे या यूं कहें कि कोई भी आंधी या तूफान काम पर जाने से उन्हें रोक नहीं सका।
डाॅ. गर्ग कहते हैं कि जनता की सोच में अब काफी बदलाव आ चुका है। डाॅक्टर-रोगी संबंध पहले जैसे नहीं रहे हैं, जहां मरीज सौ फीसद डाॅक्टर के परामर्श पर निर्भर थे। अब मरीज अपने इलाज के फैसलों में डाॅक्टर से बराबर के साझीदारी बनना चाहते हैं।
ऐसे करते हैं टाइम मैनेजमेंट
- सुबह 5.30 बजे उठना
- सुबह 6.00 बजे से योग और हल्का व्यायाम।
- सुबह 8.00 बजे हाॅस्पिटल पहुंचकर भर्ती मरीजों को देखना।
- सुबह 10 बजे से शाम के 6.00 बजे तक ओपीडी।
- दोपहर 2.00 बजे एक छोटा लंच ब्रेक, इसी बीच वेबिनार, एकेडमिक एक्टिविटी या जरूरी फोन काॅल्स को निपटाना।
- शाम 7.00 बजे घर आकर बच्चों के साथ समय बिताना, दोस्तों से बात करना, चैस खेलना, लिटरेचर पढ़ना।
- रात 10.30 बजे बिस्तर पर जाना।