
आगरालीक्स….. प्लेग्राउंड में सामान्य बच्चों के साथ एक नेत्रहीन बच्चा भी पहुंचता है। सभी खेलते हैं, लेकिन नेत्रहीन बच्चा बैठा रहता है। अन्य बच्चे उसे भी खेल में शामिल करने के लिए खुद की आंख में पट्टी बांध लेते हैं। तब सभी बच्चों को अहसास होता है कि ब्लाइंड को कैसा अहसास होता है। सांकेतिक रूप से एक बच्ची अपनी ज्योति नेत्रहीन बच्चे को देती है। ‘विजन पॉसिबल’ मूवी ‘दृष्टि 2015’ समारोह में गोल्डेन आई अवार्ड विजेता रही। अंतरदृष्टि द्वारा डॉ. बीआर अंबेडकर विश्वविद्यालय के जुबली हॉल में आयोजित समारोह में शनिवार को 16 लघु फिल्मों का प्रदर्शन हुआ।
अंतरदृष्टि के सीईओ अखिल श्रीवास्तव ने कहा कि नेत्रदान करने से ज्यादा करवाने पर जोर दिया जाए। ये देखा जा रहा है कि नेत्रदान की प्रतिज्ञा लेने वालों की संख्या काफी ज्यादा है, लेकिन मौत के बाद परिवार इसके लिए तैयार नहीं होते हैं। नेत्रदान करने से ज्यादा नेत्रदान करवाने को प्रोत्साहित किया जाए तो नेत्रहीनों की जिंदगी में भी रोशनी लाई जा सकती है।
दृष्टि 2015 के समापन समारोह के दौरान नेत्रदान प्रोत्साहन के लिए नए साल (वर्ष 2016) के कैलेंडर का विमोचन हुआ। यह कैलेंडर क्रिएटिव कांटेस्ट में आईं चुनिंदा प्रवृष्टियों से सुसज्जित पोस्टर से बना है।

क्रिएटिव कांटेस्ट के विजेता
लघु फिल्म ‘विज़न पॉसिबल’ गोल्डेन आई अवार्ड और ‘बिंदी’ ने सिल्वर आई अवार्ड जीता। फिल्म ‘विज़न पॉसिबल’ का निर्माण आंध्रप्रदेश के कांचीपुरम के शिव कुमार ने किया था। जबकि फिल्म ‘बिंदी’ के निर्माता आंध्रप्रदेश के विष्णु गणपति एपी हैं।
पोस्टर प्रतियोगिता में देहरादून के सचिन चौहान ने गोल्डेन आई और अहमदाबाद के गोपाल प्रजापति ने सिल्वर आई अवार्ड जीता। ऑडियो जिंगल का गोल्डेन आई अवार्ड गाजियाबाद के आयुष पांडे को मिला, तो सिल्वर आई नागपुर की प्रवीण रंगवाला ने जीता।
ऑनलाइन वोटिंग में लघु फिल्म श्रेणी में ‘हेप्पीनेस इज गिविंग’ को सबसे ज्यादा 8019 वोट मिले। इसका निर्देशन कोयंबटूर के एम स्टालिन कुमार ने किया था। जबकि तमिलनाडु के करूर निवासी एन सेतुराजन के पोस्टर श्रेणी में सबसे ज्यादा 60,620 वोट मिले। दिल्ली के शुभ खट्टर ने ऑडियो जिंगल श्रेणी में (हम नेत्रदान करेंगे शीर्षक) में बाजी मारी।
‘अबे अंधा है क्या’ का मंचन
‘अबे सालों, यहां काहे को बैठे हो, घर जाओ, नाटक खत्म हो गया, अंधे हो क्या।‘ इस संवाद के साथ 12 मिनट से सांसें रोककर बैठे दर्शकों को जैसे वास्तविकता का अहसास हुआ। ‘दृष्टि 2015’ के समापन समारोह में सूरदास नेत्रहीन विद्यालय, कीठम के छात्रों ने नाटक की प्रस्तुति के जरिए सभी सामाजिक मुद्दों पर जमकर कटाक्ष किया। खास तौर पर स्मार्ट सिटी में नेत्रहीनों के लिए क्या सुविधाएं होंगी, इस सवाल को बड़ी शिद्दत से उठाया।
नाटक में छात्रों ने संदेश दिया कि स्मार्ट सिटी में चौड़ी-चौड़ी सड़कें होंगी। ऊंची बिल्डिंगें होंगी, लेकिन इनमें मेरी कोई जगह न होगी। छात्रों ने प्रधानमंत्री के सूट पर भी कटाक्ष किया। कहा कि देश में विकास हो रहा है। समाज में विकलांग, गूंगे, बहरे और अंधे की जगह का ख्याल नहीं रखा जा रहा है।
दिल्ली से आए वरिष्ठ रंगकर्मी राकेश भारद्वाज के निर्देशन में प्रस्तुत नाटक ‘अबे अंधा है क्या’ में संतोष (हारमोनियम), रॉबिन सिंह (ढोलक), केशव, दीपक, रिंकू, शमीम, विकास, विक्रांत, अंकित और देवनाराययण ने भूमिका निभाई। नाटक के बाद इन छात्रों को सम्मानित किया गया।
नाटक के निर्देशक राकेश भारद्वाज ने बताया कि नाटक का डायलॉग, गीत नेत्रहीन बच्चों ने ही तैयार किया है। मात्र सात दिनों में ही बच्चों की प्रतिभा को दिशा दी गई और वे मंच पर बेहतरीन नाटक का मंचन कर डाला।
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