आगरालीक्स(23rd August 2021 Agra News)… सौभाग्य, संतान और गृहस्थ जीवन का सुख प्रदान करने वाला है कजरी तीज का व्रत। भविष्ण पुराण में है वर्णन। व्रत करने से नहीं मिलताा जीवन साथी का वियोग। मान्यता- सभी देवी—देवता करते हैं शिव—पार्वती का पूजन।
भविष्य पुराण में है इसका जिक्र
कजरी तीज का व्रत बुधवार को रखा जाएगा। भविष्य पुराण में इसका वर्णन किया गया है। अलीगढ़ के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य पंडित हृदय रंजन शर्मा ने बताया कि भविष्य पुराण में तृतीया तिथि की देवी माता पार्वती का बताया गया है। पुराण के तृतीया कल्प में बताया गया है कि यह व्रत महिलाओं को सौभाग्य, संतान औ गृहस्थ जीवन का सुख प्रदान करने वाला है।
श्रीकृष्ण ने युधिष्ठर को बताई थी इसकी महिमा
पंडित हृदय रंजन शर्मा ने बताया कि इस व्रत को देवराज इंद्र की पत्नी शचि ने भी किया था। तब उन्हें संतान सुख मिला। युधिष्ठिर को भगवान श्रीकृष्ण ने बताया है कि भाद्र मास की कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को देवी पार्वती की पूजा सप्तधान्य से उनकी मूर्ति बनाकर करनी चाहिए। इस दिन देवी की पूजा दुर्गा रूप में होती है। जो महिलाओं को सौंदर्य और पुरुषों को धन और बल प्रदान करने वाला है। देवी पार्वती को इस दिन गुड़ और आटे से मालपुआ बनाकर भोग लगाना चाहिए। इस व्रत में देवी पार्वती को शहद अर्पित करने का भी विधान है।
माता पार्वती की मूर्ति के सामने करें शयन
व्रत करने वाले को रात्रि में देवी पार्वती की तस्वीर अथवा मूर्ति के सामने शयन करना चाहिए। अगले दिन अपनी इच्छा और क्षमता के अनुसार ब्राह्मण को दान दक्षिणा देनी चाहिए। इस तरह कजली तीज करने से सदावर्त और बाजपेयी यज्ञ करने का फल प्राप्त होता है। इस पुण्य से वर्षों तक स्वर्ग में आनंद पूर्वक रहने का अवसर प्राप्त होता है। अगले जन्म में व्रत से प्रभाव से संपन्न परिवार में जन्म मिलता है और जीवनसाथी का वियोग नहीं मिलता है।
कजली तीज नाम क्यों पड़ा
पुराणों के अनुसार, मध्य भारत में कजली नाम का एक वन था। इस जगह का राजा दादुरै था। इस जगह में रहने वाले लोग अपने स्थान पर कजली के नाम पर गीत गाते थे, जिससे उनकी इस जगह का नाम चारों ओर फैले। सब इसे जाने। कुछ समय बाद राजा की म्रत्यु हो गई और उनकी रानी नागमती सती हो गई। इससे वहां के लोग बहुत दुखी हुए और इसके बाद से कजली के गाने पति–पत्नी के जनम–जनम के साथ के लिए गाये जाने लगे।
एक और कथा
इसके अलावा एक और कथा इस तीज से जुडी है। माता पार्वती शिव से शादी करना चाहती थी लेकिन शिव ने उनके सामने शर्त रख दी। बोला कि अपनी भक्ति और प्यार को सिद्ध कर के दिखाओ। तब पार्वती ने 108 साल तक कठिन तपस्या की और शिव को प्रसन्न किया। शिव ने पार्वती से खुश होकर इसी तीज को उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकारा था। इसलिए इसे कजरी तीज कहते हैं। कहते हैं कि बड़ी तीज को सभी देवी देवता शिव—पार्वती की पूजा करते हैं।