Agra News: Doctors discussed the treatment of serious patients admitted in ICU…#agranews
आगरालीक्स…आगरा में आईसीयू में भर्ती गंभीर मरीजों के इलाज पर डॉक्टर्स ने की चर्चा. ब्रेन डेड, कोमा और गंभीर बीमारी से पीड़ित मरीजों के लिए किया जा सकता है यह काम
ब्रेन डेड, कोमा और गंभीर बीमारी से पीड़ित मरीजों में हास्पिटल के बोर्ड और परिजनों की सहमति से लाइफ सपोर्ट वेंटीलेटर को हटाया जा सकता है। इसी वर्ष जनवरी में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, कर्नाटका में विट्राल आफ लाइफ सपोर्ट को अमल में लाने के लिए आवेदन किया है। शनिवार से होटल डबल ट्री बाई हिल्टन में शुरू हुई दो दिवसीय सोसाइटी आफ न्यूरोक्रिटिकल केयर की छठी राष्ट्रीय कार्यशाला में गंभीर मरीजों के आइसीयू में इलाज पर भी चर्चा की गई।
सोसाइटी आफ न्यूरोक्रिटिकल केयर के पूर्व अध्यक्ष डॉ. आरके मणि ने बताया कि 2018 में विट्रोल आफ लाइफ सपोर्ट को अनुमति दी गई थी लेकिन इसमें कई जटिलता थी। इन जटिताओं को कम करने के लिए प्रयास किए गए। इसी वर्ष जनवरी में सुप्रीम कोर्ट ने विट्राल आफ लाइफ सपोर्ट की प्रक्रिया को सरल कर दिया है। ऐसा कोई भी मरीज, जिसके बचने की उम्मीद नहीं है। उसके परिजनों की सहमति पर हास्पिटल द्वारा डाक्टरों के दो बोर्ड बनाए जाएंगे।
इसमें एक बोर्ड में स्वास्थ्य विभाग का चिकित्सक भी होगा, बोर्ड की अनुमति के बाद वेंटीलेटर को हटाया जा सकेगा। क्योंकि इस तरह के मरीज के शरीर को एक तरह से प्रताड़ित किया जाता है, इसमें खर्चा भी बहुत अधिक होता है। साथ ही इन मरीजों का अंगदान भी कराया जा सकता है। हमारे देश में एक प्रतिशत ब्रेन डेड से मरीजों की मौत होती है। सबसे ज्यादा कोमा और ब्रेन डेड के केस दुर्घटना के चलते आ रहे हैं। सोसाइटी के संस्थापक अध्यक्ष डॉ. हर्ष सप्रा ने बताया कि 2018 तक तीन न्यूरो आइसीयू थे, ये अब बढ़कर 35 हो गए हैं। दो दो वर्ष का न्यूरोक्रिटिकल केयर में डाक्टरों को प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है। 80 डॉक्टरों को प्रशिक्षण दिया जा चुका है।
घर पर आइसीयू केसर, एंबुलेंस में इलाज
डा. सुनील गर्ग, दिल्ली ने बताया कि घर पर भी आईसीयू केयर दी जा सकती है। इससे खर्चा कम होता है, वेंटीलेटर पर भर्ती मरीज पर 30 से 50 हजार रुपये हर रोज खर्च होते हैं यही सुविधा घर पर 10 हजार रुपये में उपलब्ध कराई जा सकती है। अमेरिका की डॉ. आरती सबरवाल ने बताया कि अमेरिका में एंबुलेंस के चालकों को भी प्रशिक्षण दिया जाता है, वे दुर्घटना स्थल पर ही प्राथमिक उपचार दे देते हैं, जिससे मरीजों की जान बचाई जा रही है।
फास्ट से बचेगी स्ट्रोक के मरीजों की जान
आयोजन अध्यक्ष डॉ. रनवीर सिंह त्यागी ने बताया कि ब्रेन स्ट्रोक के मरीजों में चेहरा टेढ़ा हो जाता है, हाथ नहीं उठता है, बोलने में परेशानी होती है, ऐसे में तीन घंटे में मरीज को अस्पताल पहुंचा दिया जाए तो स्ट्रोक के मरीज पूरी तरह से ठीक हो सकते हैं।
केंद्रीय राज्य मंत्री ने किया शुभारंभ
कार्यशाला का शाम को केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री प्रो. एसपी सिंह बघेल ने शुभारंभ किया। सोसाइटी के अध्यक्ष हिमांशु प्रभाकर, सचिव डा. वसुधा, आयोजन अध्यक्ष डॉ. रनवीर सिंह त्यागी, डॉ. राकेश त्यागी, डॉ. दीप्तीमाला, डॉ.वंदना कालरा , डॉ. प्रशांत लवानियां, डॉ. जय प्रकाश, डॉ. ललिता सिंह, डॉ. सुनील गर्ग, डॉ. सीमंत झा, डॉ. नीरज त्यागी, संचान लव प्रिया ने किया और धन्यवाद डॉ. राकेश त्यागी ने दिया।