आगरालीक्स… श्री कृष्ण का छठी पूजन महोत्सव 24 अगस्त को है। कौन हैं छठ माता, क्या है छठी पूजन, पूजन किसकी प्राप्ति। जानिये महत्व और विशेषताएं।
छठी पूजन नवजात शिशु के लिए मंगलकामना
श्री गुरु ज्योतिष शोध संस्थान गुरु रत्न भंडार के अध्यक्ष ज्योतिषाचार्य पंडित हृदय रंजन शर्मा हिन्दुओं के घरों में शिशु जन्म के छठे दिन सायंकाल या रात्रि को जो विशेष पूजन किया जाता है, उसे बोलचाल की भाषा में ‘छठी पूजा’कहते हैं ।छठी पूजा नवजात शिशु के मंगल की कामना से की जाती है।
कौन हैं षष्ठी देवी
🌟 मूलप्रकृति के षष्ठांश (छठा अंश) होने से इन्हें ‘षष्ठी देवी’ कहते हैं । पुराणों में षष्ठी देवी को ‘बालकों की अधिष्ठात्री देवी’, उनको दीर्घायु प्रदान करने वाली, उनकी धात्री (भरण-पोषण करने वाली) व उनकी रक्षा करने वाली और सदैव उनके पास रहने वाली माना गया है
🌹 इन्हें ‘विष्णुमाया’, ‘बालगा’, ‘सिद्धयोगिनी’ और स्वामी कार्तिकेय की पत्नी होने से ‘देवसेना’ भी कहते हैं
🌸 षष्ठी देवी की कृपा से राजा प्रियव्रत का मृतपुत्र जीवित हो गया । तभी से बालक के जन्म के बाद सूतिकागृह में छठे या इक्कीसवें दिन व अन्नप्राशन संस्कार तथा अन्य शुभकार्यों में षष्ठी पूजा होने लगी।
🌺 जब से परमात्मा श्रीकृष्ण गोकुल में प्रकट हुए हैं, ब्रज के घर-घर में आनंद छा गया। गोपियों को तो सूतिकागृह में श्रीकृष्ण के दर्शन हो गए, वे अपने घर जाकर गोपों से लाला के रूप और माधुर्य का वर्णन करती हुई कहती हैं
🍁 नंदबाबा के लाला के अंग इतने सुन्दर हैं मानो नीलकान्तमणि के अंकुर हों; इतने कोमल हैं मानो तमाल के नवपल्लव हों; इतने स्निग्ध (चिकने) हैं मानो वर्षाऋतु में खिले नवीन कमल हो; इतने सुरभित (सुगन्धित) हैं मानो लक्ष्मी के माथे पर लगा कस्तूरी तिलक हो और इतने आकर्षणशील हैं मानो सौभाग्यलक्ष्मी के नेत्रों में लगा कजरारा अंजन हो ।’ ऐसे अद्भुत और विलक्षणनंद बाबा के लाला (शिशु) के बारे में सुनकर व्रज के सभी गोप भी उन्हें देखने के लिए लालायित हो उठे । षष्ठी पूजन के दिन सभी गोपों की भी श्रीकृष्ण-दर्शन की अभिलाषा पूरी होने का समय आ गया । नंदलाला के छठी उत्सव में नंदबाबा ने कंस के राक्षसों के भय से केवल बंधु-बांधवों को ही बुलाया था परन्तु आज कोई रुकने वाला नहीं था; न ही किसी को निमन्त्रण की आवश्यकता थी । इसलिए दूर-दूर के गांवों के गोप-गोपियां नंदमहल के द्वार पर आकर इकट्ठे हो गए।
🌸 नंदबाबा ने गोपों के दिए उपहारों को बड़ी प्रसन्नता से स्वीकार किया क्योंकि वे उन उपहारों को लाला पर ब्रजवासियों के आशीर्वाद के रूप में देख रहे थे और सबसे कह रहे थे—‘तुम्हारे आशीर्वाद से ही मेरा लाल फलेगा-फूलेगा।
🍁 सायंकाल में पौर्णमासी देवी अपने पुत्र मधुमंगल के साथ नंद नन्दन को आशीर्वाद देने आयीं। पौर्णमासी देवी को भगवान की योगमाया शक्ति कहा जाता है और मधुमंगल बाद में श्रीकृष्ण का सखा मनसुखा कहलाया । नंदरानी ने आशीर्वाद लेने के लिए नीलमणि को उठाकर पौर्णमासी देवी के चरणों पर रख दिया। मधुमंगल ने यशोदाजी से कहा- मैया ! ऊपर तो देख, क्या तमाशा हो रहा है । हंस, बैल, गरुड़, मोर, हाथी व रथ पर सवार होकर कौन-कौन आया है। मधुमंगल की बात सुनकर नंदरानी भयभीत हो गयीं कि कहीं कोई राक्षस तो लाला को हानि पहुंचाने नहीं आ गया।
🌺 पौर्णमासीजी ने सबको समझाया कि आकाश में देवतागण भगवान श्रीकृष्ण के छठी उत्सव को देखने आए हैं ।नंदबाबा और नंदरानी ने अपने पुत्र की मंगलकामना के लिए किया षष्ठी पूजन।
🌻 श्रीकृष्ण जन्म की छठी रात्रि में नंदबाबा और नंदरानी यशोदा अपने पुत्र की मंगलकामना के लिए सूतिका-गृह में षष्ठी पूजा के लिए बैठे । बालकृष्ण को नहलाकर सुन्दर वस्त्र पहनाए । गोबर से षष्ठी देवी की सुन्दर मूर्ति बनायी गयी । सफेद चावलों की वेदी पर षष्ठी देवी की मूर्ति को विराजमान कर पास में कलश स्थापना की गयी। फिर षोडशोपचार पूजन कर उनका भांति-भाति के व्यजंनों का भोग लगाया गया और प्रार्थना की।
🌸 कुल की प्रथा के अनुसार यशोदाजी ने अपने पुत्र की छठी पूजी और पीले थापे लगाए । सब गोपबालाओं ने सोने के थाल भर-भर के बालकृष्ण को उपहार दिए और मंगलगीत गाकर उनको चिरंजीवी होने का आशीर्वाद दिया। ♦पूजत छठी जु कान्ह कुंवर की थापे पीत लगाई
♦कंचन थार लिएँ ब्रजबनिता रोचन देत सुहाई
♦आँजति आँखि जु सबहि सुवासिन, मांगत नैन भराए
♦सूरदास प्रभु तुम चिरजीयौ, घर-घर मंगल गाए