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First Shailputri: Mother Queen blesses happiness, prosperity and health

आगरालीक्स… ( 12 April ) । नवरात्र के प्रथम दिन कल मंगलवार को मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा की जाएगी। माता रानी की पूजा विधि की जानकारी आगरालीक्स में जानिए।

मूलाधार चक्र जागृत होता है

श्री गुरु ज्योतिष शोध संस्थान अलीगढ़ के अध्यक्ष एवं ज्योतिषी पं. हृदयरंजन शर्मा ने बताया कि नवरात्र के इस प्रथम दिन की उपासना में साधक मन को ‘मूलाधारचक्र में स्थित करते हैं, शैलपुत्री का पूजन करने से ‘मूलाधार चक्र जागृत होता है और यहीं से योग साधना आरंभ होती है, जिससे अनेक प्रकार की शक्तियां प्राप्त होती हैं।

शैलपुत्री की कथा

श्री दुर्गा का प्रथम रूप श्री शैलपुत्री हैं। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण ये शैलपुत्री कहलाती हैं। नवरात्र के प्रथम दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है। गिरिराज हिमालय की पुत्री होने के कारण भगवती का प्रथम स्वरूप शैलपुत्री का है, जिनकी आराधना से प्राणी सभी मनोवांछित फल प्राप्त कर लेता है। मां शैलपुत्री दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प लिए अपने वाहन वृषभ पर विराजमान होतीं हैं।

मां शैलपुत्री का पूजा विधान

नवरात्र पर कलश स्थापना के साथ ही मां दुर्गा की पूजा शुरू की जाती है। पहले शैलपुत्री की पूजा होती है। दुर्गा को मातृ शक्ति यानी स्नेह, करूणा और ममता का स्वरूप मानकर हम पूजते हैं। अत: इनकी पूजा में सभी तीर्थों, नदियों, समुद्रों, नवग्रहों, दिक्पालों, दिशाओं, नगर देवता, ग्राम देवता सहित सभी योगिनियों को भी आमंत्रित किया जाता है। औ कलश में उन्हें विराजने हेतु प्रार्थना सहित उनका आहवान किया जाता है।

कलश पंच पल्लव से होता है सुशोभित

कलश में सप्तमृतिका यानी सात प्रकार की मिट्टी, सुपारी, मुद्रा सादर भेट किया जाता है और पंच प्रकार के पल्लव से कलश को सुशोभित किया जाता ह। .इस कलश के नीचे सात प्रकार के अनाज और जौ बोये जाते हैं जिन्हें दशमी तिथि को काटा जाता है। इससे सभी देवी-देवता की पूजा होती है. इसे जयन्ती कहते हैं, जिसे इस मंत्र के साथ अर्पित किया जाता है “जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी, दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा, स्वधा नामोस्तुते. इसी मंत्र से पुरोहित यजमान के परिवार के सभी सदस्यों के सिर पर जयंती डालकर सुख, सम्पत्ति एवं आरोग्य का आर्शीवाद देते हैं।

कलश स्थापना के बाद देवी का आह्वान

कलश स्थापना के पश्चात देवी का आह्वान किया जाता है कि ‘हे मां दुर्गा हमने आपका स्वरूप जैसा सुना है उसी रूप में आपकी प्रतिमा बनवायी है आप उसमें प्रवेश कर हमारी पूजा अर्चना को स्वीकार करें’. देवी दुर्गा की प्रतिमा पूजा स्थल पर बीच में स्थापित की जाती है और उनके दोनों तरफ यानी दायीं ओर देवी महालक्ष्मी, गणेश और विजया नामक योगिनी की प्रतिमा रहती है और बायीं ओर कार्तिकेय, देवी महासरस्वती और जया नामक योगिनी रहती है। भगवान भोले नाथ की भी पूजा की जाती है। प्रथम पूजन के दिन “शैलपुत्री” के रूप में भगवती दुर्गा दुर्गतिनाशिनी की पूजा फूल, अक्षत, रोली, चंदन से होती हैं। कथा सुनी जाती है और आरती की जाती है।

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