आगरालीक्स… देवप्रबोधिनी एकादशी कल। बैंड-बाजा- बारात सहित सभी मांगलिक कार्य होंगे शुरू। जानें व्रत एवं पूजा विधि सहित सभी महत्वपूर्ण जानकारी।
चार माह के शयन के बाद जागेंगे श्री हरि
श्री गुरु ज्योतिष शोध संस्थान गुरु रत्न भण्डार वाले ज्योतिषाचार्य पंडित हृदय रंजन शर्मा के मुताबिक देवप्रबोधिनी एकादशी को देव उठनी एकादशी और देवोत्थान एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार इस दिन से विवाह, गृह प्रवेश तथा अन्य सभी प्रकार के मांगलिक कार्य आरंभ हो जाते हैं। माना जाता है कि भगवान श्रीविष्णु ने भाद्रपद मास की शुक्ल एकादशी को महापराक्रमी शंखासुर नामक राक्षस को लम्बे युद्ध के बाद समाप्त किया था और थकावट दूर करने के लिए क्षीरसागर में जाकर सो गए थे और चार मास पश्चात फिर जब वे उठे तो वह दिन देव उठनी एकादशी कहलाया।
श्रीविष्णु का सपत्नीक पूजन करने का विधान
इस दिन भगवान श्रीविष्णु का सपत्नीक आह्वान कर विधि विधान से पूजन करना चाहिए। इस दिन उपवास करने का विशेष महत्व है और माना जाता है कि यदि इस एकादशी का व्रत कर लिया तो सभी एकादशियों के व्रत का फल मिल जाता है और व्यक्ति सुख तथा वैभव प्राप्त करता है और उसके पाप नष्ट हो जाते हैं।
उपवास का सबसे ज्यादा महत्व
पद्मपुराण के अनुसार इस दिन उपवास करने से सहस्त्र एकादशी व्रतों का फल प्राप्त होता है। जप, होम, दान सब अक्षय होता है। यह उपवास हजार अश्वमेध तथा सौ राजसूय यज्ञों का फल देनेवाला, ऐश्वर्य, सम्पत्ति, उत्तम बुद्धि, राज्य तथा सुख प्रदाता है। मेरु पर्वत के समान बड़े-बड़े पापों को नाश करनेवाला, पुत्र-पौत्र प्रदान करनेवाला है। इस दिन गुरु का पूजन करने से भगवान प्रसन्न होते हैं व भगवान विष्णु की कपूर से आरती करने पर अकाल मृत्यु नहीं होती।
पूजा विधि
इस दिन व्रत करने वाली महिलाएं प्रातः स्नानादि से निवृत्त होकर पूजा स्थल को साफ करें और आंगन में चौक बनाकर भगवान श्रीविष्णु के चरणों को कलात्मक रूप से अंकित करें। दिन में चूंकि धूप होती है इसलिए भगवान के चरणों को ढंक दें। रात्रि के समय घंटा और शंख बजाकर निम्न मंत्र से भगवान को जगाएँ।
व्रत का पारण
एकादशी के व्रत को समाप्त करने को पारण कहते हैं। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना जरूरी है लेकिन अगर द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले ही समाप्त हो गयी हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद ही करना चाहिए।
एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए। जो श्रद्धालु व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत तोड़ने से पहले हरि वासर समाप्त होने की प्रतिक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि है।
⭐एकादशी तिथि प्रारम्भ = 11 नवम्बर सांय 06:47pm से
⭐एकादशी तिथि समाप्त = 12 नवम्बर 04:05 pm बजे तक
⭐पारण (व्रत तोड़ने का) समय = 13 नवम्बर प्रातः 06:41 से 08:50 तक।