Worship of Sheetla Mata auspicious on 1st, 3rd and 4th of April
आगरालीक्स.. माता शीतला पूजन (बासौड़ा) त्योहार होली के सात-आठ दिन बाद या होली के बाद पहले सोमवार या गुरुवार को मनाया जाता है। गुरुवार यानि कल एक अप्रैल से बासौड़ा पूजन शुरू हो जाएगा।
श्री गुरु ज्योतिष शोध संस्थान अलीगढ़ के अध्यक्ष ज्योतिषाचार्य पं. हृदय रंजन शर्मा के मुताबिक एक अप्रैल को अनुराधा नक्षत्र सिद्धि योग बालव करण के शुभ साथ संयोग मे माता शीतला पूजन (बासौडा) शुभ है। इस दिन बासी भोजन खाया जाता है (1 दिन पहले बनाया हुआ ) इसमें विशेषकर होली के बाद सोमवार या गुरुवार कभी भी खाली नहीं जाता। इसमें पथवारी माता( योगिनी देवी) की पूजा होती है।
उन्होंने बताया कि यह व्रत चैत्र मास के कृष्ण पक्ष में अष्टमी या लोकाचार में होली के बाद पड़ने वाले पहले सोमवार अथवा गुरुवार को किया जाता है। शुक्रवार को भी इसके पूजन का विधान है, परंतु रविवार, शनिवार अथवा मंगलवार को शीतला का पूजन न करें। इन वारों में यदि अष्टमी तिथि पड़ जाए तो पूजन अवश्य कर लेना चाहिए।
-इस व्रत के प्रभाव से व्रती का परिवार ज्वर, दुर्गंधयुक्त फोड़े-फुंसियों, नेत्रों से संबंधित सभी विकार, शीतला माता की फूंसियों के चिह्न आदि रोगों तथा शीतला जनित दोषों से मुक्त हो जाता है। इस व्रत के करने से शीतला देवी प्रसन्न होकर अपने भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करती हैं।
हर गांव, नगर तथा शहर में शीतला माता का मठ होता है। मठ में शीतला का स्वरूप भी अलग-अलग तरह का देखा जाता है। शीतलाष्टकम् में शीतला माता को रासभ (गर्दभ-गधा) के ऊपर सवार दर्शनीय रूप में वर्णित किया गया है। अतः व्रत के दिन शीतलाष्टक का पाठ करें। व्रत की विधि: शीतलाष्टमी व्रत करने वाले व्रती को पूर्व विद्धा अष्टमी तिथि ग्रहण करनी चाहिए। इस दिन सूर्योदय वेला में ठंडे पानी से स्नान कर संकल्प करना चाहिए।
– होलिका के बाद आनेवाले पहले गुरुवार के हिसाब से माता शीतला पूजन एक अप्रैल गुरुवार को।
-शीतला सप्तमी वाले लोगों के लिए शीतला पूजन शनिवार तीन अप्रैल को।
-शीतला अष्टमी वाले लोगों के लिए माता शीतला पूजन चार अप्रैल को ही मान्य होगा।
-इस दिन शीतला माता को भोग लगाने वाले पदार्थ मेवे, मिठाई, पूआ, पूरी, साग, दाल, मीठा भात, फीका भात, मौंठ, मीठा बाजरा, बाजरे की मीठी रोटी, दाल की भरवा पूड़ियां, रस, खीर आदि एक दिन पूर्व ही सायंकाल में बना लिए जाते हैं। रात्रि में ही दही जमा दिया जाता है। इसीलिए इसे बसौड़ा के नाम से भी जाना जाता है। जिस दिन व्रत होता है उस दिन गर्म पदार्थ नहीं खाये जाते। इसी कारण घर में चूल्हा भी नहीं जलता।
इस व्रत में पांचों उंगली हथेली सहित घी में डुबोकर रसोईघर की दीवार पर छापा लगाया जाता है। उस पर रोली और अक्षत चढ़ाकर शीतलामाता के गीत गाए जाते हैं। सुगंधित गंध, पुष्पादि और अन्य उपचारों से शीतला माता का पूजन कर शीतलाष्टकम् का पाठ करना चाहिए। शीतला माता की कहानी सुनें। रात्रि में दीपक जलाने चाहिए एवं जागरण करना चाहिए।
बसौड़ा के दिन प्रातः थाली में पूर्व संध्या में तैयार नैवेद्य में से थोड़ा-थोड़ा सामान रखकर, हल्दी, धूपबत्ती, जल का पात्र, दही, चीनी, गुड़ और अन्य पूजनादि सामान सजाकर परिवार के सभी सदस्यों के हाथ से स्पर्श कराके शीतला माता के मंदिर जाकर पूजन करना चाहिए। छोटे-छोटे बालकों को साथ ले जाकर उनसे माता जी को ढोक भी दिलानी चाहिए।
होली के दिन बनाई गई गूलरी (बड़कुल्ला) की माला भी शीतला मां को अर्पित करने का विधान है। चौराहे पर जल चढ़ाकर पूजा करने की परंपरा भी है। शीतला मां के पूजनोपरांत गर्दभ का भी पूजन कर मंदिर के बाहर काले श्वान (कुत्ते) के पूजन एवं गर्दभ को चने की दाल खिलाने की परंपरा भी है। घर आकर सभी को प्रसाद एवं मोंठ-बाजरा का वायना निकालकर उस पर रुपया रखकर अपनी सास के चरण स्पर्श कर देने की प्रथा का पालन करना चाहिए। इसके बाद किसी वृद्धा मां को भोजन कराकर और वस्त्र दक्षिणादि देकर विदा करना चाहिए। यदि घर-परिवार में शीतला माता के कुण्डारे भरने की प्रथा हो तो कुंभकार के यहां से एक बड़ा कुण्डारा तथा दस छोटे कुण्डारे मंगाकर छोटे कुण्डारों को बासी व्यंजनों से भरकर बड़े कुण्डारे में रख जलती हुई होली को दिखाए गए कच्चे सूत से लपेट कर भीगे बाजरे एवं हल्दी से पूजन करें। इसके बाद परिवार के सभी सदस्य ढोक (नमस्कार) दें। पुनः सभी कुण्डारों को गीत गाते हुए शीतला माता के मंदिर में जाकर चढ़ा दें। वापसी के समय भी गीत गाते हुए आयें। पुत्र जन्म और विवाह के समय जितने कुण्डारे हमेशा भरे जाते हैं उतने और भरकर शीतला मां को चढ़ाने का विधान भी है। पूजन के लिए जाते समय नंगे पैर जाने की परंपरा है