आगरालीक्स(10th August 2021 Agra News)… हरियाली तीज का व्रत बहुत ही पावन माना जाता है। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती का पुनर्मिलन हुआ था। जानिए शुभ मुहूर्त और पूजा विधि।
हरियाली तीज कल
श्रावण माह में शुक्ल पक्ष की तृतीया को हरियाली तीज के नाम से जानते हैं। यह 11 अगस्त बुधवार को मनाई जाएगी। इस त्योहार के विषय में मान्यता है कि माता पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए तपस्या की थी। इससे प्रसन्न होकर शिव ने ‘हरियाली तीज’ के दिन ही पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार किया था। इस त्योहार के विषय में यह मान्यता भी है कि इससे सुहाग की उम्र लंबी होती है।
जानिए शुभ मूहूर्त
कैलाश मंदिर के महंत निर्मल गिरि ने बताया कि तृतीया आज शाम छह बजकर छह मिनट से लग जाएगी। जो 11 अगस्त शाम चार बजकर 54 मिनट तक है। पूजा का शुभ मुहूर्त 11 अगस्त को सुबह चार बजकर 25 मिनट से है, जो पांच बजकर 17 मिनट तक है। दूसरा मुहूर्त दोपहर में है। यह दो बजकर सात मिनट से तीन बजकर सात मिनट तक है।
पूजा और श्रृंगार सामग्री
महंत निर्मल गिरि के अनुसार, हरियाली तीज के दिन व्रत रखा जाता है और पूजा के लिए कुछ जरूरी सामान की आवश्यकता होती है। पूजा के लिए काले रंग की गीली मिट्टी, पीले रंग का कपड़ा, बेल पत्र, जनेऊ, धूप-अगरबत्ती, कपूर, श्रीफल, कलश, अबीर, चंदन, तेल, घी,दही, शहद दूध और पंचामृत चाहिए। इस दिन पार्वती जी का श्रृंगार किया जाता है। इसके लिए चूड़ियां, आल्ता, सिंदूर, बिंदी, मेहंदी, कंघी, शीशा, काजल, कुमकुम, सुहाग पूड़ा और श्रृंगार की अन्य चीजों की जरूरत होती है।
पूजा विधि
सुबह उठकर स्नान करने के बाद मन में व्रत का संकल्प लेना चाहिये।
सबसे पहले घर के मंदिर में काली मिट्टी से भगवान शिव शंकर, माता पार्वती और गणेश की मूर्ति बनाएं।
अब इन मूर्तियों को तिलक लगाएं और फल-फूल अर्पित करें।
फिर माता पार्वती को एक-एक कर सुहाग की सामग्री अर्पित करें।
इसके बाद भगवान शिव को बेल पत्र और पीला वस्त्र चढ़ाएं।
तीज की कथा पढ़ने या सुनने के बाद आरती करें।
अगले दिन सुबह माता पार्वती को सिंदूर अर्पित कर भोग चढ़ाएं।
प्रसाद ग्रहण करने के बाद व्रत का पारण करें।
हरियाली तीज व्रत कथा
शिवजी कहते हैं, ‘हे पार्वती! बहुत समय पहले तुमने हिमालय पर मुझे वर के रूप में पाने के लिए घोर तप किया था। इस दौरान तुमने अन्न-जल त्याग कर सूखे पत्ते चबाकर दिन व्यतीत किया था। मौसम की परवाह किए बिना तुमने निरंतर तप किया। तुम्हारी इस स्थिति को देखकर तुम्हारे पिता बहुत दुःखी और नाराज़ थे। ऐसी स्थिति में नारदजी तुम्हारे घर पधारे। जब तुम्हारे पिता ने उनसे आगमन का कारण पूछा तो नारदजी बोले- ‘हे गिरिराज! मैं भगवान् विष्णु के भेजने पर यहां आया हूंं। आपकी कन्या की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर वह उससे विवाह करना चाहते हैं। इस बारे में मैं आपकी राय जानना चाहता हूं’। नारदजी की बात सुनकर पर्वतराज अति प्रसन्नता के साथ बोले- हे नारदजी! यदि स्वयं भगवान विष्णु मेरी कन्या से विवाह करना चाहते हैं तो इससे बड़ी कोई बात नहीं हो सकती। मैं इस विवाह के लिए तैयार हूं’।
कथा में आगे
शिवजी पार्वती जी से कहते हैं, ‘तुम्हारे पिता की स्वीकृति पाकर नारदजी, विष्णुजी के पास गए और यह शुभ समाचार सुनाया। लेकिन जब तुम्हें इस विवाह के बारे में पता चला तो तुम्हें बहुत दुख हुआ. तुम मुझे यानी कैलाशपति शिव को मन से अपना पति मान चुकी थी। तुमने अपने व्याकुल मन की बात अपनी सहेली को बताई तुम्हारी सहेली ने सुझाव दिया कि वह तुम्हें एक घनघोर वन में ले जाकर छुपा देगी और वहां रहकर तुम शिवजी को प्राप्त करने की साधना करना। इसके बाद तुम्हारे पिता तुम्हें घर में न पाकर बड़े चिंतित और दुःखी हुए। वह सोचने लगे कि यदि विष्णुजी बारात लेकर आ गए और तुम घर पर ना मिली तो क्या होगा? उन्होंने तुम्हारी खोज में धरती-पाताल एक करवा दिए लेकिन तुम ना मिली। तुम वन में एक गुफा के भीतर मेरी आराधना में लीन थी।
तृतीय शुक्ल को रेत से बनाए शिवलिंग
श्रावण तृतीय शुक्ल को तुमने रेत से एक शिवलिंग का निर्माण कर मेरी आराधना कि जिससे प्रसन्न होकर मैंने तुम्हारी मनोकामना पूर्ण की इसके बाद तुमने अपने पिता से कहा, ‘पिताजी! मैंने अपने जीवन का लंबा समय भगवान शिव की तपस्या में बिताया है और भगवान शिव ने मेरी तपस्या से प्रसन्न होकर मुझे स्वीकार भी कर लिया है। अब मैं आपके साथ एक ही शर्त पर चलूंगी कि आप मेरा विवाह भगवान शिव के साथ ही करेंगे’। पर्वत राज ने तुम्हारी इच्छा स्वीकार कर ली और तुम्हें घर वापस ले गए। कुछ समय बाद उन्होंने पूरे विधि-विधान के साथ हमारा विवाह किया’।
कथा में आगे
भगवान् शिव ने इसके बाद बताया, ‘हे पार्वती! श्रावण शुक्ल तृतीया को तुमने मेरी आराधना करके जो व्रत किया था, उसी के परिणाम स्वरूप हम दोनों का विवाह संभव हो सका इस व्रत का महत्व यह है कि मैं इस व्रत को पूर्ण निष्ठा से करने वाली प्रत्येक स्त्री को मन वांछित फल देता हूं’। भगवान शिव ने पार्वती जी से कहा कि इस व्रत को जो भी स्त्री पूर्ण श्रद्धा से करेंगी उसे तुम्हारी तरह अचल सुहाग प्राप्त होगा।