अक्षय तृतीया पर 11 साल बाद योग, पूरी होगी सभी मनोकाम
अक्षय तृतीया दान करने का पर्व है, वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया अक्षय तृतीया के रूप में जानी जाती है। ग्रंथों के अनुसार, इस दिन जो भी शुभ कार्य किए जाते हैं, उनका अक्षय फल मिलता है। भविष्य पुराण के अनुसार, सतयुग और त्रेता युग का प्रारंभ इसी तिथि से हुआ। मान्यता है कि ब्रह्माजी के पुत्र अक्षय कुमार का प्राकट्य भी इसी दिन हुआ। मान्यता है कि इसी दिन महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ था।
मान्यता है कि इस दिन जो भी काम किया जाता है, वह अक्षय रहता है। उसमें कमी नहीं होती। लेकिन शास्त्रों में कही गई इस बात का बाजारीकरण हो गया है। अक्षय तृतीया का जो मूल उद्देश्य है, लोग उससे हटकर खरीदारी में व्यस्त हो जाते हैं। दरअसल धर्मग्रंथों में अक्षय तृतीया को जरूरतमंदों को दान करने की बात कही गई है। शास्त्रों में कहा गया है कि अक्षय तृतीया के दिन स्नान करने के बाद सामथ्र्य के अनुसार दान करें। इस दिन किया गया दान कई गुना होकर वापस मिल जाता है। जो भी हो, जरूरतमंदों को धन अथवा सामान देकर उनकी मदद करना पुण्य का ही काम है, जिससे यह पर्व जुड़ा हुआ है। इस दिन स्वर्ण, भूमि, पंखा, जल, सत्तू, जौ, छाता, वस्त्र आदि दान करने का विधान है, जो विपन्नों की दशा और उन पर गर्म मौसम की मार को देखते हुए उचित ही है।
ऐसे करें पूजा-अर्चना-
सुबह पानी में चावल और गंगाजल डालकर स्नान करें। इसके बाद मां लक्ष्मी और श्रीविष्णु का ध्यान करते हुए चावल, चंदन, धूप-दीप से पूजन करें। फिर आरती करें।
इनका करें दान- जल से भरा मिट्टी का घड़ा, कलश व वस्त्र, ककड़ी, खरबूजा, पंखा, चरण पादुका, छाता, अनाज, जौ, गेंहूं, चने का सत्तू, दही-चावल, गुड़, अरहर की दाल, चना, दूध आदि।