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224th birth anniversary of Ghalib, the emperor of poetry, celebrated in Agra
आगरालीक्स…शायरी के बादशाह गालिब की आगरा में 224 वीं जन्म जयंती मनाई गई. आगरा के ग्रैंड होटल में बज्में गालिब का आयोजन किया गया.
शायरियों से लोगों का अपना दिवाना बनाने वाले और शायरों की नगरी के बादशाह मिर्जा असद उल्लाह खां गालिब के 224 वीं जन्म जयंती पर आगरा के ग्रैंड होटल में बज्में गालिब का आयोजन किया गया. कार्यक्रम के अध्यक्षता श्री राजीव कुमार पाल प्रावीडेन्ट फंड कमिश्नर,दिल्ली ने की और उन्ही की अध्यक्षता में कार्यक्रम संपन्न हुआ. कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री रामजी लाल सुमन, श्री अरुण डंग सुधीर नारायण, सुशील सरित और बैकुंठी देवी की कुछ छात्राओं ने मिर्ज़ा ग़ालिब की तस्वीर के सम्मुख शमा रौशन कर प्रारंभ किया. आगरा के प्रख्यात शायर शाहिद नदीम साहब ने कहा” लफ्ज़ कागज़ पर जब भी आते हैं अपनी ताजीम ही कराते हैं. देखने में उदास झील था वह सोचने में मगर समंदर था खुशबुएं उसकी आज भी है नदीम उसका लहजा था या गुलेतर था.” उन्ही के साथ साथ श्री अरुण डंग ने कहा— कि गालिब की शायरी में अहिंसा का भी जिक्र है और महात्मा गांधी के सिद्धांतों का भी” बुरा मत कहो बुरा मत सुनो”.
गालिब की गजलों में डूबे लोग
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री रामजी लाल सुमन ने कहा— कि गालिब कबीर की परंपरा के शायर है और गालिब की तुलना किसी से नहीं की जा सकती उन्हें जितनी बार पढ़ो उतनी बार उसके नए मायने निकलते हैं. सुशील सरित ने कहा “एक रेशमी एहसास है गालिब की शायरी रूहों में छुपी प्यास है गालिब की शायरी” इसके बाद सुधीर नारायण ने गालिब की गजलों को तरन्नुम से पेश किया “आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक कौन जीता है तेरी जुल्फ के सर होने तक, जहां तेरा नक्शे कदम देखते हैं खयामा खयामा इरम देखते हैं “ये न थी हमारी किस्मत कि मिसाले यार होता” “कोई उम्मीद बर नहीं आती ,कोई सूरत नजर नहीं आती जैसी गजलों में लोग काफी देर तक डूबे रहे.
कार्यक्रम में मौजूद लोग
कार्यक्रम का संचालन सुशील सरित ने किया और साथ ही ध्वनि संयोजन मुगल साउंड सर्विस ने किया. कार्यक्रम में श्री अशोक चौबे ,कर्नल कुंजरू, रामकुमार अग्रवाल, डॉ अशोक विज, पूजा सक्सेना, विनोद माहेश्वरी डॉ रति खम्बाटा ,डॉ असीम आनंद, डॉ संदीप अग्रवाल अरेला आदि मौजूद रहे.