आगरालीक्स..नवरात्र की सप्तमी पर होगी मां कालरात्रि की पूजा-अर्चना, जिन घरों में अष्टमी पूजी जाती है, वहां कल ही व्रत रखेंगे।
अष्टमी पूजन मंगलवार को होगा
श्री गुरु ज्योतिष शोध संस्थान एवं गुरु रत्न भंडार वाले ज्योतिषाचार्य पंडित हृदय रंजन शर्मा के मुताबिक अष्टमी का पूजन करने वाले घरों में सोमवार को व्रत के बाद मंगलवार को पूजा पाठ, हवन यज्ञ ,कन्या लांगुरा जिमाने के बाद ही व्रत का पारण करेंगे।
सप्तम मां कालरात्रि
चैत्र शुक्ल पक्ष सप्तमी (7)दिन सोमवार पुनर्वसु नक्षत्र सुकर्मा योग वव करण के शुभ संयोग मै 15 अप्रैल को मां कालरात्रि की पूजा घर घर होगी।
माता का चोला (हरा) शुभ रंग (गहरा नीला )भोग गुड़ और चने का भोग लगाने से मनुष्य को मृत्यु भय हमेशा हमेशा के लिए खत्म हो जाता है। -माँ दुर्गा की सातवी शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती है देवी भगवती का यह है यह हर स्वरुप अनंत है मां कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है लेकिन यह सदैव शुभ फल देने वाली हैं इसी कारण उनका नाम शुभंकरी भी हैं।
महाकाली देवियों की केंद्रीय सत्ता
काल को जीतने वाली काली जी देवियों की केंद्रीय सत्ता है भगवान शंकर की शक्ति के रूप में वह कभी रुद्राणी बनकर भक्तों का कल्याण करती हैं तो कभी चंडिका बनकर चंड मुंड का संहार करती हैं, वह रक्तदंतिका बंद कर रक्तबीज का वध करती हैं देवासुर संग्राम में दैत्यों का सर्वनाश करती है सांसारिक प्राणी जिन-जिन चीजों से दूर भागता है वह सब शंकर जी और काली जी को प्रिय है वह नर मुंडो की माला पहनती हैं.भस्म,श्मशान और बलि मां काली को प्रिय हैदुर्गा पूजा के सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा और आराधना की जाती है।
सारे मनोरथो को पूरा करती हैं मां
अखंड ज्योति जला कर काले तिलों से पूजा करने और रात्रि जपतपम करने से मां काली प्रसन्न होती है सप्तमी को रात्रि यज्ञ करने से साधक के सारे मनोरथ पूर्ण हो जाती हैं इस दिनसाधक का मन सहस्त्रार चक्र में होता है मां केइस स्वरूप को अपने हृदय मेंअवास्थिकर साधक को एक निष्ठ भाव से उनकी आराधना करने से विशेष लाभ होता है
ग्रह बाधा दूर करती हैं माता कालरात्रि
ग्रह बाधा दूर करने वाली हैं माता कालरात्रि, मां कालरात्रि का स्वरूप भयानक होने के बावजूद भी वह शुभ फल देने वाली देवी हैं मां कालरात्रि नकारात्मक, तामसी और राक्षसी प्रवृत्तियों का विनाश कर भक्तों को दानव दैत्य आदि से अभय प्रदान करती हैं।
प्राचीन मंत्र
ॐ ऐंग हिलीम क्लीम चामुंडायै विच्चे