कमर पर दुपट्टा कसा हुआ… बोझा नहीं सिर पर… सेफ्टी हेलमेट पहना हुआ। हाथ सने हैं सीमेंट और गारे के मसाले से… आशियाना है बनता हुआ। किसी से कोई मतलब नहीं। मगन हैं वे अपने काम में। अब रेजा नहीं राजमिस्त्री हैं ये। रेजा यानी मजदूर कहलाने के क्रम को और सिर्फ बोझा उठाने के लायक समझे जाने के भ्रम को तोड़ा है इन्होंने…
एक हाथ में ईंट, दूसरे में हथौड़ा। कभी करनी (कन्नी) हाथों में और तो कभी सेंटीमीटर्स और मीटर्स मापने वाला फीता। वह चढ़ी हैं ऊंची दीवार पर और व्यस्त हैं सीमेंट के मसाले से ईंटें जोड़-जोड़कर इमारत खड़ी करने में। राजमिस्त्री का पेशा अपनाने में इन्हें कोई परहेज नहीं। कल तक इन महिलाओं को सिर्फ बोझा उठाने के काबिल ही समझा जाता था, लेकिन आज यह इंस्ट्रक्शंस दे रही हैं। कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री में इनकी दस्तक ने इनके हौसले की कहानी गढ़ी है। कहीं ये इंडस्ट्रियल पेंटर हैं तो कहीं इलेक्ट्रिशियन तो कहीं वेल्डर। बड़ी-बड़ी मशीनों को फिट करने में भी पीछे नहीं हैं ये। मशीन की ड्रांइग सामने रख कर मार्क करती हैं कि मशीन कैसे असेंबल होगी? डेमोन्सट्रेट करती हैं अपने हुनर को, अपनी योग्यता और अपने कॉन्फिडेंस को। कई युवतियां तो अब ट्रेनर के मोड में भी आ गईं हैं। समाज में अपनी अलग पहचान बनाने वाली इन महिलाओं को आज खुशी है कि वे अपने पैरों पर खड़ी हैं और अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभा रही हैं।
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