आगरालीक्स….बसंत के पीत रंग में रंगने लगा दयालबाग. कब है बसंत और क्या—क्या होंगे कार्यक्रम..देखिए आगरालीक्स पर.
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दयालबाग में बसंतोत्सव की शुरुआत हो चुकी है. हर घर और आंगन को पीले फूलों व रंगों से सजाया जा रहा है. दयालबाग विश्वविद्यालय के गेट भी फूलों से बनाए गए हैं जो कि देखने में आकर्ष लग रहे हैं. यही नहीं दयालबाग की कॉलोनियां भी पीले रंगों में सजी हुई हैं. यहां धूमधाम से यह पर्व मनाया जाता है. आपको बता दें की मां सरस्वती के पूजन का पर्व बसंत पंचमी 16 फरवरी को है. हर साल माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को बसंत पंचमी मनाते हैं. ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, 16 फरवरी को सुबह 03 बजकर 36 मिनट पर पंचमी तिथि लगेगी, जो कि अगले दिन यानी 17 फरवरी को सुबह 5 बजकर 46 मिनट पर समाप्त होगी. ऐसे में पंचमी तिथि 16 फरवरी को पूरे दिन रहेगी. बसंत पंचमी के दिन अबूझ मुहूर्त होता है। इस दिन किसी भी कार्य को करने के लिए मुहूर्त देखने की जरूरत नहीं होती है. बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की विधि-विधान से पूजा की जाती है. सरस्वती पूजा के दौरान कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी होता है.
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ये है दयालबाग में बसंत का महत्व
बसंत, राधास्वामी मत के अनुयायियों के लिए विशेष हर्ष व उल्लास का पैग़ाम लेकर आता है. “ऋतु बसंत आये सतगुरु जग में। चलो चरनन पर सीस धरो री।।“ सन् 1861, बसंत पंचमी के शुभ दिन परम पुरूष पूरन धनी हुज़ूर स्वामीजी महाराज ने पन्नी गली, आगरा से सर्वसाधारण के लिए सतसंग प्रारम्भ किया तथा राधास्वामी मत उद्घाटित हुआ. आज यह मत देष विदेष में निरन्तर प्रगति करता हुआ अपने 202 वर्ष पूर्ण कर चुका है.
बसंत के ही दिन 20 जनवरी 1915 को राधास्वामी मत के पाँचवे आचार्य परम पूज्य हुजूर साहब जी महाराज ने ‘‘मुबारक कुएँ’’ के निकट शहतूत के वृक्ष का रोपण कर दयालबाग काॅलोनी की नींव रखी थी तथा इसका नाम ‘दयालबाग़’ रखा था। यह ‘मुबारक कुआँ’ एवं ‘शहतूत का पेड़’ आज भी संरक्षित है. दयालबाग़ की नींव रखने के पश्चात् अगले ही दिन 21 जनवरी 1915 को दयालबाग़ में षिक्षा की इमारत (आर. ई. आई. काॅलेज, जो अब दयालबाग़ विष्वविद्यालय के ”दीक्षांत भवन परिसर” के नाम से प्रसिद्ध है) की नींव रखी. उस समय कुएँ के आस-पास ऊँचे-2 टीले तथा कँटीली झाड़ियाँ थी परन्तु सन्त सतगुरुओं के अथक परिश्रम व मार्गदर्शन का ही प्रताप है कि जहाँ रेत के टीले व कटीले पेड़ पौधे थे, आज वहाँ 1200 एकड़ भूमि पर हरे-भरे लहलहाते खेत ही खेत दिखाई देते हैं जिनमें हर प्रकार की फसलें, फल, सब्जियाँ व कई प्रकार की आयुर्वेदिक जड़ी बूटियाँ जैसे अष्वगन्धा, अकरकरा, आंवला, गुलाब, केवड़ा इत्यादि भी उगाई जा रही हैं. गुलाब से गुलाब जल तैयार कर औषधि एवं षरबत इत्यादि कई प्रकार के उत्पाद तैयार किये जा रहे हैं, जोकि स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभकारी है. इन दिनों लगभग 200 एकड़ भूमि पर पीले-पीले फूलों से लहलहाती सरसों की फसल बसन्त के शुभागमन का संदेश दे रही है.
इस बार बाहर से नहीं आएंगे कोई भी सतसंगी
इस वर्ष कोविड-19 के कारण प्रत्येक कार्यक्रमों के आयोजन में विशेष सावधानियां बरती जाएंगी. इस वर्ष बसन्तोत्सव पर बाहर से किसी भी सतसंगी भाई-बहन को दयालबाग़ आने की इजाज़त नहीं है वरन् देष विदेष में सभी कार्यक्रमों का सजीव प्रसारण दयालबाग़ के 500 से अधिक केन्द्रों पर किया जायेगा. वहाँ पर भी सभी भाई-बहन कोविड-19 के प्रति सावधानियां बरतते हुए शामिल होंगे तथा घर बैठे ही कार्यक्रमों का आनन्द लेते हुए आध्यात्मिक सुख का अनुभव करेंगे.
खुले में होंगे कार्यक्रम
दयालबाग़ में भी अधिकतर कार्यक्रम खुले में (खेतों में) आयोजित किये जायेंगे जिससे अधिक भीड़ न हो एवं नियमों का पालन किया जा सके, सभी केन्द्रों पर शामिल होने वाले भाई, बहन एवं बच्चे मास्क तथा हेलमेट का प्रयोग अनिवार्य रूप से करेंगे. आज कल प्रत्येक दयालबाग़ निवासी (बच्चे-वृद्ध, स्त्री-पुरूष) पूरी उमंग व हर्षोल्लास से काॅलोनी की सफाई, रंगाई पुताई तथा सजावट
में जुटे हुए हैं.