Agra News : Pollution in Agra once again raised concerns…#agra
Ayurvedic Medicine without consultation is dangerous for patients, Explain by Dr Dinesh Garg Gastroenterologist, Agra
आगरालीक्स….. आप बिना परामर्श के आयुर्वेद के नाम पर दवाएं खा रहे हैं तो यह खबर नींद उड़ा देगी, एक बार पानी की भी जांच करा लें, खामोशी के साथ आपके खून में पहुंच रहा सीसा, गैस्ट्रोएंट्रोलाॅजिस्ट डाॅ. दिनेश गर्ग ने बताया विशुद्ध रूप से जहर.
आगरा में अगर आप आयुर्वेद के नाम पर दवाओं का सेवन कर रहे हैं तो यह खबर आपकी नींद उड़ा देगी। बीमारी से झटपट राहत दिलाने के नाम पर कई आयुर्वेदिक दवाओं में ऐेसे धातु मिलाए जा रहे हैं जो फौरी राहत तो दे सकते हैं लेकिन आपको बड़ी मुश्किल में भी धकेल सकते हैं। असल में इन दवाओं में मौजूद लेड, आर्सेनिक, कैडमियम, क्रोमियम जैसे हैवी मेटल्स बीमारों को और बीमार बना सकते हैं। इसलिए इन दवाओं का सेवन करने से पहले आयुर्वेद के विशेषज्ञों का परामर्श, सही उत्पाद का चयन, जांच परख और जागरूकता जरूरी है। वहीं इंटरनेट पर देखकर कोई भी दवा मंगाने से पहले सावधानी जरूरी है। हालांकि ऐसा भी नही है कि लेड सिर्फ आयुर्वेद दवाओं के जरिए ही शरीर में पहुंचता है बल्कि पानी समेत इसके अन्य कई श्रोत भी हैं।
28 वर्षीय कलीउद्दीन (काल्पनिक नाम) एक साल से कभी एक तो कभी दूसरे डाॅक्टर पर जा रहे हैं। वे पेट दर्द, कमजोरी और कब्ज की शिकायत करते हैं। अब खून की कमी भी हो गई है। आराम नहीं मिलता। डाॅक्टर जांच कराते हैं लेकिन रिपोर्ट नाॅर्मल आती हैं। सलाह मिलती है कि वहम न पालें। थक हारकर रोग के साथ जीने लगे। इस बीच किसी परिचित से सलाह मिली कि एक बार आगरा गैस्ट्रो लिवर सेंटर पर भी दिखाएं। बीमारी से परेशान कलीउद्दीन इस सेंटर पर पहुंचे और सीनियर गैस्ट्रोएंट्रोलाॅजिस्ट डाॅ. दिनेश गर्ग को दिखाया। उन्होंने मरीज को अच्छे से काउंसिल किया। रोग से पहले की हिस्ट्री पता की और रक्त में लेड की मात्रा की जांच कराई। इसमें सामने आया कि कलीउद्दीन काफी समय से शक्तिवर्धक दवाएं ले रहे थे। डाॅ. दिनेश सझ गए कि रोग की जड़ कहां है। यहीं से सही इलाज शुरू होता है। कलीउद्दीन का पेट दर्द, कब्ज और कमजोरी की शिकायत दूर हो चुकी है और अब राहत में हैं। हालांकि यह समस्या अकेले कलीउद्दीन की नहीं है। डाॅ. दिनेश गर्ग ने बताया कि बड़ी संख्या में ऐसे मरीज आ रहे हैं जो ज्ञात-अज्ञात कारणों से लेड पाॅइजिंग के शिकार हैं लेकिन उन्हें पता नहीं है। वहीं कई लोग इसे फूड पाॅइजनिंग समझ लेते हैं, जबकि ये समस्या फूड पाॅइजनिंग से एकदम अलग है और कई गुना अधिक खतरनाक है।
क्या प्रभाव डालाता है ?
डाॅ. दिनेश गर्ग ने बताया कि खून में सीसा धातु की मौजूदगी के शुरूआती लक्षण नजर नहीं आते। यह धातु खामोशी के साथ आपके शरीर में पहुंचता रहता है। फिर अधिक मात्रा में एकत्रित होने पर पेट संबंधी तमाम विकार पैदा कर देता है। आपको शारीरिक और मानसिक रूप से बीमार कर सकते हैं। बच्चों का शारीरिक विकास भी रूक जाता है।
सिर्फ दवाओं ही नहीं कई जरियों से शरीर में पहुंच रहा लेड
हालांकि ऐसा नहीं है कि शरीर में यह लेड सिर्फ आयुर्वेद दवाओं के जरिए ही शरीर में पहुंचता है बल्कि इसके कई और भी श्रोत हो सकते हैं। लेड के दूसरे श्रोतों में पानी, खदान जैसे सक्रिय उद्योग, सीसा युक्त प्रेंट व पिगमेंट, गैसोनान, खाद्य पदार्थों की बोतलें, मसाले, सौंदर्य उत्पादों, बच्चों के खिलौने व अन्य उपभोक्ता उत्पाद भी अहम कारण हैं। जो लोग इन क्षेत्रों में काम करते हैं उनके शरीर और कपड़ों पर चिपक कर इनके कण घरों और बच्चों तक भी पहुंचते हैं। बैटरियों के कचरे के निस्तारण या रीसाइक्लिंग की व्यवस्था नहीं है, इनसे निकलने वाला सीसा बढ़ता ही जा रहा है। बढ़ते वाहनों की वजह से भी वातावरण में सीसा जैसे प्रदूषक बढ़ते जा रहे हैं। जिन स्थानों पर लेड प्रदूषण अधिक होता है वहां के लोगों का जीवन खतरे में हो सकता है। पुराने भवनों में लेड आधारित पेंट, लेड युक्त धूल, वायु या जल इसके सबसे आम श्रोत हैं। बैटरी से जुडे़ काम या आॅटो मरम्मत करने वाले लोगों में खतरा अधिक होता है।
लक्षण
- पेट में दर्द, ऐंठन और कब्ज
- व्यवहार में आक्रामकता
- नींद की समस्या
- गंभीर सिरदर्द, चिड़चिड़ापन
- बच्चों विकास संबंधी समस्या
- हाई ब्लड प्रेशर
- झटके या कमजोरी जैसी स्थिति
बचाव
- अपने घरों को धूल मुक्त रखने का प्रयास करें
- खाने से पहले हाथों को धोना
- पानी में लेड की जांच कराएं
- नियमित रूप से नल और जलवाहकों को साफ करें
- बच्चों के खिलौनों और बोतलों को नियमित साफ करें